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कल श्रद्धालु करेंगे स्नान-दान; रविवार को होने से ज्यादा महत्व, उत्तरायण से शुरू हो जाएंगे शुभ व देव कार्य

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मकर संक्रांति को लेकर लोगों में संशय है। चूंकि 14 जनवरी को कुछ सालों से यह पर्व मनाया जाता रहा है और अब 15 जनवरी को भी मनाया जाने लगा है। यह पृथ्वी के देशांतर कालांतर की वजह से हाे रहा है। आगामी समय में एक दिन और बढ़ सकता है। ज्योतिषिचार्य एवं पंडितों का स्पष्ट कहना है कि यह पर्व सूर्य से संबंधित है।

14 जनवरी की रात 8.44 बजे संक्रांति संक्रमण काल शुरू हो जाएगा और अगले दिन सूर्योदय से पर्व मनाया जाएगा। 15 जनवरी को सूर्योदय करीब 7.13 मिनट पर होगा, इसलिए मकर संक्रांति पर्व को 15 जनवरी रविवार को मनाना ही धर्म व तर्क सम्मत है। सूर्य के राशि परिवर्तन से उत्तरायण प्रारंभ हो जाता है, जो जून-जुलाई तक रहता है।

मिथुन से जब कर्क में सूर्यदेव प्रवेश करेंगे, तब दक्षिणायण होगा। उत्तरायण से देवकार्य व शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं। ज्योतिषाचार्य पं. आनंदशंकर व्यास के अनुसार धर्म और कर्म के मान से मकर संक्रांति 15 जनवरी को ही मनाई जाना चाहिए।

इसी दिन तीर्थ स्थल पर स्नान के साथ दान आदि का महत्व है। पर्वकाल सूर्य और चंद्र के अनुसार मनाए जाते हैं। इसमें यह सूर्य का पर्वकाल है और सूर्य 12 महीने में 12 राशियों में प्रवेश करते हैं लेकिन माघ माह में सूर्य अपनी राशि मकर में प्रवेश करता है, इसलिए ये मकर संक्रांति पर्व कहलाता है।

सूर्य के स्व राशि में जाने का अलग-अलग असर
ज्योतिषि एवं भागवताचार्य पं. मनीष शर्मा बताते हैं कि 14 व 15 जनवरी दोनों ही दिन श्रद्धालु दान-स्नान करेंगे। 15 जनवरी को स्नान व दान-पुण्य करना उचित माना गया है। यह रविवार को होने से इसका ज्यादा महत्व है। इस दिन सफेद तिल, कंबल, गर्म कपड़े, तांबे का कलश, पादुका आदि का दान करना चाहिए। पं. शर्मा ने सूर्य का स्व राशि मकर में प्रवेश को लेकर 12 राशियों पर अलग-अलग असर बताए हैं।
इन राशियों पर यह असर रहेगा

  • मेष, वृषभ, मिथुन व सिंह राशि के जातकों पर इस पुण्यकाल का बेहतर असर रहेगा।
  • तुला, धनु, मकर व कुंभ राशि वालों के लिए यह राशि परिवर्तन सामान्य रहेगा।
  • कर्क, कन्या, वृश्चिक व मीन राशि के जातकों के लिए मिला-जुला असर रहेगा।

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