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गन्ने के अपशिष्ट से तैयार होगा चीनी का सुरक्षित विकल्प, शोधकर्ताओं ने विकसित की उत्पादन की विधि

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डायबिटीज रोगियों के साथ-साथ अन्य लोगों में सफेद चीनी (सुक्रोज) के प्रतिकूल प्रभाव के बारे में बढ़ती जागरूकता की वजह से चीनी के सुरक्षित विकल्पों की खपत में वृद्धि हुई है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान  गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने गन्ने की खोई (पेराई के बाद बचे अवशेष) से जाइलिटोल नामक चीनी के सुरक्षित विकल्प का उत्पादन करने के लिए अल्ट्रासाउंड आधारित किण्वन (फर्मेंटेशन) विधि विकसित की है। यह विधि पारंपरिक किण्वन में लगने वाले समय को कम कर सकती है।

डायबिटीज रोगियों के साथ-साथ अन्य लोगों में सफेद चीनी (सुक्रोज) के प्रतिकूल प्रभाव के बारे में बढ़ती जागरूकता की वजह से चीनी के सुरक्षित विकल्पों की खपत में वृद्धि हुई है। जाइलिटोल प्राकृतिक उत्पादों से प्राप्त सुगर अल्कोहल है, जिसके एंटी-डायबिटिक और एंटी-ओबेसोजेनिक प्रभाव हो सकते हैं। जाइलिटोल एक हल्का प्री-बायोटिक है और दांतों के क्षरण को रोकने में मदद करता है।
48 की जगह 15 घंटे में किण्वन
शोधकर्ताओं के मुताबिक, अल्ट्रासाउंड के उपयोग से पारंपरिक तरीकों से लगने वाला लगभग 48 घंटे का किण्वन समय घटकर 15 घंटे का हो गया है और उत्पादन में भी लगभग 20% की वृद्धि हुई है। किण्वन के दौरान मात्र 1.5 घंटे के अल्ट्रासोनिकेशन का उपयोग किया गया है, जिसका अर्थ है कि अधिक अल्ट्रासाउंड पावर की खपत नहीं होती है। किण्वन विधि से गन्ने की खोई से जाइलिटोल के उत्पादन को गन्ना उद्योग के लिए एक सकारात्मक अवसर के रूप में देखा जा रहा है।

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