आयुष मिशन और दवा आपूर्ति करने वाली कंपनी की मिलीभगत से माल ढुलाई की हर साल करीब एक करोड़ 96 लाख रुपया डकारा जा रहा है। यह रकम संबंधित अस्पतालों के प्रभारी चिकित्साधिकारी अपनी जेब से भर रहे हैं।
प्रदेश में आयुष विभाग में अस्पताल तक दवा पहुंचाने के नाम पर करोड़ों का खेल चल रहा है। आयुष मिशन और दवा आपूर्ति करने वाली कंपनी की मिलीभगत से माल ढुलाई की हर साल करीब एक करोड़ 96 लाख रुपया डकारा जा रहा है। यह रकम संबंधित अस्पतालों के प्रभारी चिकित्साधिकारी अपनी जेब से भर रहे हैं।
प्रदेश के सभी आयुर्वेदिक, यूनानी एवं होम्योपैथिक अस्पतालों में आयुष मिशन के जरिए दवाएं भेजी जाती हैं। प्रदेश में आयुर्वेदिक यूनानी के 2346 और होम्योपैथिक की 1585 डिस्पेंसरी व अस्पताल हैं। होम्योपैथिक में करीब 45 करोड़ और आयुर्वेद में करीब 65 करोड़ की हर साल दवा खरीदी जाती है। नियमानुसार दवा की आपूर्ति संबंधित अस्पताल तक होनी चाहिए, लेकिन यह दवा जिला मुख्यालय पर रखवा दी जाती है।
फिर चिकित्साधिकारियों पर दवा ले जाने का दबाव बनाया जाता है। मजबूरी में चिकित्साधिकारी अपनी जेब से खर्च कर दवा अस्पताल तक ले जाते हैं। आयुर्वेदिक, यूनानी एवं होम्योपैथिक अस्पतालों की संख्या मिलाकर 3931 हुआ। यदि हर अस्पताल पर दवा ले जाने का खर्च पांच हजार माना जाए तो हर साल करीब एक करोड़ 96 लाख 55 हजार रुपया खर्च होता है। पिछले चार साल से मिशन दवा आपूर्ति कर रहा है। ऐसे में चार साल में सात करोड़ 86 लाख 20 हजार रुपये का वारा न्यारा हो चुका है। विभागीय सूत्र बताते हैं कि डिस्पेंसरी तक दवा पहुंचाने के बजाय जिला मुख्यालय पर दवाएं भेजकर मिशन के अधिकारी और दवा कंपनी इस रुपये की बचत करती हैं। ऐसे में इस रकम की बंदरबांट होने की आशंका है।
क्या कहते हैं जिम्मेदार
दवा खरीदते समय यह व्यवस्था सुनिश्चित होनी चाहिए कि दवा डिस्पेंसरी तक पहुंचे। मामला संज्ञान में आया है। इसे देखा जा रहा है। टेंडर प्रक्रिया की जांच कराई जाएगी। यह देखा जाएगा कि कंपनी से खरीद संबंधी प्रपत्र पर दवा कहां तक पहुंचाने की बात हुई है। किसी तरह का खेल होगा तो जांच कराकर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
मामला संज्ञान में आया है। पहले किस स्तर पर चूक हुई। यह देखा जा रहा है। डिस्पेंसरी तक दवा पहुंचाने की पुख्ता व्यवस्था बनाई जाएगी। यह भी देखा जा रहा है कि पूर्व के वर्षों में कंपनी ने अस्पतालों तक दवा क्यों नहीं पहुंचाया?
हर डिस्पेंसरी तक दवा पहुचाने की जिम्मेदारी आयुष मिशन की है। इसके लिए आयुर्वेद निदेशक और आयुष मिशन निदेशक को भी पत्र लिखा जा चुका है, लेकिन अभी तक कोई व्यवस्था नहीं की गई है। आयुर्वेद की डिस्पेंसरी ग्रामीण इलाके में हैं। जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर हैं।। ऐसे में दवा ले जाने के लिए चिकित्साधिकारियों को हर बार 15 सौ रुपया खर्च करना पड़ता है। तीन बार दवा ले गए तो 4500 से 5000 हजार रुपया जेब से चुकाना पड़ता है।
राजकीय होम्योपैथिक चिकित्सालयों तक दवा पहुचाने की व्यवस्था नहीं है। इससे चिकित्साधिकारियों का काम बढ़ गया है। जिला होम्योपैथिक चिकित्सा अधिकारी कार्यालय से अस्पताल तक दवा ले जाना में करीब पांच हजार रुपया खर्च होता है। यह खर्च किस मद में करना है, इसकी कोई गाइडलाइन नहीं है। ऐसे में चिकित्साधिकारियों को अपनी जेब से रुपये खर्च करने पड़ते हैं। मामले की जानकारी होम्योपैथिक निदेशक को भी दी गई है।