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परिणाम आने के बाद उठ सकती है आरक्षण का दायरा बढाने की मांग

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बिहार की जाति आधारित गणना के पीछे आरक्षण की राजनीति ताकत रूप में है! जाति गणना से आए नतीजे से साफ हो सकेगा कि किस जाति की कितनी आबादी है। उसके बाद जिसकी जितनी आबादी उसकी उतनी हिस्सेदारी का गणित लागू करने की राजनीतिक लड़ाई तेज होगी। बिहार में पिछड़ी जातियों और अतिपिछड़ी जातियों की संख्या सर्वाधिक मानी जाती है इसलिए इसका फायदा भी इन्हें सर्वाधिक मिलने की संभावना है। सवर्णों को यह लग रहा है कि उनकी संख्या कम आंकी जाती रही है तो जाति गणना से उनकी ताकत बढ़ेगी और वे 10 फीसदी से ज्यादा आरक्षण की मांग तेज कर सकेंगे। ओबीसी को लग रहा है कि 27 फीसदी से ज्यादा आरक्षण उन्हें मिलेगा।

तेजस्वी ओबीसी के 27 फीसदी आरक्षण के दायरे को बढ़ाने की मांग कर चुके हैं

आपको याद होगा तेजस्वी यादव ने जब जाति जनगणना कराने की मांग के लिए पटना में 13 अगस्त 2021 को प्रेस कांफ्रेस किया था तब यह भी कहा था कि ओबीसी के 27 फीसदी आरक्षण को बढ़ाना चाहिए। बैकलॉग भरने की भी मांग उन्होंने की थी। तब यह साफ हो गया था कि जाति गणना का बड़ा असर आरक्षण की राजनीति पर पड़ेगा। बिहार में 2024 में लोक सभा और 2025 में विधान सभा का चुनाव होना है। बिहार सरकार ने जाति आधारित गणना पूरा करने का लक्ष्य लक्ष्य 2022 तक ही रखा है। यानी चुनाव के पहले यह पता चल जाएगा कि बिहार में किस जाति की संख्या कितनी है? उसके बाद बहुत संभव है आरक्षण का दायरा बढ़ाने की रणनीति भी तेज हो जाए।

आरक्षण की बात राजनीतिक, जाति गणना वैज्ञानिकता का मांग- उर्मिलेश, वरिष्ठ पत्रकार

वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश जाति जनगणना पर 2008 से ही लिखते, बोलते रहे हैं। वे कहते हैं कि आरक्षण का क्या होगा यह प्रश्न नहीं है। भारत जैसे देश में जनगणना कराने का मतलब सामाजिक, आर्थिक डाटा को इकट्ठा करना है। यह सोशल ऑडिट जरूरी है जिसमें संख्या के साथ ही हालात का संकलन भी आना चाहिए। कई बार होता है कि न्यायालय से डाटा मांगा जाता है और इसके लिए सरकार को विधान मंडल के पास जाना पड़ता है। छत्तीसगढ़ में ऐसा हुआ कि कमीशन बनाया गया, संख्या का पता किया और उसके बाद एक्ट लेकर आए। यह अभी राज्यपाल के हस्ताक्षर के इंतजार में पड़ा है। आरक्षण की बात राजनीतिक लोग कर सकते हैं लेकिन मैं कहता हूं कि वैज्ञानिकता की मांग है जाति गणना।

जिसकी ज्यादा आबादी दिखेगी उसका दलों पर दबाव बढ़ेगा- ध्रुव कुमार, वरिष्ठ पत्रकार

वरिष्ठ पत्रकार ध्रुव कुमार कहते हैं कि जाति गणना से जाति गोलबंदी पर असर पड़ेगा। जाति गणना के परिणाम आने के बाद आरक्षण की राजनीति को ताकत मिलेगी। जो जाति राजनीति नहीं कर रही वह पार्टी भी प्रभावित होगी। अभी हाल ही में आपने देखा कि कुढ़नी उपचुनाव में भाजपा ने अतिपिछड़ा और दलित वोट बैंक को साधा और चुनाव जीत कर दिखाया। यानी सभी पार्टियां सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला अपनाएंगीं। जिसकी ज्यादा आबादी दिखेगी उसका दलों पर दबाव बढ़ेगा।

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