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अमेरिकी कंपनियों को संभाल रहे विदेशों में जन्मे सीईओ, भारतीय मूल के कंपनी लीडर्स का दबदबा कितना?

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दुनिया के सबसे अमीर देश अमेरिका की कंपनियों में विदेशों में जन्में सीईओ का दबदबा है। अमेरिका की लीडिंग कंपनियों को विदेशी जमीन पर जन्में लोग संभाल रहे हैं। एपल हो या एडोबी माइक्रोसाफ्ट हो या आईबीएम हर कंपनी के टॉप पोस्ट पर अमेरिका से बाहर जन्मे लोग काबिज हैं। सबसे दिलचस्प बात यह है कि अमेरिकी कंपनियों के सीईओ की लिस्ट में भारतीय मूल के लोगों की संख्या सबसे अधिक है।गूगल, एडोबी, आईबीएम, माइक्रोसॉफ्ट, माइक्रॉन टेक्नोलॉजी, पेप्सिको, स्टारबक्स और वर्ल्ड बैंक जैसे दिग्गज प्रतिष्ठानों की कमान भारतीय मूल के लोगों के हाथ में है। भारतीय मूल के लीडर्स की प्रतिष्ठित लिस्ट में सुदर पिचई, सत्या नडेला और विश्व बैंक के अध्यक्ष अजय बग्गा जैसे बड़े नाम हैं। वहीं केएफसी की कमान एक पाकिस्तानी मूल के व्यक्ति के पास है। दुनिया के सबसे अमीर लोगों में शुमार और ट्विटर, टेस्ला और स्पेसएक्स जैसी कंपनियों के मुखिया एलन मस्क का जन्म भी अमेरिका में नहीं हुआ है। वे दक्षिण अफ्रीका में पैदा हुए हैं।

भारतीयों के नेतृत्व वाली कंपनियों का बाजार पूंजीकरण 6 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा

वर्तमान में भारतीयों के नेतृत्व या स्वामित्व वाली कंपनियों का बाजार पूंजीकरण 6 ट्रिलियन डॉलर से अधिक है, जो NASDAQ पर सूचीबद्ध सभी कंपनियों के कुल बाजार पूंजीकरण का 10% से ज्यादा है। इन दिग्गज अमेरिकी कंपनियों की सूची में एडोबी, अल्फाबेट, माइक्रोसॉफ्ट, आईबीएम, नोवार्टिस और स्टारबक्स जैसे बड़े नाम हैं। हालांकि इस लिस्ट में गैप, हरमन इंटरनेशनल, मास्टरकार्ड, मैच ग्रुप और पेप्सिको जैसी कंपनियां शामिल नहीं हैं, लेकिन लंबे समय तक इन कंपनियों का नियंत्रण भी भारतीय सीईओ के हाथ में रहा है। इन कंपनियों का बाजार पूंजीकरण में 700 अरब डॉलर है। यह कहना गलत नहीं होगा कि इन प्रमुख कंपनियों ने अपने भारतीय मूल के लीडर्स की अगुवाई में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है।

एक समय पर अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों के प्रवेश करने पर था रोक

अमेरिका में भारतीयों मूल के लोगों ने एक लंबा सफर तय किया है। उन्हें 1913 के कैलिफोर्निया एलियन लैंड लॉ, 1917 के एशियन बार्ड एक्ट, 1924 के जॉनसन-रीड एक्ट और अनगिनत नस्लीय बहिष्करण कानूनों और ज़ेनोफोबिक लहरों का सामना करना पड़ा है। एक समय ऐसा भी था जब नस्लभेदी कानूनों का सहारा लेकर भारतीयों को निर्वासित कर दिया गया था और दशकों तक कनाडा और अमेरिका में प्रवेश करने से रोक दिया गया। 1965 के आप्रवासन और राष्ट्रीयता अधिनियम ने भारतीयों के लिए अमेरिका में प्रवास करने के दरवाजे फिर से खोले। 90 और 2000 दशक मे जब आईटी कंपनियों में भारतीय का दखल बढ़ना शुरू हुआ तो हालात नाटकीय ढंग से बदले। आज, यह देखना “सामान्य” है कि अमेरिकी कंपनियां अपने अहम पदों पर विदेश में जन्में लोगों की नियुक्ति कर रही हैं और इस लिस्ट में भारतीयों का नाम अव्वल है।

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