पुण्य सलिला मां गंगा के अवतरण दिवस गंगा दशहरा पर बृहस्पतिवार को संगम में पुण्य की डुबकी लगाने के लिए भक्ति का सागर उमड़ पड़ा। भीषण गर्मी में आस्था की लहरों ने खूब अंगड़ाई ली। तपिश में छनछनाती रेत पर नंगे पांव श्रद्धा की भूख मिटाने के लिए लयबद्ध भीड़ संगम समेत गंगा के अन्य स्नान घाटों पर गोता लगाकर धन्य होती रही। पुरोहितों की चौकियों पर तिलक लगाने के साथ ही अन्न-वस्त्र के दान की भी होड़ मची रही। पौराणिक मान्यता है कि गंगा दशहरा पर पतितवापनी में स्नान से जन्म-जन्मांतर के 10 तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है।
कोरोना संक्रमण के दो साल बाद इस बार गंगा दशहरा पर कुंभ की तरह भीड़ का उत्साह नजर आया। भोर में ही संगम पर स्नान पर्व का उल्लास छा गया। गंगा, यमुना और विलुप्त सरस्वती के संगम की बूंदों से साक्षात्कार के लिए हर कोई आतुर नजर आया। चाहे रेलवे स्टेशन हों या फिर बस अड्डे, हर तरफ से भीड़ संगम की ओर से बढ़ती नजर आई। आस्था, भक्ति और विश्वास की बूंदों के स्पर्श के लिए इसी तरह रेला बढ़ता रहा।
संगम पर स्नान के बाद रेती पर शिवलिंग बनाकर पूजने और जलाभिषेक करने में श्रद्धालु जुट रहे। महिलाएं तट पर हल्दी-चंदन के टीके लगाकर मंगल गीत गाती रहीं। कहीं ध्यानमग्न संन्यासी जप करते नजर आए तो कहीं भजनानंदियों की टोली संकीर्तन करती रही। वीआईपी किला घाट से लेकर संगम तक कामनाओं के दीप जलाए जाते रहे।