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ईसाइयों और मुस्लिमों में भी दलित, उन्हें रिजर्वेशन क्यों नहीं:न आपस में शादियां करते, न ही रिश्ता रखते; ईसाई-मुस्लिमों में ऐसा है जातिवाद

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केस-1: ‘मैं पसमांदा कम्युनिटी से आता हूं। अरेबिक से BA किया। पसमांदा वैसे ही हैं, जैसे हिंदुओं में दलित। पढ़ा-लिखा होने के बाद भी मुझे कहीं नौकरी नहीं मिल रही। मुसलमानों में जो पिछड़ी जातियां हैं, उन्हें आरक्षण मिलना चाहिए।’ -मोहम्मद अहसान, दिल्ली

केस-2: ‘मेरे दादा ईसाई धर्म में कन्वर्ट हुए थे। तब हमारा परिवार पंजाब में रहता था। मैं ईसाई पेरेंट्स के घर ही पैदा हुआ। मुझे लगता है, हमें कन्वर्ट होने का फायदा नहीं हुआ, उल्टा नुकसान ये है कि हमें हिंदू दलितों की तरह सरकार की तरफ से रिजर्वेशन नहीं मिल पाता।’ -एडगर जेसराल्ड, UP

मोहम्मद अहसान और एडगर जेसराल्ड के धर्म अलग हैं, लेकिन दोनों की कहानी एक मोड़ पर आकर मिल जाती है। दोनों पिछड़े और दलित समुदाय से आते हैं, लेकिन उनके पास हिंदुओं की तरह रिजर्वेशन नहीं है।

मुस्लिमों और ईसाइयों को रिजर्वेशन न मिलने का मामला केरल के विधायक ए. राजा की विधायकी जाने के बाद चर्चा में आ गया। 20 मार्च 2023 को केरल हाईकोर्ट ने ए. राजा का चुनाव रद्द कर दिया था।

CPM नेता ए. राजा हिंदू से ईसाई बने हैं। उन्होंने शेड्यूल्ड कास्ट (SC) के लिए रिजर्व सीट देवीकुलम से चुनाव लड़ा था और खुद को दलित हिंदू बताया। ए. राजा पर आरोप लगा कि उन्होंने दलित होने का फर्जी सर्टिफिकेट बनवाकर चुनाव लड़ा था। शादी और दूसरे फैक्ट्स से केरल हाईकोर्ट ने पाया कि राजा हिंदू नहीं, ईसाई हैं। इसलिए उनका चुनाव अमान्य घोषित कर दिया गया।

मुस्लिम और ईसाइयों में शेड्यूल्ड कास्ट (SC) का दर्जा देने पर सुप्रीम कोर्ट भी सुनवाई कर रहा है। 7 दिसंबर, 2022 को हुई सुनवाई में केंद्र सरकार ने कहा कि ऐसे दलित, जो धर्म बदलकर मुस्लिम और ईसाई बन गए हैं, उन्हें आरक्षण का फायदा नहीं मिलना चाहिए।

सरकार ने दलील दी कि ‘इस्लाम और ईसाई धर्म में हिंदुओं की तरह कास्ट सिस्टम यानी जाति व्यवस्था नहीं है, इसलिए यहां छुआछूत नहीं होता। जब छुआछूत नहीं होता, तो इन्हें रिजर्वेशन की भी जरूरत नहीं है। जो इस्लाम या ईसाई धर्म में कन्वर्ट हुए हैं, उन्हें भी रिजर्वेशन नहीं दिया जा सकता।’

देश में अभी हिंदू, सिख और बौद्ध को छोड़कर किसी भी धर्म के लोगों को शेड्यूल्ड कास्ट नहीं माना जाता है। सवाल है कि क्या सच में मुसलमानों और ईसाइयों में जातिगत भेदभाव या छुआछूत है। ये सवाल हमने उन्हीं लोगों से पूछा, जो इस कैटेगरी में आते हैं और खुद सरकारी सुविधाओं या सामाजिक हैसियत में भेदभाव झेल चुके हैं।

 

पहले मुस्लिमों की बात…
इस्लाम में जातियों के भेदभाव के लिए जगह नहीं है, लेकिन भारत के मुसलमानों में जाति व्यवस्था दिख जाती है। इस्लामिक स्कॉलर यूसुफ अंसारी कहते हैं कि हिंदू समाज वर्ण के आधार पर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र में बंटा है, उसी तरह मुस्लिम समाज को तीन हिस्सों में बांटा गया है।

  1. अशराफ: वे मुस्लिम जिनके पूर्वज अफगानिस्तान, ईरान और सऊदी अरब से भारत आए। इनका दर्जा मुसलमानों में सबसे ऊपर माना जाता है। ये वैसे ही हैं, जैसे हिंदुओं में ब्राह्मण।
  2. अजलाफ: वे लोग, जिनके पूर्वज हिंदू और गैर सवर्ण जातियों से थे, बाद में कन्वर्ट होकर मुसलमान बने।
  3. अरजाल: वे लोग जो दलित थे और कन्वर्ट होकर मुसलमान बने, पसमांदा मुस्लिम इसी वर्ग में आते हैं।

मुसलमानों की जाति व्यवस्था पर 1960 में गौस अंसारी ने ‘मुस्लिम सोशल डिवीजन इन इंडिया’ नाम की किताब लिखी थी। उन्होंने उत्तर भारत में मुसलमानों को चार समूहों में बांटा था- सैयद, शेख, मुगल और पठान।

गौस अंसारी के अलावा इम्तियाज अहमद ने भी 1978 में ‘कास्ट एंड सोशल स्ट्रैटिफिकेशन एमॉन्ग द मुस्लिम्स’ में बताया था कि कैसे इस्लाम कबूल करने के बावजूद हिंदुओं की जातीय संरचना मुस्लिम समाज में भी जस की तस जगह पा गई है।

यूसुफ अंसारी कहते हैं, ‘OBC और दलित समाज से कन्वर्ट होकर जो लोग मुसलमान बने हैं, उन्हें बराबरी का दर्जा नहीं दिया जाता। आपस में शादियां नहीं होतीं। रोटी-बेटी का रिश्ता नहीं है।’

देवबंदी लीडर रहे मौलाना अशरफ अली थानवी (19 अगस्त 1863 से 4 जुलाई 1943) की एक किताब है बहिश्ति जेवर। किताब के मुताबिक, शरीयत में इस बात का महत्व है कि शादी बराबरी वालों में की जाए। उन्होंने बताया है कि कौन किसके बराबर है। कम्युनिटी के नाम लिखकर कहा है कि ये इस्लाम में बराबर तो हैं, लेकिन इनके साथ शादी या रिश्तेदारी नहीं करनी चाहिए।’

पिछड़े मुस्लिमों को रिजर्वेशन का सवाल पुराना
हिंदुओं में जैसे दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा और संविधान से आरक्षण मिला है, वैसा मुस्लिमों में नहीं है। मुसलमानों में आरक्षण का सवाल कई दशक पुराना है। कुछ मुस्लिम कम्युनिटी को OBC कैटेगरी में आरक्षण मिलता भी है।

सेंटर फॉर पब्लिक इन्ट्रेस्ट लिटिगेशन ने सुप्रीम कोर्ट में ईसाई या मुस्लिम बन चुके दलितों को आरक्षण नहीं दिए जाने के खिलाफ याचिका दायर की है। 2004 से ये मामला कोर्ट में है।

दिल्ली के शरीक अहमद शिकायती लहजे में कहते हैं, ‘मैं और मेरी बहन पढ़े-लिखे हैं, लेकिन कहीं नौकरी नहीं मिल रही। हमें आरक्षण मिला होता तो नौकरी मिलना आसान होता।’

नौकरी न मिलने का दुख मोहम्मद अहसान को भी है। वे कहते हैं, ‘मुसलमानों में पिछड़ी जातियां हैं, उन्हें आरक्षण मिलना चाहिए। हमारे लोग पढ़ने-लिखने के बावजूद बेकार घूम रहे हैं।’

मुसलमानों के आरक्षण पर इस्लामिक स्कॉलर यूसुफ अंसारी बताते हैं, ‘26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ, तब आर्टिकल-341 के तहत शेड्यूल्ड कास्ट (SC) के लिए आरक्षण दिया गया। उसमें मजहब की पाबंदी या धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं था।’

‘10 अगस्त 1950 को आए राष्ट्रपति के आदेश में कहा गया कि हिंदू धर्म से अलग कोई और धर्म मानने वाला व्यक्ति शेड्यूल्ड कास्ट (SC) कैटेगरी में नहीं हो सकता। इस ऑर्डर की वजह से वे दलित, जिन्होंने सिख, बौद्ध, मुस्लिम या फिर ईसाई धर्म अपनाया था, आरक्षण के दायरे से बाहर हो गए। 1956 में सिख दलित और 1990 में बौद्ध इसमें शामिल कर लिए गए, लेकिन मुसलमान और ईसाई आज तक बाहर हैं।’

जन्म से लेकर दफनाने तक भेदभाव
पसमांदा मुसलमानों के साथ हो रहे भेदभाव पर पूर्व राज्यसभा सांसद अली अनवर दो दशक से आंदोलन कर रहे हैं। वे कहते हैं, ‘कई जगह जाति की बुनियाद पर मस्जिदें और कब्रिस्तान बनाए गए हैं। पसमांदा मुस्लिमों को दफनाने को लेकर कई बार झगड़े होते हैं। कई मुकदमे भी हुए, लोगों के जेल जाने तक की नौबत आई है। उन्हें सैयद-पठानों के कब्रिस्तान में दफनाने से रोका जाता है।’

कर्नाटक में मुस्लिमों का आरक्षण खत्म, मामला सुप्रीम कोर्ट में
24 मार्च 2023 को कर्नाटक की BJP सरकार ने मुस्लिमों को मिलने वाला 4% आरक्षण खत्म कर दिया था। मामला सुप्रीम कोर्ट में है। अगली सुनवाई 25 अप्रैल को होगी। कर्नाटक में मुस्लिमों को धार्मिक अल्पसंख्यक होने के नाते OBC में रिजर्वेशन मिलता था।

18 अप्रैल को हुई सुनवाई में कर्नाटक सरकार की तरफ से पेश हुए SG तुषार मेहता ने जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच से फैसला टालने की मांग की। उन्होंने कहा कि ‘राज्य सरकार अगली तारीख तक अपने फैसले के आधार पर नई नियुक्तियां नहीं करेगी।’

अब ईसाइयों की बात…

इंडियन कैथोलिक चर्च मान चुका है भेदभाव की बात
2016 में इंडियन कैथोलिक चर्च ने पहली बार माना था कि दलित ईसाइयों के साथ छुआछूत और भेदभाव होता है। हायर लेवल की लीडरशिप में उनकी हिस्सेदारी न के बराबर है। ये बात कम्युनिटी की सबसे बड़ी बॉडी कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया में एक पॉलिसी डॉक्यूमेंट के जरिए कही गई थी। 44 पेज के इस डॉक्यूमेंट में माना गया कि कैथोलिक चर्च इन इंडिया के 1.90 करोड़ मेंबर्स में 1.20 करोड़ मेंबर दलित ईसाई हैं।

‘कन्वर्टेड ईसाइयों को कम्युनिटी से मदद नहीं, भेदभाव भी होता है’
एडगर जेसराल्ड UP के रहने वाले हैं। झांसी जिले के बबीना में उनका घर है। एडगर फौज में थे और रिटायर होने के बाद स्कूल चलाते हैं। वे कहते हैं, ’चर्च इतने बड़े-बड़े इंस्टीट्यूट चलाता है, लेकिन दलित ईसाइयों को उसमें एडमिशन नहीं मिल पाता।’

‘कम्युनिटी के नाम पर ही ये संस्थान चलाए जा रहे हैं, तो फिर कम्युनिटी को इसका फायदा क्यों नहीं दिया जा रहा। सिर्फ चर्च से जुड़े प्रभावशाली ईसाइयों को ही सारे फायदे क्यों मिल रहे हैं। मैं कई साल से ईसाई दलितों के लिए लड़ रहा हूं। चर्च के डर से सफेद नकाबपोशों के खिलाफ दलित कुछ नहीं कहते।’

ऐसा ही अनुभव एलिजाबेथ जेम्स का है। वे कहती हैं, ‘मैं कन्वर्टेड नहीं, मूलरूप से ईसाई हूं। पति अब नहीं रहे। चार बेटियां और एक बेटा है। सबकी शादी हो गई। सभी अलग रहते हैं, मैं अकेली रहती हूं। मुझे कम्युनिटी से कभी कोई मदद नहीं मिल पाई। फादर के पास जाओ, तो वो डांटकर भगा देते हैं। सरकार की किसी स्कीम का मुझे फायदा नहीं मिल रहा। बेटी हर महीने 3 हजार रुपए भेजती है, उसी से जिंदगी जैसे-तैसे कट रही है।’

60 से 70% ईसाई दलित, लेकिन भेदभाव का शिकार
मैंने ईसाई दलितों से भेदभाव के बारे में आरएल फ्रांसिस से बात की। वे 22 साल से पुअर क्रिश्चियन लिबरेशन मूवमेंट चला रहे हैं। फ्रांसिस कहते हैं, ‘भारत में रह रहे ईसाइयों में 60 से 70% तक दलित ईसाई हैं, यानी वे लोग जो कन्वर्ट होकर ईसाई धर्म में आए थे। कन्वर्ट इसलिए हुए थे कि हिंदू धर्म में उनके साथ भेदभाव होता था। उन्होंने सोचा कि ईसाई धर्म में ये सब नहीं झेलना पड़ेगा, क्योंकि यहां जाति का सिस्टम नहीं होता, लेकिन ये सच नहीं है। कन्वर्ट हुए लोग ईसाई बनकर ज्यादा फंस गए हैं।’

‘अब दलित ईसाइयों की लड़ाई चर्च में उनके रोल को लेकर है। ईसाइयों में चर्च सबसे मजबूत संस्था है, जो यहां मजबूत होता है, वही सोसाइटी में भी मजबूत होता है। 1970 के दशक में चर्च ने नई रणनीति अपनाई। दलित बैकग्राउंड से आने वाले ईसाइयों को शेड्यूल्ड कास्ट में डालने की मांग की गई, हिंदुओं की तरह आरक्षण मांगा।’

फ्रांसिस कहते हैं, ‘इससे चर्च पर अधिकार करके बैठे लोगों को दो फायदे दिखे। पहला यह कि दलित बैकग्राउंड वाले ईसाइयों को रिजर्वेशन में शामिल कर लिया गया, तो कन्वर्जन का रास्ता बड़े लेवल पर खुल जाएगा। दूसरा, ईसाई दलित चर्च के अंदर जिन राइट्स की मांग कर रहे हैं, वो कमजोर पड़ जाएंगे। उन्हें आसानी से आइडेंटिफाई भी किया जा सकेगा।’

हालांकि अब तक दलित ईसाइयों को न रिजर्वेशन मिला है और न ही चर्च में उनकी स्थिति मजबूत हो पा रही है। हालात ये हैं कि आज भारत में कैथोलिक चर्च में 174 आर्कडायसिस हैं, जिनमें 30 आर्कबिशप में कोई दलित नहीं है।

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