UP के 30 शहरों में 66% बच्चे घरों में पैदा हो रहे हैं, यानी सिर्फ 34% बच्चे ही सरकारी और प्राइवेट अस्पताल की सुरक्षा हासिल कर पा रहे हैं। ये चौंकाने वाले आंकड़े, हमारे बच्चों की सुरक्षा पर भी सवाल खड़ा करते हैं। एक तरफ सरकार स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ाने का दावा कर रही है, वहीं लोग इन सुविधाओं का फायदा नहीं उठा रहे हैं।
शासन ने CMO से पूछा- देखिए आपके शहर में ऐसा क्यों हो रहा
दरअसल पूरा मामला UP सरकार और 30 शहरों के CMO को लिखे गए लेटर से खुला। जिसमें अधिकारियों से पूछा गया कि देखिए कि आपके शहर में ऐसा क्यों हो रहा है। जिसमें अस्पताल में डिलीवरी कराने के लिए पैरा मेडिकल स्टाफ की भूमिका बढ़ाने के लिए कहा गया। क्योंकि यहां बच्चों की डेथ रेट हाई थी। इसके लिए आशा, संगिनियों, ANM की ट्रेनिंग देने के लिए कहा। जोकि घर-घर जाकर घरेलू प्रसव को कम कराए।
पैदा होने के पहले ही दिन 22.8% बच्चे मर जाते हैं
अब इन 30 शहरों से आगे बढ़कर UP के 75 जिलों की तस्वीर भी आपको दिखाते हैं। यही डेटा अगर 75 जिलों का देखें, तो राज्य में 16.6% बच्चे घरों में पैदा हो रहे हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 ( NFHS) के आंकड़ों के अनुसार, UP में 83.4% महिलाएं बच्चों की डिलीवरी के लिए अस्पताल तक पहुंच रही हैं।
अब चिंता करने वाली बात ये हैं कि घर पर पैदा होने बच्चों में करीब 37.5% बच्चे जिंदा नहीं बच पाते हैं। इसमें जन्म से पहले दिन ही मर जाने वाले बच्चों का प्रतिशत 22.8 है।
अब आपको 30 शहरों के बारे में भी पढ़वाते हैं…
66% बच्चे घरों में जिन शहरों में पैदा हो रहे हैं, उनके बारे में भी आपको बताते हैं। इसमें शाहजहांपुर, बहराइच, फर्रुखाबाद, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर, बदायूं, हरदोई, संभल, कासगंज, बरेली, बाराबंकी, पीलीभीत, कन्नौज, एटा, सोनभद्र, शामली, मुरादाबाद, हाथरस, श्रावस्ती, मेरठ, उन्नाव, बागपत, रामपुर, अमरोहा, चित्रकूट, फतेहपुर, सहारनपुर और गोंडा शामिल हैं।
शासन की तरफ से इन शहरों के CMO को कड़ा लेटर जारी हुआ है। तकरीबन फटकार लगाते हुए पूछा गया है कि आपने आखिर इन कंडीशन को सुधारने के लिए क्या किया है। इसके साथ ही, डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ का ट्रेनिंग शेड्यूल भी जारी हुआ है। ताकि 100% बच्चों का जन्म अस्पतालों में कराया जा सके।
अब आपको ये भी बताते हैं कि इस तस्वीर को सुधारने के लिए स्वास्थ्य विभाग क्या कर रहा है…
सभी डिलीवरी की लाइन लिस्टिंग
आशा और संगिनी अपने-अपने कार्य क्षेत्र में पिछले 3 माह (एक अक्टूबर से 31 दिसंबर 2022) तक हुए सभी प्रसव को लेकर घर-घर जाकर बातचीत करने वाली है। प्रसव स्थायी रूप से निवासी या रिश्तेदारी में आई गर्भवती महिलाओं दोनों के प्रसव स्थान को पूछेगी। उनका निजी अस्पताल या फिर घरेलू प्रसव कराया गया है। इस आधार पर लिस्ट बनाएगी। आशा और संगिनी ODK टूल एप्लिकेशन को मोबाइल में इन्स्टॉल करेंगी। बनाई गई लिस्ट को ODK (Open Data kit) टूल में भरेगी। ताकि ये डेटा शासन तक पहुंचाया जा सके।
30 जनवरी तक देनी होगी रिपोर्ट
अब इन 30 शहरों में भी उन ब्लॉक और गांवों की पहचान का काम सौंपा गया है, जहां ऐसे केस ज्यादा है। घरेलू प्रसव के कारण को भी समझने के लिए सर्वेक्षण किया जाएगा। वहीं सर्वेक्षण के आधार पर संस्थागत प्रसव बढ़ाने के लिए रणनीति तैयार करने को कहा गया है।
ऐसे में 23 जनवरी 2023 से आशा संगिनी कार्य शुरू करेंगी और 30 जनवरी तक इस सर्वे को पूरा भी कर लेंगी। इसमें सहयोगी संस्थाएं एवं संबंधित ब्लॉक लेवल अधिकारियों की सूचनाओं का 3 फरवरी तक वैरिफिकेशन किया जाएगा। आशा और संगिनी गृह प्रसव वाले घरों का दौरा कर महिलाओं के साथ डिस्कशन करेंगी। प्रसूताओं से डिस्कशन कर 15 मार्च 2023 तक पूरा करेंगी।