इंसान चाहे तो क्या नहीं कर सकता। वो अपनी मेहनत से पत्थर पर भी फूल खिला सकता है।
ये कहना है सीकर जिले के गांव बेरी की संतोष देवी खेदड़ का। संतोष की कथनी और करनी एक है। वे इंसान की मेहनत पर इसलिए यकीन करती हैं क्योंकि खुद संतोष ने बंजर जमीन पर बागवानी खेती करने का करिश्मा किया है। उन्हें कई अवॉर्ड मिले हैं। महज 5 बीघा जमीन से वे सालाना 40 लाख की कमाई कर रही हैं।
म्हारा देस की खेती में आज बात महिला किसान संतोष खेदड़ और उनके पति रामकरण की।
कामकाजी महिला का नाम लेते ही पुरुषों की तरह सूट-टाई पहने फाइल बैग लेकर ऑफिस जाती आधुनिक महिला की छवि दिखाई देती है। हम उन करोड़ों महिलाओं को भूल जाते हैं जो रोजाना खेतों में जाती हैं, अन्न उपजाती हैं, फल और सब्जियों की पौध तैयार करती हैं। वे भी कामकाजी महिलाएं हैं। आज हम आपको ऐसी कामकाजी महिला से मिलाएंगे जो पारंपरिक घाघरा-लूगड़ी पहनकर बागवानी खेती करती हैं। ये हैं संतोष देवी खेदड़।
सीकर का बेरी गांव शुष्क इलाकों में शामिल है। यहां भूजल स्तर बहुत नीचे चला गया है। जमीन रेतीली है। इसी गांव में 5 बीघा जमीन पर संतोष देवी (48) की नर्सरी और फलों के बाग हैं। संतोष देवी और उनके पति रामकरण (50) को विरासत में 5 बीघा बंजर जमीन मिली थी। उसी जमीन पर दोनों ने जी-तोड़ मेहनत की और अनार-सेब व अन्य फलदार पौधे लगाए। उसी जमीन पर अब शेखावाटी कृषि फार्म एवं नर्सरी सेंटर चल रहा है। यह संतोष और रामकरण की मेहनत का नतीजा है।
इलाके के रोल मॉल हैं संतोष-रामकरण
संतोष और रामकरण इलाके के दूसरे किसानों को अब ऑर्गेनिक खेती की ट्रेनिंग दे रहे हैं। उन्हें बताते हैं कि कम जमीन में ऑर्गेनिक खेती कर लाखों रुपए कमाए जा सकते हैं। बेरी गांव का यह किसान दंपती इलाके के किसानों का रोल मॉडल है।
संतोष देवी ने बताया – मेरा पीहर झुंझनूं में है। शादी 1989 में 15 साल की उम्र में सीकर जिले के बेरी गांव के रामकरण खेदड से हुई। पांचवी क्लास तक ही पढ़ाई कर पाई और पिता के साथ खेतों पर ही जुटी रहती थी। 12 साल की कम उम्र में ही खेती का हर तौर-तरीका सीख गई थी।
होमगार्ड की नौकरी करते थे, सीनियर ने दिखाया बाग
शादी के वक्त रामकरण होमगार्ड थे। रामकरण के 2 भाई सरकारी नौकरी में थे। 2008 की बात है, होमगार्ड की नौकरी से रामकरण को हर महीने 3 हजार रुपए की सैलरी मिल रही थी। इस सैलरी में घर चलाना, बच्चों को पढ़ाना मुश्किल हो रहा था।
रामकरण के पिता के पास 20 बीघा बारानी बंजर जमीन थी। तीन भाईयों में उन्होंने 5-5 बीघा जमीन बांट दी और एक हिस्सा खुद रख लिया। जमीन पर रेतीले धोरे थे। इस जमीन पर खेती करने की सोचना भी मूर्खता थी। जमीन पर कोई ट्यूबवेल भी नहीं था, न बिजली कनेक्शन था।
संतोष के पति रामकरण ने बताया कि 2008 में करौली में होमगार्ड की नौकरी के दौरान उनके एक सीनियर अधिकारी पृथ्वीराज मीणा उसे अपने बगीचे में लेकर गए। बगीचे में अनार के पेड़ थे। पृथ्वीराज ने अनार की खेती के बारे में बताया। रामकरण ने यह बात आकर पत्नी संतोष को बताई। संतोष ने कहा – नौकरी छोड़ दो, दोनों मिलकर जमीन पर मेहनत करेंगे, अनार का बगीचा लगाएंगे।
अनार के पौधे खरीदने के लिए बेच दी भैंस
संतोष ने बताया कि राष्ट्रीय बागवानी विकास योजना के तहत वर्ष 2008-09 में सीकर में अनार के बगीचे लगाने की योजना आई थी। योजना के तहत ‘सिंदूरी’ अनार की किस्म के पौधे वितरण किए जाने थे। अनार की पौध की यह किस्म महाराष्ट्र में तैयार की गई थी। एक पौधा 25 रुपए का था। हमने 220 पौधे खरीदने के लिए विभाग को 5500 रुपए जमा कराए। इसके बाद पौधे लगाने और ड्रिप सिंचाई के लिए 45 हजार रुपए की जरूरत थी। हमारे पास पैसे नहीं थे। बस एक भैंस थी। हमने 25 हजार रुपए में भैंस बेच दी। बाकी के 20 हजार रुपए रिश्तेदारों से उधार ले लिए। इस तरह बागवानी खेती शुरू हुई।
इस तरीके से लगाए अनार के पौधे
संतोष और रामकरण ने बताया कि अनार की पौध लगाने के लिए उन्होंने हर्बल खाद, पंचामृत व जीवामृत खाद अपने खेत पर तैयार की। ढाई बीघा जमीन में खाद, पंचामृत व जीवामृत मिलाकर पौध लगाने के लिए जमीन को तैयार किया। फरवरी महीने के दूसरे सप्ताह में तैयार जमीन में पूरे परिवार ने मिलकर 15×15 फीट की दूरी पर 1×1 फीट के गड्ढे खोदे। उनमें जैविक खाद डालकर पौधे लगा दिए। अनार का बाग लगाने का सबसे सही समय अगस्त से सितम्बर या फिर फरवरी से मार्च का महीना होता है।
अनार का पौधा सह सकता है सूखा
संतोष ने बताया कि अनार का पौधा सहनशील होता है। वह सूखा झेल सकता है। मृग बहार फसल लेने के लिए हमने मई से सिंचाई शुरू कर दी और मानसून आने तक नियमित रूप से सिंचाई करते रहे। बारिश का सीजन आया तो पौधे जम गए। इसके बाद 10-12 दिनों के अन्तराल पर सिंचाई करते रहे। हमने बगीचे में ड्रिप इरिगेशन से सिंचाई की व्यवस्था की थी। इस पद्धति में पानी की 40 प्रतिशत से ज्यादा बचत होती है और उपज 50 परसेंट पर बढ़ जाती है।
3 साल तक पौधो की परवरिश की
तीन साल तक संतोष और रामकरण ने खूब मेहनत की। अनार के पौधों को बच्चों की तरह संभाला। जैविक विधि से बगीचा लगाया था। पौधों में पेस्टिसाइड या केमिकल खाद का उपयोग नहीं किया। पहली ही बार में तीन साल बाद 2011 में अनार के पौधे फलों से लद गए। 300 टन अनार का उत्पादन हुआ। संतोष ने बताया कि पहली उपज का मुनाफा 25 लाख रुपए था। एक पौधे से 250 से ज्यादा अनार हासिल हुए थे। उस समय अनार 90 रुपए प्रति किलो बेचे। फल तोड़ने, पैक करने और मार्केट पहुंचाने का काम खुद किया इसलिए 15 हजार का खर्च हुआ और मुनाफा शुद्ध रहा।
पहली बार में ही अच्छा मुनाफा देख संतोष और रामकरण का हौसला बढ़ा। 2011 के बाद उन्होंने खेती में नवाचार करना शुरू कर दिया।
संतोष ने बताया कि उन्होंने जैविक तरीके से अनार की खेती की। इसके लिए खाद खुद ही तैयार किया। खेत पर ही जैविक पंचामृत, जैविक कीटनाशक बनाया। पोटाश की जगह राख और जिप्सम काम में ली। फल का साइज बढ़ाने के लिए नए फूटान को रोका।
जैविक विधि से खेती करने के फायदे हुए
संतोष व रामकरण ने बताया कि जैविक विधि से तैयार की हुई अनार के फल में किसी तरह के कीड़े लगने की समस्या नहीं आई। फलों का वजन 800 ग्राम तक रहा। बाकी अनार की किस्मों से यह कहीं ज्यादा वजन है। सिंदूरी अनार के दाने का रंग पूरी तरह से सिंदूरी होता है। एक पेड़ पर औसत 300 से 400 तक फल आते हैं। संदूरी अनार का छिलका मोटा होता है, ऐसे में अनार दो महीने तक खराब नहीं होता। संतोष ने बताया कि अब व्यापारी खेत से ही 100 रुपए किलो के भाव से अनार ले जाते हैं।
साल में 7 बार करते हैं पौधे की कटिंग
संतोष ने बताया कि उद्यान विभाग कहता है कि अनार के पौधे की साल में एक बार कटिंग करें, लेकिन मैंने अपने अनुभव से पौधों की साल में 7 बार कटिंग की। इससे फसल उत्पादन में वृद्धि हुई है।
देशभर में सप्लाई होता है अनार
संतोष ने बताया कि शेखावाटी फार्म हाउस व रिसर्च केंद्र में ही अनार की पैकिंग कर राजस्थान के अलग अलग शहरों के अलावा, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, दिल्ली व महाराष्ट्र में अनार भेजा जा रहा है। डिमांड के अनुसार व्यापारी खुद उनके पास पर्सनल वाहन लेकर आते हैं और फार्म हाउस से ही पैकिंग करवाकर ले जाते हैं। इसके साथ ही देशभर के कृषि वैज्ञानिक भी अक्सर उनके फार्म हाउस पर आते हैं और शोध करते हैं।
अनार की पौध से भी मुनाफा
रामकरण ने बताया कि अनार की पौध से भी अच्छा मुनाफा हो रहा है। अभी नर्सरी में अनार के 20 हजार पौधे हैं। एक पौधे की कीमत 60 रुपए तक है। सभी पौधों की कीमत लगभग 12 लाख रुपए है। नर्सरी की खेती में उतार-चढ़ाव होता रहता है, क्योंकि मौसम के अनुसार पौध खराब भी हो जाती है। उन्हें सिर्फ अनार की पौध से सालाना 10 लाख तक की आय हो जाती है।
2012 में फलदार पौधों की बागवानी शुरू की
संतोष और रामकरण ने बताया कि 2012 में सिंदूरी अनार के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश के हरमन सेब, कागजी नींबू, अमरूद, आम, चीकू कालापती, थाई बेर, थाई बेर रेड, बिल्वपत्र, किन्नू पपीता, मौसमी, ड्रैगन फ्रूट, नागपुरी संतरा की बागवानी और नर्सरी भी शुरू कर दी थी।
बच्चों को भी कृषि विज्ञान की पढ़ाई कराई
संतोष और रामकरण के दो बेटियां और एक बेटा है। तीनों की शादी कर चुके हैं। बड़ी बेटी निशा ने बीए किया है। छोटी बेटी नीतू कृषि विज्ञान में स्नातक है। नीतू कृषि विभाग में कृषि पर्यवेक्षक के पद पर कार्यरत है। वह सीकर के दादिया में वह ड्यूटी कर रही है। बेटा राहुल भी कृषि विज्ञान में स्नातक है और वह माता-पिता के साथ फार्म हाउस संभाल रहा है। खेदड दंपती इलाके के किसानों को ऑर्गेनिक खेती करने के लिए जागरूक कर ट्रेनिंग भी दे रहे हैं।
बेटी की शादी में बारातियों को दिए थे पौधे
संतोष और रामकरण ने बड़ी बेटी निशा की शादी में कन्यादान में 500 पौधे भेंट किए थे। शादी में आने वाले बारातियों को जुहारी में भी 2-2 पौधे दिए। जुहारी के लिए 900 पौधे रखे थे। पूरे पंडाल की सजावट नींबू और मौसमी के पौधों से की थी। पौधे भेंट कर उन्होंने पर्यावरण को बचाने का संदेश दिया था।
हमने संतोष देवी से पूछा कि पौधे खरीदने के लिए आपने इकलौती भैंस बेच दी थी। अफसोस होता है कभी। इस पर वे हंसकर कहती हैं- नहीं, कोई अफसोस नहीं होता, हमने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था, और अब देखिये, आंगन में दो भैंस हैं, दो गाय हैं और दो बकरिया हैं।
इनपुट : राहुल मनोहर