”दोपहर के 1 बज रहे होंगे, तेज धूप थी। अचानक मोबाइल की घंटी बजी। वन विभाग का फोन था। उठाते ही ऑफिसर की आवाज आई, ट्रांसपोर्ट नगर में एयरपोर्ट के पास घनी बस्ती के एक मकान में सांप निकला है। घर में एक बुजुर्ग, 3 बच्चे और उनके मां-बाप हैं। सब घबराए हुए हैं। तुरंत स्नेक रेस्क्यू करने पहुंचना है। मैं 30 मिनट के अंदर मौके पर पहुंचा, तो देखा कि सांप कमरे के कोने में रखी अलमारी ने नीचे बैठा है।”
”उसका रंग और शरीर की धारियों से पता चला कि वह कोई साधारण सांप नहीं, बल्कि जहरीला ‘रसल-वाइपर’ है। मैंने तुरंत लोगों को कमरे से बाहर जाने को कहा और फिर अपनी स्नेक रेस्क्यू कीट निकाली। सबसे पहले सांप निकालने का रास्ता तैयार किया। बिना शोर किए उसके ठीक सामने एक बैग रख दिया। फिर, स्नेक गॉज (सांप पकड़ने की स्टिक) की मदद से उसे पीछे से ढकेला। सांप अचानक से एक्टिव हो गया। वह आगे की तरफ भागा, जहां बैग रखा था। सांप के अंदर जाते ही मैंने तुरंत बैग उठा लिया और उसे बंद कर दिया।”
”सांपों को पकड़ने भर से ही उनका रेस्क्यू नहीं हो जाता। उसे पकड़ने के बाद सुरक्षित माहौल में छोड़ना भी उतना ही जरूरी है। हमारी टीम हर रेस्क्यू के बाद वन विभाग की मदद से सांपों को उनके सेफ स्पॉट में छोड़ देती है। इस बात का खास ख्याल रखा जाता है कि जहां सांप छोड़ा गया है उस जगह की जानकारी गुप्त रखी जाए।”
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में आदित्य तिवारी ‘पर्यावरणम’ नाम का एक ग्रुप है, जो हर दिन खतरनाक सांपों को पकड़कर जंगलों में छोड़ता है। यूपी के 5 जिलों में इनकी 12 लोगों की टीम काम करती है। जिसने अब तक 6000 से ज्यादा सांपों का रेस्क्यू किया है। 2012 से यूपी में सांपों का रेस्क्यू कर रहे आदित्य ने खुद 3000 से ज्यादा सांपों को मरने से बचाया है।
इसकी शुरुआत कैसे हुई?
आदित्य 2012 का किस्सा बताते हैं। कहते हैं, “मैं क्लास 9 में था जब मैंने पहली बार स्कूल के मोजे में किसी स्नेक का रेस्क्यू किया। इसी घटना से मेरी सांपों को लेकर दिलचस्पी बढ़ी। मैं उनके बारे में इंटरनेट से लेकर किताबों में जानकारियां खोजने लगा। साल 2012 में मैंने घर में सांप देखा। मुझे याद है कि वो शांति से बैठा था और मैं उसे देखने के लिए उसके करीब गया। तभी एक उड़ती हुई चप्पल आई और मुझे लगी। वो चप्पल मेरी मां की थी।”
“मैंने सांप की फोटो खींची फिर उसके बारे में गूगल किया। सर्च करने पर पता चला कि वो सांप एक कॉमन वुल्फ स्नेक था, जो विषैला नहीं होता है। इस इंसिडेंट के बाद मुझे Herpetology यानी कि सांपों के अध्ययन में रुचि बढ़ती गई। आज यही मेरा करियर बन गया है।”
आदित्य के मुताबिक, ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद उन्होंने लखनऊ में एक रियल स्टेट कंपनी में काम किया। लेकिन वाइल्डलाइफ और सांपों से लगाव के कारण उन्हें ये फील्ड छोड़नी पड़ी। नौकरी छोड़ने के बाद आदित्य ने अपने शौक को ही अपना करियर बना लिया। उन्होंने ‘पर्यावरणम’ नाम की संस्था बनाई और सांपों को बचाने का अभियान शुरू कर दिया।
हर साल 300 से ज्यादा सांपों का बचाया
आदित्य कहते हैं, “साल 2013 में वन विभाग के साथ हमारा कॉलेबरेशन शुरू हो गया। फॉरेस्ट वाले हमें स्नेक रेस्क्यू के लिए बुलाने लगे। धीरे-धीरे लोग खुद हमें बुलाने लगे। पहले महीने में 3 से 4 कॉल आती थी। फिर ये सिलसिला बढ़ता गया। आज मानसून के टाइम पर हमारे पास हर दिन अमूमन 13 से 14 रेस्क्यू कॉल आती हैं। पूरे साल की बात करें तो ऑन एवरेज हमारे पास हर दिन 3 से 4 कॉल आ जाती हैं। हमारी टीम हर साल करीब 300 से ज्यादा सांपों का रेस्क्यू करती है।”
आदित्य का पर्यावरणम ग्रुप यूपी के 5 जिलों ( लखनऊ, प्रयागराज, रायबरेली, गोंडा और हरदोई) में काम करता है। इनका हेल्पलाइन नंबर है 8090667166। इस नंबर के जरिए ही लोग संपर्क करते हैं। आदित्य की टीम में लखनऊ के कई वॉलंटियर्स हैं, जो जॉब भी करते हैं और जरूरत पड़ने पर सांपों को भी बचाते हैं।
- अब यहां रुकते हैं। आदित्य की कहानी पर आगे बढ़ने से पहले भारत में पाए जाने वाले सबसे जहरीले सांपों के बारे में जानते हैं…
कहा- लेट नाइट रेस्क्यू करना सबसे कठिन, 24 घंटे फोन ऑन रहता है
आदित्य कहते हैं, ”लोग डेली रूटीन बनाते हैं कि हम सुबह उठकर ये काम करेंगे, ऑफिस जाएंगे। लेकिन हमारे साथ ऐसा नहीं है। हमें 24 घंटे रेडी रहना पड़ता है। सोने भी जाते हैं, तो लगता है कि कहीं कोई कॉल न आ जाए। ऐसा कई बार हुआ है कि पूरी रात रेस्क्यू करने में निकल गई। इसलिए स्नेक रेस्क्यूअर्स को दिन में जब भी थोड़ा वक्त मिलता है, वो सो लेते हैं। क्योंकि बॉडी लूज रहेगी, तो सांप पकड़ने के वक्त जोखिम भी दोगुना बढ़ जाएगा।”
23 अप्रैल, 2021 की एक घटना के बारे में आदित्य कहते हैं, ”मुझे पता चला कि लखनऊ के एक इलाके में पोल्ट्री फार्म में एक कोबरा घुस गया है। वहां पहुंचा तो लोगों ने बताया कि वो 2 दिनों से बाड़े के जाल में फंसा था। मैं रेस्क्यू करने पहुंचा तो देखा कि सांप गुस्से में था। बार-बार फुफकार मार रहा था। जाली से सांप को बाहर निकालना मुश्किल था इसलिए टीम ने तय किया कि पहले चारों तरफ की जाली काटी जाए। लगभग 40 मिनट की कड़ी मशक्कत के बाद हम उसे सक्सेसफुली रेस्क्यू कर पाए। उस दिन अगर हम लापरवाह हो जाते, तो कोबरा हमें काट सकता था।”
आदित्य की अगुवाई में उनकी पर्यावरणम टीम ने पूरे उत्तर प्रदेश में 6051 सांपों को बचाया है। इनमें ‘बिग-4’ सांपों के रेस्क्यू भी शामिल हैं, जिनकी वजह से भारत में 90% सर्पदंश से मौतें होती हैं।
यूपी में सांप काटने से 1 साल में हुई 8700 मौतें
सेंटर फॉर ग्लोबल हेल्थ रिसर्च रिपोर्ट 2021 के मुताबिक, भारत में हर साल औसतन लगभग 58 हजार लोग सांप काटने के कारण जान गंवाते हैं। इसमें अकेले यूपी में 8700 मौतें हुईं, जो देश में सबसे ज्यादा हैं। ऐसे में आदित्य और उनकी टीम का काम बेहद अहम हो जाता है।
आदित्य कहते हैं, ”किसी भी जहरीले सांप का रेस्क्यू करते समय रेस्क्यूअर मौत के सबसे करीब रहता है। जरा सी लापरवाही आपकी जान ले सकती है। इसलिए स्टेप-बाई-स्टेप सावधानी रखनी पड़ती है। कभी-कभी होता है कि सांप अलमारी के पीछे है और कमरे में बहुत ज्यादा सामान भरा है। ऐसे में हम सबसे पहले उसे निकालने का पाथ यानी रास्ता तैयार करते हैं। ताकि सांप इस रास्ते से हमारी तरफ आसानी से आ जाए। इसके बाद एरिया क्लियर करके हम उस पाथ के एक छोर पर अपना रेस्क्यू बैग लगा देते हैं।”
”सांप को जब डर लगता है, तो वह बिल की तरफ भागता है। हम उसे छिपने के लिए रेस्क्यू बैग के रूप में एक आर्टिफिशियल बिल दे देते हैं। सांप उसमें आराम से चला जाता है और हमारा काम बन जाता है। कई बार हमने कोबरा और रसेल वाइपर जैसे खतरनाक सांपों को बिना टच किए ही पकड़ा है।”
यूपी में सर्पदंश से होने वाली हजारों मौतों के बावजूद आदित्य सांपों को इंसानों का दोस्त मानते हैं। वो कहते हैं कि स्नेक बाइट से हुई मौतों का मुख्य कारण लोगों का सांपों के प्रति कम जागरूक होना है। जो जानकारी है भी वो गलत है। जबकि सांप ऐसा वन्यजीव है, जो इंसान के सबसे ज्यादा करीब है। वो चूहों का शिकार करते हैं जिनकी वजह से हर साल हजारों क्विंटल फसल बर्बाद हो जाती है। प्लेग जैसी महामारी रोकने में भी सांप बड़ी भूमिका निभाते हैं।
सांपों के संरक्षण पर योगी सरकार ने किया सम्मानित
यूपी के 5 जिलों में करीब 6000 से ज्यादा सांपों को बचाने की मुहिम के कारण अदित्य को साल 2018 में योगी सरकार ने सम्मानित किया। उन्हें डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने वन्यजीव संरक्षण पुरस्कार दिया। इसी साल उन्हें वन्यजीव प्राणी सप्ताह में प्रमुख सचिव, वन कल्पना अवस्थी ने विशेष पुरस्कार से नवाजा।
आदित्य कहते हैं, ”हमारी टीम का मकसद सिर्फ सांपों को बचाना नहीं, बल्कि उन्हें लेकर लोगों को जागरूक करना भी है। हम गांवों में जाकर सांपों से बचने के तरीके और उनके काटने पर इलाज के बारे में नुक्कड़ नाटक भी कर रहे हैं। इससे जमीनी स्तर पर लोगों की वन्यजीवों के प्रति समझ बढ़ रही है। हमारा स्लोगन है – सांप काटे तो अस्पताल ही है इलाज, झाड़-फूंक पर न करें समय बर्बाद।”
अब…
यहां तक आपने आदित्य की सांपों को बचाने की मुहिम के बारे में जाना। आगे आपको उनकी टीम के कुछ और साथियों से मिलाते हैं…
”सांप पकड़ने के जुनून के कारण टीचिंग जॉब छोड़ दी”
32 साल की देवयानी सिंह चौहान टीम की सबसे वरिष्ठ सदस्य हैं। वो बीते 5 साल से सांपों को बचा रही हैं। लेकिन ये काम शुरू करना उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं था। पूरा परिवार उनके खिलाफ खड़ा था।
शुरुआती दिनों को याद करते हुए देवयानी बताती हैं, ”मेरा टीचिंग लाइन छोड़कर ये काम चुनना घरवालों को पसंद नहीं था। सांप का नाम सुनते ही सब डर जाते। लेकिन धीरे-धीरे मेरा काम उन्हें समझ में आया। मां का सपोर्ट मिला। पापा को भी लगा कि जो काम उनकी बेटी कर रही है वो कोई साधारण काम नहीं है।” देवयानी ने 400 से ज्यादा सांपों को बचाया है।
20 साल की प्राची यूपी की सबसे छोटी स्नेक रेस्क्यूअर
टीम की सबसे छोटी सदस्य 20 साल की प्राची तिवारी ने भी 2 साल में 20 से ज्यादा सांपों को बचाया है। इसमें 12 बिना जहर वाले सांप और एक कोबरा भी शामिल है। स्नेक रेस्क्यू के अलावा प्राची सांपों की सुरक्षा को लेकर लोगों को जागरूक भी करती हैं। वो यूपी के यंग स्नेक रेस्क्यूअर्स में से एक हैं। उनका सपना है कि वह भारतीय वन सेवा अधिकारी बने ताकि ज्यादा से ज्यादा वन्यजीवों की सुरक्षा कर पाएं।
प्राची कहती हैं, ”अंधविश्वास की वजह से लोग सांपों को मार देते हैं। गांवों में उनके काटने पर इलाज न करने के बजाए झाड़-फूंक कराते हैं। जबकि स्नेक बाइट होने पर तुरंत इलाज कराना चाहिए।”
देवयानी और प्राची की तरह टीम में 12 अन्य साथी हैं, जिसमें 6 लड़कियां हैं, जो हर तरह के सांपों का रेस्क्यू कर सकती हैं।
- आखिर में सांपों के बारे में फैली गलत जानकारियां और उनकी असलियत जान लीजिए…
बात 1: लोगों में भ्रम है कि सांप बीन की धुन पर नाचते हैं। ऐसा नहीं है सांपों के कान नहीं होते वह सिर्फ बीन को देखकर हिलता है।
बात 2: लोगों को ऐसा लगता है कि अजगर और एनाकोंडा इंसान को खा लेता है। ऐसा नहीं है। एनाकोंडा 6.8 फीट का होता है। वह सिर्फ बकरी और कुत्ते को खाने की क्षमता रखता है।
बात 3: सांप में स्तन ग्रंथि का अभाव होता है। इनमें दूध को पचाने वाली पाचन कोशिकाएं नहीं पाई जाती। इसलिए वो दूध नहीं पी पाते हैं।