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सूखी जमीन से डरा नहीं; खेती में मॉर्डन तकनीक अपनाकर लाखों की कमाई

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मिट्‌टी में अगर पानी ही न हो तो खेती बेकार। यही सोचकर दौसा बेल्ट में किसान कृषि जमीनों का सौदा कर रहे हैं। लेकिन एक किसान ऐसा है, जिन्होंने घटते भू-जल स्तर का तोड़ निकाला और खेती का तरीका बदला। अब बूंद-बूंद सिंचाई से ये किसान सालाना दस लाख की कमाई कर रहे हैं।

म्हारे देस की खेती में इस बार मुलाकात दौसा के किसान कैलाश चंद बैरवा से-

दौसा के किसानों को गिरते भू-जल स्तर के संकट से गुजरना पड़ रहा है। सिंगल फेज में जब मोटर पानी छोड़ देती है तो सिंचाई नहीं हो पाती है। गेहूं जैसी फसल को पर्याप्त पानी चाहिए, लेकिन पानी मिल नहीं रहा है। इलाके के कई किसान खेती छोड़कर दूसरे काम-धंधों की तलाश में हैं। जब हमने सुना कि इलाके के एक किसान ने पानी की कमी का तोड़ निकाल कर बागवानी खेती शुरू की है तो हम उनसे मिलने निकल पड़े।

दौसा शहर से करीब 22 किलोमीटर दूर है तिगड्‌डा गांव। यहां किसान कैलाश चंद बैरवा के खेत में बेर, अनार और नींबू के बगीचों के साथ ही पॉन्ड फार्मिंग और पोल्ट्री फार्म भी है। बूंद-बूंद पानी का इस्तेमाल कर किसान ने न केवल अपनी दशा सुधारी है, बल्कि इलाके के किसानों को दिशा भी दी है।

किसान कैलाश चंद ने अपने खेत में दो पोल्ट्री फार्म लगा रखे हैं। पॉन्ड में मछली पालन भी कर रहे हैं। उनका कहना है कि बदलते वक्त में किसान को भी नवाचार ही बचा सकता है। परंपरागत खेती के भरोसे नहीं टिका जा सकता।

कैलाश चंद ने बताया कि वे और उनकी पत्नी कविता को चिंता होती थी कि उनके 3 बेटे और बेटी खेती किसानी से कैसै सर्वाइव करेंगे। कैलाश दसवीं तक पढ़े हैं, लेकिन जागरूक किसान हैं। उनके पास 17 बीघा जमीन है। जिसमें से 3 बीघा में उन्होंने बगीचा, पॉन्ड और पोल्ट्री फार्म लगा रखा है।

किसान कैलाश चंद के खेत में बना पोल्ट्री फार्म।
किसान कैलाश ने खेत में दो पोल्ट्री फार्म लगा रखे हैं जिसमें बायलर प्रजाति के मुर्गों का पालन कर रहे हैं।

कैलाश चंद ने बताया कि उनके पिता परंपरागत खेती करते थे। इलाके में भरपूर पानी था तो गेहूं-सरसों खूब होता था। कई दूसरी फसलें भी होती थीं,लेकिन धीरे-धीरे भूजल स्तर गिरता चला गया। ऐसे में खेती के भविष्य को लेकर चिंता होने लगी। उन्होंने बताया कि पानी की कमी के चलते किसान जब खेती छोड़ने लगे और कृषि भूमि का सौदा करने लगे, उस वक्त मैं कृषि विभाग के कार्यक्रमों में जाने लगा। 2005 में मुझे विभाग के ट्रेनिंग कार्यक्रम में बीकानेर और हिसार जाने का मौका मिला।

वहां मैंने देखा कि पानी की कमी वाले इलाकों में किसान बागवानी खेती कर रहे थे। लौटकर मैंने कृषि विशेषज्ञों की राय ली। इसके बाद सिर्फ 3 बीघा में गोला किस्म के देसी बेर के 60, नींबू के 40 और अनार के 20 पौधे लगाए।

कैलाश चंद ने बताया कि करीब 15 साल से बेर और नींबू की खेती सहारा बनी हुई है। पूरे 17 बीघा की सिंचाई नहीं कर सकता। ऐसे में बेर की फसल से एक सीजन में अच्छी कमाई हो जाती है। एक सीजन में 60 क्विंटल बेर हो जाता है जो मार्केट में 40 रुपए किलो तक बिकता है।

कैलाश चंद ने बताया कि बेर का सीजन जनवरी से मार्च के बीच होता है। यह बेर दौसा, बांदीकुई और अलवर के अलावा हिसार और दिल्ली की मंडियों में जाता है। थाई एप्पल की तुलना में गोला बेर बहुत मीठा होता है। इसकी डिमांड भी ज्यादा होती है। यह बेर की देसी किस्म है।

कैलाश चंद ने बताया कि एक हेक्टेयर (करीब 3 बीघा) में परंपरागत खेती कर वे एक से सवा लाख रुपए तक की कमाई करते थे। लेकिन बागवानी खेती से अब यह लाभ 10 गुना तक बढ़ गया है। साथ ही पानी की जरूरत भी कम पड़ती है। कैलाश खेत में ड्रिप सिंचाई कर रहे हैं।

इसके साथ ही उन्होंने खेत में दो पोल्ट्री फार्म भी लगा रखे हैं जिसमें बायलर ब्रीड के मुर्गे पाल रहे हैं। साथ ही कृषि ‌विभाग की सहायत से खेत में बनवाए पॉन्ड में मछली पालन भी कर रहे हैं। पॉन्ड के लिए कृषि विभाग से 90 हजार की सब्सिडी मिली थी। घर और पोल्ट्री फार्म को उन्होंने वाटर हार्वेस्टिंग से जोड़ रखा है। सब मिलाकर उनकी कमाई अब लाखों में है।

किसान कैलाश चंद ने कृषि विभाग के कार्यक्रम अटेंड किए तो सब्सिडी की जानकारी मिली। सरकार से 90 हजार की सब्सिडी से पॉन्ड तैयार हुआ। यह सिंचाई में कारगर साबित हो रहा है।

कैलाश ने बताया कि मैं 35 साल का था, खेती में पिता की मदद करता था। गेहूं और सरसों पर कभी मौसम की मार पड़ती तो कभी कम पानी के कारण फसल तबाह हो जाती। खेती घाटे का सौदा बनती गई। पानी की लागत ज्यादा पड़ रही थी और ट्यूबवैल से पूर्ति हो नहीं पा रही थी। इसलिए खेती में नवाचार किया और अब टेंशन फ्री हूं।

इलाके के दूसरे किसान भी प्रभावित
कैलाश के बगीचे के पास ही बेर का दूसरा बगीचा नजर आया। पूछा – क्या यह भी आपका है। तब कैलाश ने बताया कि यह बगीचा पड़ोसी किसान राधा मोहन का है। राधा मोहन ने पहली बार बेर का बगीचा लगाया है। वे कैलाश से प्रभावित थे। राधा मोहन ने एक बीघा खेत में शिमला किस्म के थाई एप्पल बेर का बगीचा लगाया है।

कैलाश के पड़ोसी किसान राधा मोहन ने बताया कि अब उन्होंने अपने एक बीघा के खेत में लगे बगीचे को नेट से कवर कर दिया है। इससे पक्षियों से नुकसान नहीं होगा।

राधा मोहन ने कहा कि गेहूं सरसों का उत्पादन पानी की कमी के कारण लगातार गिर रहा था। ऐसे में कैलाश चंद से प्रेरणा मिली और बागवानी का आइडिया आया। मैंने यूपी की एक एग्रीकल्चर फर्म से थाई एप्पल बेर के पौधे लगवाए। पहली बार में जबरदस्त फल आए। शुरू में नेट नहीं था इसलिए पक्षियों ने काफी नुकासन किया। बाद में नेट लगाया है। अब उम्मीद है कि आने वाले दिनों में बेर के उत्पादन से उनकी आमदनी बढ़ेगी।

किसान कैलाश चंद ने बताया कि खेत में ही एक बीघा में उन्होंने घर बना रखा है। गाय-भैंस भी हैं, जिनसे मिला जैविक खाद वे खेत में इस्तेमाल करते हैं। उनका एक बेटा अशोक पोल्ट्री फार्म और पॉन्ड फार्मिंग का काम संभालता है। दो बेटे जयपुर में रहकर कॉम्पिटिशन की तैयारी कर रहे हैं। एक बेटी है। कैलाश के भाई प्रभुदयाल भांवता ग्राम पंचायत में सरपंच रह चुके हैं।

किसान कैलाश चंद लगातार कृषि विभाग के ट्रैनिंग कैंप में हिस्सा लेते और जनाकारी जुटाते रहते हैं। इस जानकारी को वे अप्लाई करते हैं।
जल प्रबंधन और उच्च तकनीकी खेती के ट्रेंनिंग कैंप में भी किसान कैलाश चंद ने हिस्सा लिया।

होटल बिजनेस छोड़ पहाड़ काटा, ड्रैगन फ्रूट उगा रहे:थाइलैंड, वियतनाम में घूमने से आया आइडिया; अब लाखों का टर्नओवर

जुनून की कोई उम्र नहीं होती। किसान महेंद्र प्रताप सिंह पंवार को देखकर यही लगता है। राजसमंद में पथरीली जमीन पर रसीला ड्रैगन फ्रूट उगाने वाले महेंद्र की उम्र 50 साल है। होटल बिजनेस से जुड़े थे। खेती का ऐसा चस्का लगा कि काम छोड़कर अपने गांव आ गए।

वहां साढ़े चार बीघा के खेत का अधिकतर हिस्सा पहाड़ी पर था। बेहद पथरीला। जेसीबी से पहाड़ काटकर तीन स्टैप बनाए। उसी में ड्रैगन फ्रूट उगाया और अब एक सीजन में करीब 12 लाख की कमाई कर रहे हैं

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