विश्व मास्टर्स एथलेटिक्स में पदक जीत चुकीं शीबा बताती हैं कि रोजाना की भागदौड़ और जल्दी फैक्टरी पहुंचने के लिए लगाई गई दौड़ ने उन्हें एथलीट बना दिया। वह फैक्टरी से अनुमति लेकर शाम को जल्दी निकल जाती हैं और लोगों के घरों पर काम करती हैं।
शीबा ने न तो स्कूल स्तर पर कभी एथलेटिक्स किया और न ही बाद में उन्हें किसी ने एथलीट बनने के लिए प्रेरित किया। दो वक्त की रोटी के लिए काजू की फैक्टरी में समय पर पहुंचने के लिए लगाई गई रोजाना की दौड़ और तेज चलने ने उन्हें एथलीट बना दियाफैक्टरी के अलावा दूसरों के घरों में काम करने वाली 38 वर्षीय दो बच्चों की मां शीबा मास्टर्स एथलीट में देश ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत रही हैं। माय्यनाड़ की शीबा को नवंबर में फिलीपींस में होने वाली एशियाई मास्टर्स एथलेटिक्स में खेलने जाना है, लेकिन उनके पास वहां जाने के लिए डेढ़ लाख रुपया नहीं है। अभी तक उनकी मदद को भी कोई आगे नहीं आया है।
ट्रैक सूट पहनकर अभ्साय करने के दौरान बना मजाक
विश्व मास्टर्स एथलेटिक्स में पदक जीत चुकीं शीबा बताती हैं कि रोजाना की भागदौड़ और जल्दी फैक्टरी पहुंचने के लिए लगाई गई दौड़ ने उन्हें एथलीट बना दिया। वह फैक्टरी से अनुमति लेकर शाम को जल्दी निकल जाती हैं और लोगों के घरों पर काम करती हैं। इसके बाद उन्हें जो भी समय मिलता है वह ट्रैक सूट पहनकर अभ्यास करती हैं।
विश्व मास्टर्स एथलेटिक्स में पदक जीत चुकीं शीबा बताती हैं कि रोजाना की भागदौड़ और जल्दी फैक्टरी पहुंचने के लिए लगाई गई दौड़ ने उन्हें एथलीट बना दिया। वह फैक्टरी से अनुमति लेकर शाम को जल्दी निकल जाती हैं और लोगों के घरों पर काम करती हैं। इसके बाद उन्हें जो भी समय मिलता है वह ट्रैक सूट पहनकर अभ्यास करती हैं।
इस दौरान लोग उनका मजाक उड़ाते हैं। वे कहतें कि इस उम्र में उन्हें और कोई काम नहीं मिला, लेकिन वे उन्हें नजरअंदाज करती हैं। वह कहती हैं कि उन्होंने कभी स्कूल स्तर पर एथलेटिक्स में भाग नहीं लिया, लेकिन जब से वह इस खेल में आई हैं तब से यह उनका जुनून गया है। शीबा उनकी ओर से जीते गए खिड़की पर टंगे पदक और झोले में भरे ढेरे प्रमाण पत्रों को दिखाती हैं।
पहले कई लोग मदद के लिए आए हैं आगे
राज्य सरकार की ओर से मास्टर्स एथलेटिक्स को मान्यता नहीं दे रखी गई है। इस कारण उन्हें सरकारी मदद नहीं मिल पाती है और खुद ही अंतरराष्ट्रीय इवेंटों में खेलने के लिए राशि जुटानी होती है। वह बताती हैं कि इससे पहले वह कई अंतरराष्ट्रीय मास्टर्स एथलीट मीट और देश में होने वाली मीटों में पदक जीत चुकी हैं। हर बार उनकी मदद को कोई न कोई दयालु इंसान सामने आया है।
राज्य सरकार की ओर से मास्टर्स एथलेटिक्स को मान्यता नहीं दे रखी गई है। इस कारण उन्हें सरकारी मदद नहीं मिल पाती है और खुद ही अंतरराष्ट्रीय इवेंटों में खेलने के लिए राशि जुटानी होती है। वह बताती हैं कि इससे पहले वह कई अंतरराष्ट्रीय मास्टर्स एथलीट मीट और देश में होने वाली मीटों में पदक जीत चुकी हैं। हर बार उनकी मदद को कोई न कोई दयालु इंसान सामने आया है।
उम्मीद इस बार भी मदद कोई आगे आएगा कोई
बीते वर्ष बंगाल में हुई राष्ट्रीय मास्टर्स में शीबा ने 400 मीटर रिले और 3000 मीटर पदचाल में पदक जीते। यहीं से उन्होंने एशियाई मास्टर्स के लिए क्वालिफाई किया। शीबा को विश्वास है कि इस बार भी उनकी मदद को कोई न कोई आगे आएगा और उनका एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय इवेंटों में पदक जीतने का सपना पूरा होगा।
बीते वर्ष बंगाल में हुई राष्ट्रीय मास्टर्स में शीबा ने 400 मीटर रिले और 3000 मीटर पदचाल में पदक जीते। यहीं से उन्होंने एशियाई मास्टर्स के लिए क्वालिफाई किया। शीबा को विश्वास है कि इस बार भी उनकी मदद को कोई न कोई आगे आएगा और उनका एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय इवेंटों में पदक जीतने का सपना पूरा होगा।