जिनकी अदाकारी और खूबसूरती ने चालीस साल पहले कई तमाशा प्रेमियों को दीवाना बना दिया था, वह आज सड़कों पर भीख मांग रही हैं।
महाराष्ट्र की लावणी साम्राज्ञी शांताबाई लोंढे उर्फ शांताबाई कोपरगांवकर के लावणी नृत्य ने एक समय पर उत्तरी महाराष्ट्र को मशहूर कर दिया था। लालबाग पारल का हनुमान रंगमंच उनके नृत्य से लोकप्रिय हुआ। जिनकी अदाकारी और खूबसूरती ने चालीस साल पहले कई तमाशा प्रेमियों को दीवाना बना दिया था, वह आज सड़कों पर भीख मांग रही हैं। बस स्टेशन ही उनका घर बन गया है और वह बहुत बुरी हालत में रह रही है।
जब शांताबाई को मिला धोखा
शांताबाई की कला, सुंदरता और लोकप्रियता को देखकर 40 साल पहले कोपरगांव बस स्टेशन के एक कर्मचारी अत्तार भाई ने ‘शांताबाई कोपरगांवकर’ नामक नाटक बनाया था। इसके बाद शांताबाई मालकिन बन गईं और 50-60 लोगों को खाना खिलाने लगीं। यात्रा-जात्रे में यह तमाशा मशहूर हो गया। लेकिन अशिक्षित शांताबाई को मालिक होने की आड़ में अत्तार भाई ने धोखा दिया। अत्तार भाई ने सारी प्रतियोगिताएं बेच दीं और शांताबाई तबाह हो गईं।
हो गईं मानसिक रोगी
इसके बाद वह मानसिक रोग से पीड़ित होकर भीख मांगने लगीं। न पति, न करीबी रिश्तेदार कोई नहीं है। अब कोपरगांव बस स्टेशन ही शांताबाई का घर बन गया है। शांताबाई की उम्र आज 75 साल है। लेकिन बिखरे बाल, फटी साड़ी और फटे कपड़ों के साथ शांताबाई अभी भी बस स्टेशन पर बैठकर ‘ओलख जूनी थिलामन मनी’ गाना गा रही हैं। शांताबाई की लाकब, एक्टिंग, हाथ घुमाने का तरीका और आंखों की चमक देखकर किसी ने उनका वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया।
इसके बाद वह मानसिक रोग से पीड़ित होकर भीख मांगने लगीं। न पति, न करीबी रिश्तेदार कोई नहीं है। अब कोपरगांव बस स्टेशन ही शांताबाई का घर बन गया है। शांताबाई की उम्र आज 75 साल है। लेकिन बिखरे बाल, फटी साड़ी और फटे कपड़ों के साथ शांताबाई अभी भी बस स्टेशन पर बैठकर ‘ओलख जूनी थिलामन मनी’ गाना गा रही हैं। शांताबाई की लाकब, एक्टिंग, हाथ घुमाने का तरीका और आंखों की चमक देखकर किसी ने उनका वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया।
वीडियो हुआ वायरल
जिसके बाद खानदेश क्षेत्र के कुछ तमाशा कलाकारों ने इस वीडियो को देखा और इसे कोपरगांव तालुक के एक सामाजिक कार्यकर्ता अरुण खरात को वहां भेजा। खरात ने दो दिनों तक शांताबाई की तलाश की और आखिरकार वह कोपरगांव बस स्टैंड पर मिलीं। अरुण खरात और उनके दोस्त डॉ. अशोक गावित्रे उन्हें अस्पताल ले गए और शांताबाई को चिकित्सा सहायता प्रदान की।
जिसके बाद खानदेश क्षेत्र के कुछ तमाशा कलाकारों ने इस वीडियो को देखा और इसे कोपरगांव तालुक के एक सामाजिक कार्यकर्ता अरुण खरात को वहां भेजा। खरात ने दो दिनों तक शांताबाई की तलाश की और आखिरकार वह कोपरगांव बस स्टैंड पर मिलीं। अरुण खरात और उनके दोस्त डॉ. अशोक गावित्रे उन्हें अस्पताल ले गए और शांताबाई को चिकित्सा सहायता प्रदान की।