इजराइल की नई कट्टरपंथी सरकार ने एक ऐसा आदेश जारी किया है जिससे इजराइल-फिलिस्तीन जंग फिर भड़क सकती है। इजराइल के नेशनल सिक्योरिटी मिनिस्टर (होम मिनिस्टर) बेन गिविर ने पुलिस से कहा है कि वो मुल्क के किसी भी हिस्से में फिलिस्तीन के फ्लैग न लगने दें। ऐसा करने वालों को जेल में डाल दें।
बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार में गिविर को सबसे कट्टरपंथी मंत्री माना जाता है। उन्होंने हाल ही में उन जगहों का दौरा किया था जिनको लेकर इजराइल और फिलिस्तीन के बीच 1948 से विवाद चल रहा है।
पहले इस आदेश को जानिए
इजराइल के कई हिस्सों में अरब मूल के लोग रहते हैं। यहां कई बार पब्लिक प्लेसेज पर फिलिस्तीन के नेशनल फ्लैग नजर आते हैं। कट्टरपंथी बेन गिविर ने पुलिस से साफ कहा है कि फिलिस्तीन के फ्लैग किसी भी कीमत पर नजर नहीं आना चाहिए, क्योंकि इनसे यहूदियों की भावनाएं आहत होती हैं और लॉ एंड ऑर्डर खराब होता है। फिलिस्तीन का झंडा फहराना आतंकवाद माना जाएगा।
गिवर के इस आदेश का इजराइल में रहने वाले अरब लोग विरोध कर रहे हैं। माना जाता है कि ज्यादातर अरब इजराइली नागरिक फिलिस्तीन का समर्थन करते हैं। यही वजह है कि कई बार इजराइली और अरब लोगों के बीच भी विवाद होते हैं।
कानून में कुछ साफ नहीं
पिछले साल मई में ‘अल जजीरा’ की वुमन जर्नलिस्ट शिरीन अबु अक्लेह की इजराइली सैनिकों की गोली से मौत हो गई थी। इसके बाद इजराइल और बैंक में काफी हिंसा हुई। इस दौरान इजराइली पुलिस और सेना ने फिलिस्तीन के तमाम झंडे उतारकर फाड़ दिए थे।
‘टाइम्स ऑफ इजराइल’ के मुताबिक- इजराइल के संविधान में ये कहीं नहीं लिखा कि देश में फिलिस्तीन के झंडे नहीं लगाए जा सकते। ये जरूर कहा गया है कि अगर सिक्योरिटी एजेंसीज को लॉ एंड ऑर्डर बिगड़ने का खतरा दिखे तो वो ये फ्लैग हटा सकती हैं। कहा जाता है कि अरब मूल के इजराइली और फिलिस्तीनी नागरिक संविधान की इसी खामी का फायदा उठाते हैं।
अब हिंसा का खतरा
- बहरहाल, इजराइली मिनिस्टर के नए आदेश से एक बार फिर इजराइल-फिलिस्तीन जंग की आशंका उभरने लगी है। ईरान की सरकार फिलिस्तीनी आतंकी संगठन हमास की मदद से इजराइल पर हमले करा सकती है। ईरान की फौज फिलिस्तीन की गुपचुप तरीके से मदद भी कर सकती है।
- दूसरी तरफ, नेतन्याहू ने तीन दिन पहले ही साफ किया था कि वो अरब देशों से अच्छे रिश्ते चाहते हैं, लेकिन इजराइल किसी भी कीमत पर अपनी सिक्योरिटी और हितों से समझौता नहीं करेगा। मतलब साफ है कि नेतन्याहू सरकार टकराव के लिए तैयार है।
- 2020 में भी इसी तरह के मुद्दे पर इजराइल और फिलिस्तीन के बीच जंग हुई थी। इस दौरान 38 लोग मारे गए थे। इसमें 7 इजराइली थे। एक भारतीय मूल की नर्स की भी मौत हो गई थी।
विवाद की जड़ क्या
- 1948 में अंग्रेज बेलफोर कॉन्सेप्ट लेकर आए। इसके तहत फिलिस्तीन को तोड़ा गया। 14 मई 1948 को इजराइल बना। फिलिस्तीन की कुल जमीन का 44% हिस्सा इजराइल और 48% फिलिस्तीन को दिया गया। यरुशलम को 8% जमीन देकर इसे UNO की टेरेटरी बना दिया गया। यानी इस पर न तो फिलिस्तीन का हक था और न इजराइल का। अरब देश इससे नाराज हो गए।
- इजराइल बना ही था कि जंग शुरू हो गई। ठीक वैसे ही जैसे 1947 में भारत से टूटकर पाकिस्तान बना और इसी वक्त कश्मीर के मुद्दे पर दोनों देश भिड़ गए। दोनों मामलों में आज भी यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। इजराइल बनते ही उस पर 6 अरब देशों ने हमला बोला। इजराइलियों के लिए अस्तित्व की लड़ाई थी। वो ये जंग जीत गए।
48% से सिकुड़कर अब महज 12% जमीन पर फिलिस्तीन
1948 के पहले 100% हिस्से पर फिलिस्तीन था। 14 मई 1948 को इजराइल बना और फिलिस्तीन महज 48% हिस्से में रह गया। इजराइल के हिस्से 44% जमीन आई। फिर इजराइल अपनी ताकत के दम पर फिलिस्तीनी जमीन पर कब्जा करता चला गया। हालात ये हैं कि आज महज 12% जमीन पर फिलिस्तीन है। इजराइल ने कुछ ऐसे नियम बनाए कि फिलिस्तीनी अपनी रक्षा के लिए सेना ही नहीं बना सकते। उन्हें हथियार रखने की भी इजाजत नहीं है।
फिलिस्तीन में अब दो हिस्से
1948, 1956, 1967, 1973 और 1982 में झड़पें हुईं। इजराइल को भारी पड़ना ही था और वो पड़ा भी। हर बार फिलिस्तीन की जमीन पर कब्जा करता चला गया। अब फिलिस्तीन कहता है कि हमें 1948 में मिला 44% हिस्सा ही दे दो, लेकिन इजराइल भला ऐसा क्यों करेगा? उसने जंग से ये जमीन हासिल की है। और एक बात- फिलिस्तीन इतनी भी जमीन नहीं संभाल सका। उसके दो हिस्से हो गए। पहला वेस्ट बैंक और दूसरा गाजा पट्टी। वेस्ट बैंक में रहने वाले समस्या का शांतिपूर्ण हल चाहते हैं। वहीं, गाजा पर हमास का कब्जा है। वो जंग के जरिए इजराइल से अपनी जमीन वापस लेना चाहते हैं।
यरुशलम को लेकर विवाद क्यों
यह शहर तीन धर्मों की आस्था का केंद्र है। ईसाई, मुस्लिम और यहूदी। ईसाई मानते हैं कि यरुशलम ही बैथलेहम है जहां ईसा मसीह का जन्म हुआ। यहूदी मानते हैं कि यहीं से उनके धर्म की शुरुआत हुई। और मुस्लिमों की तीसरी सबसे पवित्र मस्जिद अल अक्सा यहीं है।
इस विवाद में भारत किसके साथ
1988 में भारत ने फिलिस्तीन को एक राष्ट्र के रूप में मान्यता दी। 1996 में गाजा में अपना ऑफिस भी खोला, लेकिन हमास की हरकतें देखकर 2003 में इसे फिलिस्तीन सरकार के एडमिनिस्ट्रेटिव सर्कल में आने वाले रामल्ला में शिफ्ट कर दिया। आज भी ये वहीं है। 2011 में जब फिलिस्तीन को यूनेस्को का मेंबर बनाने की मांग उठी तो भारत ने इसका समर्थन किया। 2015 में फिलीस्तीन का नेशनल फ्लैग UN में लगा, तब भी भारत मजबूती से उसके साथ खड़ा था। 2018 में नरेंद्र मोदी फिलिस्तीन की ऑफिशियल विजिट करने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री बने।
इस मुद्दे पर भारत सरकार कितना अलर्ट रहती है, इसका अंदाजा इस बात से लगाइए कि 2017 में जब मोदी इजराइल की यात्रा करने वाले पहले प्रधानमंत्री बने तो वे चंद किलोमीटर दूर फिलिस्तीन नहीं गए थे। इसके अगले साल उन्होंने अलग से फिलिस्तीन का दौरा किया। इसे ‘बैलेंसिंग एक्ट ऑफ इंडियन डिप्लोमैसी’कहा गया।
भारत को इजराइल की कितनी जरूरत
इजराइल टेक्नोलॉजी के मामले में दुनिया के टॉप 5 देशों की लिस्ट में शामिल है। अमेरिका और रूस जैसे देश उसके मुरीद हैं। डिफेंस और एग्रीकल्चर सेक्टर में तो इजराइल के दुश्मन भी उसका लोहा मानते हैं। इजराइली ड्रोन और तोपें दुनिया में सबसे खतरनाक मानी जाती हैं। अब ये भारत को मिल रहे हैं। एग्रीकल्चर रिसर्च और प्रोडक्शन में इजराइल भारत की काफी सहायता कर रहा है। उसके इरिगेशन सिस्टम को तो बेजोड़ कहा जाता है, जहां 90% वॉटर री-साइकिल होता है।