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BHU में पुराविद बोलीं- हिमालय की 10 हजार साल पुरानी संस्कति से दूर हैं उत्तर भारतीय

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लद्दाख से BHU विजिट करने आईं आर्कियोलॉजिस्ट डॉ. सोनम स्पांजिल्स ने लेह-लद्दाख के टूरिज्म को लेकर गहरी चिंता जताई। सोनम ने कहा, “लेह-लद्दाख में टूरिस्ट मैग्नेटिक हिल पर सबसे ज्यादा समय बिताते हैं। वहां पर गाड़ियां न्यूट्रल पर अपने आप चलती हैं। इसका लुत्फ उठाकर ज्यादातर पर्यटक वापस लौट जाते हैं। वे लोग लेह की बुद्धस्थली और काराकोरम पहाड़ियों पर मिले 10 हजार साल प्राचीन संस्कृति से अनभिज्ञ रह जाते हैं।”

यह सीन लेह स्थित हिमालय के काराकोरम पर्वत श्रेणी का है। यहां पर करीब साढे़ 10 हजार साल प्राचीन चित्रकलाएं देखने को मिली हैं। इससे माइग्रेशन का पता चलता है।
यह सीन लेह स्थित हिमालय के काराकोरम पर्वत श्रेणी का है। यहां पर करीब साढे़ 10 हजार साल प्राचीन चित्रकलाएं देखने को मिली हैं। इससे माइग्रेशन का पता चलता है।

डॉ. सोनम ने कहा कि मैग्नेटिक हिल पर गाड़ियां खुद-ब-खुद चलती हैं, इसके पीछे चुंबकीय शक्तियां काम करती हैं। मैग्नेटिक हिल पर मिनरल्स काफी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। ऐसी संभावना है कि वहां मैग्नेटिक रिसोर्सेज ज्यादा हैं। मगर, वहां कोई जादूई शक्ति का प्रमाण नहीं मिला है।”

लेह से BHU आईं आर्कियॉलॉजिस्ट सोनम ने कहा, हिमालयन आर्कियॉलॉजी से आप लोग कोसों दूर हैं।
लेह से BHU आईं आर्कियॉलॉजिस्ट सोनम ने कहा, हिमालयन आर्कियॉलॉजी से आप लोग कोसों दूर हैं।

प्राचीन काल में 15 हजार फीट ऊंचाई पर बसते थे मानव

डॉ. सोनम ने कहा, “लेह में केवल मैग्नेटिक हिल, पहाड़ियां, झरने, स्नो फॉल और घाटियां ​​ही नहीं है, बल्कि ​​​सुविकसित ​आर्कियोलॉजल साइट्स भी हैं। साल 2016 में हिमालय की काराकोरम पहाड़ी पर खुदाई की गई थी। करीब 15000 फीट की ऊंचाई पर 8500 BC यानी कि 10,500 साल पुरानी चीजें और चित्रकलाएं मिली हैं। स्टडी से पता चलता है कि उस काल में भी पहाड़ी पर लोगों ने माइग्रेट किया था।

काराकोरम की पहाड़ी की दीवारों पर मिले हैं साढ़े 10 हजार साल प्राचीन संस्कृति के साक्ष्य।
काराकोरम की पहाड़ी की दीवारों पर मिले हैं साढ़े 10 हजार साल प्राचीन संस्कृति के साक्ष्य।

काराकोरम पर गुफा चित्रकला के भी साक्ष्य मिले हैं। इतनी ऊंचाई पर इतनी प्राचीन चीजों का मिलना हैरानी की बात है। यह बताता है कि पहाड़ों पर मानव सभ्यता 10 हजार साल पहले भी मौजूद थी।

लद्दाख स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट एंड एलाइड साइंस में हिमालयन आर्कियॉलॉजी को लेकर रिसर्च चल रहा है।
लद्दाख स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट एंड एलाइड साइंस में हिमालयन आर्कियॉलॉजी को लेकर रिसर्च चल रहा है।

लद्दाख के रास्ते चीन में पहुंचा बौद्ध धर्म

डॉ. सोनम ने कहा कि लेह में बौद्धों से जुड़े 700 किले, स्तूप और 100 से ज्यादा मॉनेस्ट्री हैं। यह सब सम्राट अशोक के पहले की बनी हैं। उस काल में यहां रह रहे बौद्ध धर्मावलंबियों ने बनवाया था। लेह-लद्दाख की ही देन कि चीन में बौद्ध धर्म पहुंचा। कई लिखित प्रमाणों और अभिलेखों से यह पता चलता है कि बौद्ध धर्म मगध से कश्मीर, वहां से कारगिल, कारगिल से लेह और यहां चीन की ओर गया था।

लद्दाख की पहाड़ियों के पत्थरों पर खुदी हाथ की आकृतियां।
लद्दाख की पहाड़ियों के पत्थरों पर खुदी हाथ की आकृतियां।

हिमालय का एडवेंचर टूर, पहाड़ों पर खड़ी कर रहा मुसीबतें

हिमालय पर एडवेंचर टूर के दौरान शराब और स्नैक्स का इस्तेमाल करना पहाड़ियों के लिए मुसीबतें खड़ी कर रहा है। उन्होंने कहा, ” उस पहाड़ी के रहस्यों को जानते-जानते, पर्यटक वहां ड्रिंक करके सारे प्लास्टिक और बॉटल फेंक देते हैं। इससे पूरा मैग्नेटिक हिल प्रदूषित हो रहा है। वहां पर कूड़ा हटाने के लिए मैदानी इलाकों जैसी कोई सिस्टमैटिक व्यवस्था नहीं है। इसमें लोकल लोगों का भी दोष है, जो कि ऐसा करने से उन्हें रोकते नहीं।”

लेह-लद्दाख जाने वाले बाइकर्स वहां पर बियर और शराब की बॉटल फेंक देते हैं। उसे उचित जगह पर डिस्पोज नहीं करते।
लेह-लद्दाख जाने वाले बाइकर्स वहां पर बियर और शराब की बॉटल फेंक देते हैं। उसे उचित जगह पर डिस्पोज नहीं करते।

प्रदूषित हो रहा मैग्नेटिक हिल

सोनम ने कहा, “इस मैग्नेटिक हिल की ही वजह से लोग लद्दाख पर्यटन करने आते हैं। मेरी अपील है कि वहां पर गंदगी न करें। पहाड़ आपके लिए कुछ घंटों का डेस्टिनेशन टूर हो सकता है, मगर मेरे लिए वहां जीवन है।” उन्होंने कहा कि पहाड़ों पर फेंका गया कचरा हजारों साल तक वहीं पड़ा रहता है। उसे किसी लोकल की मदद से उचित स्थान पर डिस्पोज करा दें। क्योंकि, वहां पर कचरों को बायोडिग्रेड करके रिसाइकिल करने की व्यवस्था नहीं है।

लेह की पहाड़ियों पर लोग केवल खूबसूरती देखने आते हैं, जबकि वह जगह बौद्ध पर्यटन का बड़ा हब है।
लेह की पहाड़ियों पर लोग केवल खूबसूरती देखने आते हैं, जबकि वह जगह बौद्ध पर्यटन का बड़ा हब है।

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