बिना सेवई ईद की मिठास अधूरी है। ईद-बकरीद पर इससे ही घरों में दस्तरख्वान सजते हैं। बनारस की सेवइयों का वाकई कोई जवाब नहीं। यही वजह है कि यहां की सेवइयों के मुरीद सात समंदर पार भी हैं। ईद पर ही बनारसी सेवईं की खपत छह से सात सौ टन हो जाती है। बनारस में इसका कारोबार दो से तीन करोड़ का होता है।
बनारस के भदऊ चुंगी इलाके में सेवई मंडी है। यहां सौ साल पहले से सेवईं बनती है। बनारस की किमामी सेवईं ही अन्य शहरों में बनारसी सेवईं के नाम जानी जाती है। कोरोना संक्रमण के चलते दो साल सेवईं का कारोबार जरूर प्रभावित हुआ लेकिन बीते दो साल से कारोबार ने फिर से जोर पकड़ा है। व्यापारियों की मानें तो पिछले साल के मुकाबले इस बार 20 फीसदी मांग ज्यादा है। हालांकि बारिश, बिजली कटौती और मैदा महंगा होने से उत्पादन पर 10 प्रतिशत का असर पड़ा है।
मंडी में ईद व बकरीद को देखते हुए सेवई करीब पांच माह तक बनती है। ईद के मद्देनजर दो माह उत्पादन ज्यादा होता है। पवन ने बताया कि प्रतिदिन 10 से 12 टन सेवईं बनाई जाती है। इस समय कारीगर भी आसपास के जिलों से बुलाए जाते हैं। अभी 10 दिन और सेवईं बनेगी।
बनारस की आबोहवा है अनुकूल
87 साल के व्यापारी अनंतलाल केशरी ने बताया कि मैंने हाथ से सेवईं बनाना शुरू किया था। आज मशीन से बन रही है। बनारसी सेवईं की अलग पहचान है, क्योंकि यहां की हवा और पानी इसके अनुकूल है। इसलिए इसकी बनावट अच्छी होती है। और शहरों में खासकर पानी खारा होता है।
आसाम, गुवाहाटी, दिल्ली, कोलकाता, अहमदाबाद, नागपुर, सुरत, मुंबई, चैन्नई, रामेश्वरम़़, गोवा, अमृतसर, लुधियाना, पटना, जयपुर आदि शहरों में सेवईं भेजी गई है। अशर्फीलाल ने बताया कि यहां की सेवईं खाड़ी देशों में भी भेजी जाती है। सऊदी में नौकरी कर रहे अर्दली बाजार के मोहम्मद रैयान व जौनपुर के मूल निवासी और बनारस में रहने वाले गुलाम हैदर भी बनारसी सेवईं ही पसंद करते हैं। रैयान के भाई इसार और गुलाम के भाई गुड्डू ने दालमंडी से सेवईं खरीदकर वहां भेजा है। उनका कहना है कि उनको यहां की सेवई पसंद है।