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राजेश माहेश्वरी बोले- हमारा लक्ष्य हर साल 2.5 करोड़ विद्यार्थी हैं, पढ़ें बातचीत के अंश

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कंपनी के सफर, एजुटेक उद्योग की सफलता एवं चुनौतियां व तमाम मुद्दों पर एलन कॅरियर इंस्टीट्यूट के संस्थापक निदेशक राजेश माहेश्वरी से संजय अभिज्ञान की हुई बातचीत के अंश…

कोटा में 35 साल पहले सिर्फ आठ विद्यार्थियों के साथ शुरू हुई एक कोचिंग क्लास आज एलन कॅरियर इंस्टीट्यूट के नाम से जानी जाती है। देश-विदेश में इसके विद्यार्थियों की संख्या 2.86 लाख का आंकड़ा छू चुकी है। पिछले साल जेम्स मर्डोक और उदय शंकर के नेतृत्व वाली कंपनी बोधि ट्री सिस्टम्स ने एलन की 36 फीसदी हिस्सेदारी करीब 4,590 करोड़ रुपये में खरीदी थी।

    • 35 साल पूरे होने पर एलन ने 1,000 विद्यार्थियों को बिल्कुल फ्री पढ़ाने का संकल्प लिया है।
    • इंस्टीट्यूट के कोटा कैम्पस में उत्तर प्रदेश और बिहार के 60,000-70,000 विद्यार्थी हैं। धीरे-धीरे यूपी-बिहार में भी प्रवेश करने की योजना है। बाकी डिजिटल टच तो है ही वहां के छात्रों के साथ।

कंपनी के अतीत के बारे में थोड़ा और बताएं। कब एवं कैसे इसकी शुरुआत हुई?
वह 1986 का कोटा शहर था। मैं मैकेनिकल ब्रांच में पॉलीटेक्नीक का कोर्स कर रहा था। उन्हीं दिनों दो छात्र मेरे पास पढ़ने आने लगे थे। उन्हें मेरा फिजिक्स-कैमिस्ट्री पढ़ाने का तरीका जम गया। उन्हें पढ़ने में और मुझे पढ़ाने में मजा आने लगा। सुबह 10 से शाम 4 तक बजे मैं पढ़ने जाता था। शाम 4:30 से रात 10 बजे तक पढ़ाता था। फिर, बायोलॉजी पढ़ाने वाले एक टीचर मिल गए।

कोटा में शायद पहली बार ऐसा हुआ, जब एक ही छत के नीचे विद्यार्थियों को फिजिक्स, कैमिस्ट्री और बायोलॉजी की कोचिंग मिलने लगी। बात बनती नजर आई तो एक अप्रैल, 1988 को जेके कॉलोनी के बाहर बल्लभगढ़ी में 600 रुपये महीने के किराये पर एक कमरा लिया। पहले बैच में आठ विद्यार्थियों के साथ एलन की नींव पड़ी। फिर, दोनों छोटे भाई इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद जुड़ गए। फिर बडे़ भाई भी जेके की नौकरी छोड़ शामिल हो गए।

सिर्फ सात साल में 2.5 करोड़ विद्यार्थियों का सालाना आंकड़ा छूने का लक्ष्य क्या कुछ ज्यादा महत्वाकांक्षी नहीं है?
1988 में आठ विद्यार्थियों से शुरू हुआ यह सफर अगर 2022 में 2.66 लाख तक पहुंच गया तो 2030 तक 2.5 करोड़ की मंजिल को छूना कैसे मुमकिन नहीं है? देश की आबादी 140 करोड़ से अधिक है। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा युवा आबादी का है। 35-40 करोड़ युवा कॅरियर लक्ष्य को लेकर तैयारी कर रहे हैं। मतलब, लेंग्वेज कोर्स, आईएएस, बैंकिंग, बीएड, सरकारी नौकरी वगैरह। इनमें से 25 करोड़ भी कोचिंग लेने में रुचि रखते हैं तो यह विराट आंकड़ा है। हम तो इसका महज 10 फीसदी हिस्सा ही देख रहे हैं। इस लिहाज से 2.5 करोड़ अव्यावहारिक लक्ष्य नहीं है।

यह लक्ष्य हासिल करने की रणनीति क्या है?
रणनीति है। बड़ा लक्ष्य, सब्र और योजना है। देखिए, हम जल्दी में नहीं हैं। सात साल का वक्त अगर बहुत बड़ा नहीं तो छोटा भी नहीं। धीरे-धीरे एक-एक व्यवस्था बनाकर इसे हासिल करेंगे। हमारी नजर केवल 11वीं या 12वीं क्लास पर नहीं है। हम नर्सरी से लेकर 12 वीं तक के बच्चों को देख रहे हैं। साथ ही, जेईई मेन्स, एडवांस और नीट से आगे सोच रहे हैं। हम हर तरह के कॅरियर के लिए कोचिंग देने के रास्ते पर चल रहे हैं। कोर्स भी बढ़ेंगे और आयु वर्ग भी बढ़ेंगे। ऑफलाइन क्लासेज भी बढ़ेंगी और डिजिटल क्लासेज भी। देसी स्टूडेंट भी बढ़ेंगे और विदेशी भी। इसलिए, हमारा स्लोगन है…घर-घर एलन, हर घर एलन।

एलन की कारोबारी रणनीति में छोटे शहर व निम्न-मध्यम वर्गीय विद्यार्थी कितने अहम हैं?
दारोमदार ही उन पर है। एक मिसाल देखें। कोटा से 100 किमी दूर भवानीमंडी है। ग्रामीण क्षेत्र है। वहां का छात्र पढ़ना चाहेगा तो कोटा ही आएगा। संघर्ष का जो माद्दा भारतीय छात्रों को विशिष्ट बनाता है, जिसकी बदौलत वे देश-विदेश की बड़ी कंपनियों के मुखिया बनते हैं, वह गांव-देहात के परिवेश में ही निखरता है। हमारे कारोबार का बड़ा हिस्सा उनके जरिये आता है। अच्छा लगता है, जब कुली का बच्चा या सब्जी वाले का बच्चा एंट्रेस क्लियर करता है।

नाम की बात करते हैं। देसी कोचिंग कंपनी का नाम विदेशी जैसा क्यों?
विदेशी दिखता है, पर वास्तव में है नहीं। हमारे पिता एलएन माहेश्वरी यानी लक्ष्मी नारायण माहेश्वरी के नाम पर कंपनी का नाम रखा गया था और एलएन से ही एलन बन गया।

इस आत्मविश्वास के पीछे बोधि ट्री सिस्टम्स के निवेश का क्या योगदान है?
वैसे तो एलन का कामकाज बिना किसी निवेश के भी अच्छा चल ही रहा था। मगर, जब इरादा घर-घर एलन का हो गया तो उसके लिए निवेश के सहारे की गुंजाइश थी। उदयशंकर भी अपनी कंपनी का निवेश एजुकेशन उद्योग में करना चाहते थे। वह कई क्षेत्रों में बड़े-बडे़ काम कर चुके हैं। इस तरह, यह साझेदारी आरंभ हुई। बोधि ट्री जैसे बड़े नाम साथ आए हैं तो बड़ा रोल निभाने में फायदा ही होगा। हम मिलकर काम को आगे बढ़ाएंगे और मंजिल हासिल करेंगे। बाहरी निवेश तो दूसरी कंपनियों में भी आ रहा है, लेकिन समझना होगा कि इस उद्योग में सिर्फ पैसे या निवेश से काम नहीं चलता। लगातार नतीजे देने होते हैं। तजुर्बा, साख, वजन भी होने जरूरी हैं।

नतीजे की बदौलत एलन इस मुकाम तक पहुंचा। 11 साल में एलन के 18 विद्यार्थियों ने जेईई और प्री-मेडिकल में ऑल इंडिया टॉप किया है। 2020 के नीट प्रवेश परीक्षा में शोएब आफताब  ने 720 में 720 अंक लाकर कीर्तिमान बनाया था।

विद्यार्थियों की आत्महत्याओं के लिए भी कोटा चर्चा में रहा है। असफलताएं स्वीकारने की कोचिंग कैसे देते हैं?  
सबसे बड़ा काउंसलर तो टीचर ही होता है। उसके अलावा, सरकारी नियमों के मुताबिक स्पेशल काउंसिलिंग सेशन भी आयोजित कराते हैं। आत्महत्याएं तो देश में हर जगह होती हैं। कोटा की घटना ज्यादा चर्चा में आ जाती है। अकेलापन, डिप्रेशन किसी खास शहर या खास आयुवर्ग की समस्या नहीं है।

लेकिन, क्या एलन का फीस स्ट्रक्चर आम मध्यम वर्गीय की जेब के मुताबिक है?
हमारी कोशिश रहती है कि प्रतिभा की यात्रा पैसे की कमी से न रुके। हम तरह-तरह के एंट्रेस टेस्ट और वजीफों से फीस तय करते हैं। उसका दायरा 80,000 रुपये से लेकर 1.50 लाख रुपये तक रहता है। अभी एलन के 35 साल पूरे होने पर हमने 1,000 विद्यार्थियों को बिल्कुल फ्री पढ़ाने का संकल्प लिया है

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