केंद्र सरकार ने मुंह के कैंसर की रोकथाम के लिए नई निगरानी नीति पर विचार करने से पहले वैज्ञानिक तथ्य एकत्रित करने का फैसला लिया। इसकी जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित कल्याण सिंह सुपर स्पेशियलिटी कैंसर संस्थान के जन स्वास्थ्य विभाग को सौंपी गई, जहां के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन के बाद पारंपरिक मौखिक परीक्षण को कैंसर जांच के लिए सबसे किफायती रणनीति बताया।
देश में मुंह का कैंसर दूसरा सबसे आम कैंसर है। हर साल 1.30 लाख लोग इसकी चपेट में आते हैं। इस बीमारी की समय पर पहचान करने के लिए जल्द ही देश में नई निगरानी नीति लागू की जाएगी, जिसके तहत गांवों में एएनएम यानी सहायक नर्स मिडवाइफ कर्मचारी भी मुंह के कैंसर की स्क्रीनिंग कर सकेगीं। यह दुनिया में अपनी तरह का पहला प्रयोग होगा।
दरअसल, केंद्र सरकार ने मुंह के कैंसर की रोकथाम के लिए नई निगरानी नीति पर विचार करने से पहले वैज्ञानिक तथ्य एकत्रित करने का फैसला लिया। इसकी जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित कल्याण सिंह सुपर स्पेशियलिटी कैंसर संस्थान के जन स्वास्थ्य विभाग को सौंपी गई, जहां के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन के बाद पारंपरिक मौखिक परीक्षण को कैंसर जांच के लिए सबसे किफायती रणनीति बताया। यह अध्ययन मेडिकल जर्नल द लैंसेट साउथ ईस्ट एशिया में भी प्रकाशित हुआ है।
शोधकर्ता डॉ. अतुल लोहिया ने बताया कि हमें पूरे देश की आबादी की जांच करने की जरूरत नहीं है, जो लोग उच्च जोखिम वाले समूह से जुड़े हैं उनकी जांच पहले होनी चाहिए। यानी जिस भी 30 साल या उससे अधिक आयु के व्यक्ति ने अपने जीवन में कम से कम एक बार गुटखा, बीड़ी, सिगरेट या शराब का सेवन किया है उन्हें उच्च जोखिम श्रेणी में रखा जा सकता है।
सहायक प्रोफेसर डॉ. आयुष लोहिया ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग की तकनीकी मूल्यांकन समिति के सामने अध्ययन के परिणाम प्रस्तुत किए। इसके बाद, नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर वीके पॉल की अध्यक्षता में मेडिकल टेक्नोलॉजी असेसमेंट बोर्ड (एमटीएबी) ने भी अध्ययन की सिफारिशों को स्वीकार किया। डॉ. पॉल ने कहा है कि जल्द ही इन सिफारिशों को देश के बाकी राज्य और केंद्रीय अस्पतालों को साझा किए जाएंगें।