कराची के इलाक़े निज़ामाबाद के निवासी काशिफ़ हुसैन ने रविवार के दिन मुर्ग़ी का एक किलो गोश्त छह सौ रुपये में ख़रीदा है.
मध्य आय वाले वर्ग से संबंध रखने वाले काशिफ़ हुसैन का कहना है कि वे बीफ़ और बकरे का गोश्त महंगा होने के कारण मुर्ग़ी का गोश्त ख़रीदते हैं.
‘बकरे का गोश्त ख़रीदना तो पहले ही आम आदमी की पहुँच से बाहर हो चुका है और बीफ़ भी महंगे दामों पर मिल रहा है, इसलिए मुर्ग़ी को गोश्त ख़रीद कर गुज़ारा हो रहा था. मगर हाल के दिनों में इसकी क़ीमतों में होने वाले बेतहाशा इज़ाफ़े के बाद अब बीफ़ और मुर्ग़ी के गोश्त की क़ीमत में अंतर बहुत कम रह गया है.’
कराची के बल्दिया टाउन में मुर्ग़ी का गोश्त बेचने वाले दुकानदार सईद अहमद से जब मुर्ग़ी के महंगे गोश्त के बारे में सवाल किया तो उन्होंने कहा कि वे ख़ुद महंगा माल ख़रीद रहे हैं, इसलिए वे भी महंगे दामों में बेचने पर मजबूर हैं.
पाकिस्तान में पिछले कुछ सप्ताहों में चिकन की क़ीमतों में बेतहाशा इज़ाफ़ा देखने को मिला है. देश के विभिन्न हिस्सों में चिकन की क़ीमत छह सौ से सात सौ रुपये प्रति किलो तक पहुँच गई है.
पाकिस्तान के सरकारी सांख्यिकी विभाग ने भी पिछले दो सप्ताहों में चिकन के मूल्यों में वृद्धि दर्शायी है जबकि विभाग की ओर से साप्ताहिक मूल्य समीक्षा में भी बताया गया है कि देश में चिकन के मूल्यों में वृद्धि हुई है.
पाकिस्तान में पोल्ट्री के कारोबार से जुड़े लोगों के अनुसार, चिकन के मूल्यों में वृद्धि का बड़ा कारण पोल्ट्री के कारोबार में बढ़ती हुई लागत है.
उनके अनुसार हाल के हफ़्तों में होने वाले इज़ाफ़े की वजह मांग का अधिक होना है जबकि चिकन की सप्लाई सामान्य बनी हुई है.
उनका कहना है कि ईद की वजह से चिकन की खपत बढ़ी है लेकिन बढ़ी हुई लागत की वजह से सप्लाई करने वालों ने चिकन की रसद में वृद्धि नहीं की, इसलिए मूल्यों में वृद्धि की गई है.
पोल्ट्री के कारोबार से जुड़े लोगों के अनुसार, पंजाब में गेहूं की कटनी के बाद वातावरण में प्रदूषण के कारण पोल्ट्री उद्योग में बीमारी भी आई. इस बीमारी में मुर्गि़यों को सांस लेने में तकलीफ़ हुई और इससे बड़ी संख्या में मुर्गि़यों की मौत हुई है जिसने चिकन के उत्पादन को प्रभावित किया है.
देश के विभिन्न भागों में ज़िंदा मुर्ग़ी और इसके गोश्त की क़ीमत में ईद से एक हफ़्ते पहले से इज़ाफ़ा शुरू हुआ जो ईद के सप्ताह में और बढ़ता चला गया.
कराची में एक किलो मुर्ग़ी के गोश्त की क़ीमत 600 रुपये किलो तक जा पहुंची जो अप्रैल के शुरू में सा़ढ़े तीन सौ से चार सौ रुपये प्रति किलो के बीच थी.
इसी तरह क्वेटा में इसकी क़ीमत साढ़े छह सौ रुपये तक जा पहुंची. लाहौर, इस्लामबाद और पेशावर में भी इसके मूल्यों में वृद्धि देखने में आई है.
कराची के रहने वाले पोल्ट्री किसान मोहम्मद हनीफ़ के पास गडाप और ठट्ठा में पोल्ट्री फार्म हैं. उन्होंने बीबीसी उर्दू से बात करते हुए इस बात की पुष्टि की कि चिकन के मूल्यों में वृद्धि हुई है. उन्होंने कहा कि पोल्ट्री फॉर्मिंग में ज़िंदा मुर्ग़ी की लागत 250 से 300 आ रही है और इसकी ख़ुदरा क़ीमत साढ़े 300 रुपये है जबकि मुर्ग़ी के गोश्त की क़ीमत 600 से 700 रुपये तक जा रही है.
उन्होंने बताया कि क्वेटा में इसलिए मूल्य अधिक है कि वहाँ चिकन की सप्लाई कराची से होती है. इसी तरह पेशावर में चिकन पंजाब के ऊपरी इलाक़ों से जाता है, जिसमें ट्रांसपोर्ट का ख़र्च शामिल होने से वहाँ मूल्य और अधिक हो जाता है.
मुर्ग़ी के मूल्यों में वृद्धि का कारण क्या है?
मुर्ग़ी के मूल्यों में होने वाली वृद्धि के बारे में पाकिस्तान पोल्ट्री एसोसिएशन साऊथ ज़ोन के अध्यक्ष सलमान मुनीर ने बीबीसी उर्दू को बताया कि चिकन के मूल्यों में वृद्धि का कारण इस कारोबार में लागत का बढ़ना है.
उन्होंने कहा कि लागत बहुत बढ गई है और ऐसी स्थिति में संभव नहीं कि सस्ती मुर्ग़ी बेची जाए.
उन्होंने बताया कि मुर्ग़ी के दानों की 50 किलो की बोरी जो कुछ समय पहले 1500 से 1800 रुपये तक में उपलब्ध थी, अब उसकी क़ीमत चार हज़ार रुपये तक जा पहुंची है.
इसी तरह दूसरे लागत मूल्यों में भी वृद्धि हुई है जैसे कि डीज़ल, पेट्रोल और बिजली की दरें. इनका कुल मिलाकर असर चिकन के बढ़े हुए मूल्य के रूप में सामने आया है.
चिकन के मूल्यों में दो सप्ताहों में होने वाली वृद्धि के बारे में सलमान मुनीर ने कहा कि इसका काराण यह है कि ईद से पहले और ईद के बाद के दिनों में मांग तो बढ़ गई लेकिन सप्लाई सामान्य ही रह गई.
उन्होंने बताया कि उत्पादन में वृद्धि नहीं हुई क्योंकि बहुत से फॉर्म बंद हो गए हैं, जिसका कारण यह था कि ये फॉर्म बढ़ती हुई लागत को बर्दाश्त करने में सक्षम नहीं थे.
सलमान मुनीर ने बताया कि ईद के दिनों में बढ़ी हुई मांग के बाद अब इसमें कमी देखने को मिल रही है. उन्होंने इस बात की संभावना व्यक्त की कि आने वाले सप्ताहों में मूल्यों में कमी देखी जा सकती है.
लाहौर में रहने वाले पाकिस्तान बड्र्ज़ के मोहम्मद अरशद ने बीबीसी उर्दू को यही वजह बताई. उन्होंने कहा कि देश में चिकन की मांग तो बढ़ी है लेकिन इसका उत्पादन इस मांग को पूरी नहीं कर सका जिसका कारण यह है कि लागत बढ़ने से उत्पादन कम हुआ है.
‘इसके साथ साथ गेहूं की कटनी के बाद होने वाले प्रदूषण से मुर्ग़ियों में सांस की बीमारी भी आ गयी जिसके कारण मुर्गि़यां बड़े पैमाने पर मरीं. इससे चिकन का उत्पादन काफी प्रभावित हुआ. ईद के बाद शादी के सीज़न की शुरुआत और होटलों के खुल जाने की वजह से भी मांग में इज़ाफ़ा हुआ और इसके नतीजे में क़ीमतें बढ़ गयीं.
चिकन के मूल्य का कारण उत्पादकों की जमाख़ोरी तो नहीं?
पाकिस्तान में जब भी चिकन के मूल्यों में वृद्धि होती है तो इसकी वजह उत्पादकों की जमाख़ोरी बताई जाती है और इसके बारे में राजनीति के कुछ बड़े लोगों का नाम भी लिया जाता है.
हालांकि पोल्ट्री उद्योग से जुड़े लोगों के अनुसार इसमें कोई सच्चाई नहीं है.
पाकिस्तान में बड़े पोल्ट्री उत्पादकों सादिक़ ब्रदर्ज़, साबिर पोल्ट्री, जदीद पोल्ट्री, बिग बड्र्ज़, इस्लामाबाद पोल्ट्री और कुछ और दूसरे नाम शामिल हैं.
इस बारे में जब पोल्ट्री कारोबार से संबंधित पंजाब के मुख्यमंत्री हमज़ा शरीफ़ पर लगने वाले आरोपों के बारे में पूछा गया कि क्या वे भी पोल्ट्री के व्यापार में शामिल हैं और मूल्यों को प्रभावित करते हैं, तो उन लोगों ने बताया कि हमज़ा शरीफ़ एक सीमित स्तर पर पोल्ट्री का काम करते हैं और कुछ समय पहले उन्होंने अपने पोल्ट्री फॉर्म बेच दिये थे.
पोल्ट्री किसान मोहम्मद हनीफ़ और पाकिस्तान बड्र्ज़ के मोहम्मद अरशद ने इस बारे में बताया कि ऐसे बयान राजनैतिक हैं और उनका सच्चाई से कोई लेना देना नहीं है.
मोहम्मद अरशद ने बताा कि हमज़ा शरीफ़ के तीन पोल्ट्री फॉर्म थे जो पोल्ट्री के कारोबार में काम करने वाले दूसरे बड़े समूहों की तुलना में कुछ भी नहीं और ये तीनों फॉर्म भी हमज़ा शरीफ़ ने कुछ साल पहले बेच दिये थे.
पाकिस्तान में चिकन का उत्पादन कितना होता है?
देश में पोल्ट्री के क्षेत्र में चिकन के उत्पादन के संबंध में पाकिस्तान पोल्ट्री एसोसिएशन की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़े के अनुसार पोल्ट्री के व्यापार का वार्षिक टर्नओवर 750 अरब रुपये है जिसमें पंद्रह लाख लोगों को रोज़गार मिल रहा है.
देश में पोल्ट्री फॉर्मों की संख्या बीस हज़ार से अधिक है जिनमें सालाना एक अरब बीस करोड़ ब्राॅयलर मुर्ग़ियों का उत्पाादन होता है जिससे ढाई अरब किलोग्राम से अधिक मांस मिलता है.
देश में चिकन की सत्तर प्रतिशत खपत व्यावसायिक क्षेत्रों में होती है और तीस प्रतिशत लोग घरों में इस्तेमाल करते हैं. पाकिस्तान में पोल्ट्री गोश्त की सालाना प्रति व्यक्ति खपत नौ किलोग्राम है. पाकिस्तान पोल्ट्री एसोसिएशन की वेबसाइट के अनुसार विकसित देशों में इस गोश्त की प्रति व्यक्ति खपत बहुत अधिक है. यह खपत अमेरिका में प्रति व्यक्ति 48 किलोग्राम है तो ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया में इसकी प्रति व्यक्ति खपत 44 किलोग्राम है.