एम्स ने शुक्रवार को चाइल्डहुड कैंसर सर्वाइवर्स डे के उपलक्ष्य में कार्यक्रम का आयोजन किया। कैंसर को हराने वाली स्नीति अकेली नहीं हैं, उन जैसे सैकड़ों बच्चे हैं जो दूसरों के लिए एक मिसाल हैं।
छह माह की उम्र में जब स्नीति के माता-पिता को पता चला कि बेटी को कैंसर हो गया है तो पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। उन्हें लगा कि अब क्या होगा, लेकिन हार नहीं मानी और एम्स में स्नीति का पूरा उपचार करवाया और आज वह पूरी तरह से स्वस्थ है। ठीक होने के बाद वह दूसरों को कैंसर से लड़ने का तरीका सिखा रही हैं।
कैंसर पीड़िता बच्चे बन रहे दूसरों के लिए मिसाल
कैंसर को हराने वाली स्नीति अकेली नहीं हैं, उन जैसे सैकड़ों बच्चे हैं जो दूसरों के लिए एक मिसाल हैं। दरअसल, एम्स ने शुक्रवार को चाइल्डहुड कैंसर सर्वाइवर्स डे के उपलक्ष्य में कार्यक्रम का आयोजन किया। इसमें कैंसर को हरा चुके बच्चों ने अपने अनुभव साझा किए। इस मौके पर 12 साल की स्नीति ने बताया कि उसे 6 माह की उम्र में रेटिनोब्लास्टमा (आंख का कैंसर) हो गया था। माता-पिता ने एम्स में उपचार करवाया और अब वह ठीक है। उन्होंने कहा कि मैं पेंटिंग करना पसंद करती हूं। मेरे हिसाब से 365 दिन भी कम हैं अपनी रुचि को पूरा करने के लिए, वैसे में ऑनलाइन माध्यम से फ्रेंच पढ़ा रही हूं।
वहीं हापुड़ के रहने वाले ढाई साल के आरव अपने फूफा आनंद प्रकाश के साथ अस्पताल आए थे। आनंद ने बताया कि जब बच्चा 11 दिन का था, तभी उसे कैंसर के लक्षण दिखने लगे। पहले मेरठ में इसका इलाज कराया और बाद में एम्स दिल्ली आए तो यहां के डॉक्टरों ने सर्जरी और दवाओं की मदद से बच्चे को कैंसर मुक्त कर दिया।
कार्यक्रम में एम्स निदेशक डॉ. एम श्रीनिवास व अन्य डॉक्टरों ने बच्चों से मुलाकात की। साथ ही उनके अनुभव साझा किए। इस मौके पर एम्स के पीडियाट्रिक ऑनकोलॉजी विभाग की प्रोफेसर डॉक्टर रचना सेठ ने बताया कि एम्स में इलाज के लिए आने वाले कैंसर से पीड़ित 80 फीसदी बच्चे इस गंभीर बीमारी को हराकर स्वस्थ जीवन जीते हैं। अगर बच्चों के कुछ लक्षणों पर नजर डालकर कैंसर का जल्द पता लग जाए तो यह ठीक हो सकता है।
लगातार पीठ में दर्द होना। कमजोर होता जाना। बार-बार बुखार आना। हड्डियां कमजोर होना। लंबे समय तक सिरदर्द। तेजी से वजन कम होना। पीलेपन का शिकार होना। आंखों में बदलाव जैसे भैंगापन आदि शामिल है।
एम्स का पीडियाट्रिक ऑन्कोलॉजी डिवीजन देश का पहला कैंसर सर्वाइवरशिप सेवाएं शुरू करने वाला डिवीजन है। यह एक साप्ताहिक क्लीनिक है जिसमें इलाज पूरा करने वाले बच्चों का पंजीकरण किया जाता है। यहां पर सामाजिक मुद्दे, कैंसर के उपचार के देर से प्रभाव, शिक्षा और समाज में एकीकरण पर काम किया जाता है। बच्चों में कार्डियक डिसफंक्शन, न्यूरोकॉग्निटिव डेफिसिट, मेटाबोलिक सिंड्रोम, प्रजनन संबंधी समस्याओं की पहचान की जाती है और उनका उपचार किया जाता है। साथ ही जीवित बचे लोगों पर बीमारी की पुनरावृत्ति के लिए भी बारीकी से निगरानी की जाती है। कैंसर से ठीक हुए बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी कम होती है, ऐसे में उन्हें पुन: टीकाकरण का एक कोर्स मिलता है, जो उपचार पूरा होने के 6 महीने बाद शुरू होता है।