यूपी के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष केशरी नाथ त्रिपाठी नहीं रहे। 88 साल की उम्र में प्रयागराज के अपने घर पर उन्होंने अंतिम सांस ली। सीएम योगी आदित्यनाथ घर पहुंचे और उन्हें श्रद्धांजलि दी। केशरी नाथ पश्चिम बंगाल, बिहार, मेघालय और मिजोरम के राज्यपाल रहे। 1977-79 में जनता पार्टी की सरकार में कैबिनेट मंत्री बने।
केशरी नाथ अलग-अलग समय पर तीन बार यूपी विधानसभा के अध्यक्ष बने। इसमें जो तीसरी और आखिरी बार 2002 में बने वह बेहद रोमांचक था। तब वह बीजेपी के होते हुए भी मायावती और मुलायम दोनों की सरकार में इस पद पर बने रहे। आइए आज उन दिनों की कहानी को जानते हैं।
कोई किसी के साथ सरकार ही नहीं बना रहा था
2002 के विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत यानी 202 सीटें नहीं मिली। सपा 143, बसपा 98, बीजेपी 88, कांग्रेस 25 और लोक दल को 14 सीटों पर जीत मिली। सपा के पास सीटें ज्यादा थी लेकिन बसपा या भाजपा मुलायम सिंह के साथ नहीं जाना चाहते थे। पुराने खटास भरे रिश्तों की वजह से मायावती बीजेपी के साथ भी सरकार नहीं बनाना चाहती थी। ऐसे में राज्य के अंदर राष्ट्रपति शासन लग गया।
बीजेपी का साथ मिला और मायावती चौथी बार सीएम बनीं
लंबी बातचीत और आपसी समझौते के बाद बीजेपी और लोकदल ने 3 मई 2002 को मायावती को समर्थन देकर चौथी बार मुख्यमंत्री बना दिया। केशरी नाथ तीसरी बार विधानसभा के अध्यक्ष बने। बीजेपी के लालजी टंडन, कलराज मिश्रा और हुकुम सिंह जैसे दिग्गज नेता मायावती के मंत्रिमंडल में शामिल हुए। 1 साल भी नहीं बीते दोनों दलों में विवाद शुरू हो गया। वजह बने कुण्डा के निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया।
मायावती ने राजा भैया पर आतंकवाद की धारा लगा दी
मायावती लॉ एण्ड ऑर्डर को सबसे ज्यादा प्राथमिकता देती थीं। उन्होंने बाहुबली विधायकों को निशाना बनाया और कार्रवाई शुरू की। कुण्डा के राजा भैया, जौनपुर के धनंजय सिंह जैसे 20 विधायकों ने उस वक्त के राज्यपाल विष्णुकांत शास्त्री से बसपा सरकार बर्खास्त करने की मांग कर दी। मायावती गुस्से से आगबबूला हो गईं, उन्होंने राजाभैया पर आतंकवाद निरोधक कानून यानी पोटा लगाकर नवंबर 2003 में जेल में डलवा दिया। केशरी नाथ इस फैसले के एकदम खिलाफ थे।
मायावती अपना इस्तीफा लेकर राज्यपाल के पास पहुंच गई
राजा भैया पर पोटा और ताज कॉरिडोर को लेकर बसपा और बीजेपी में ठन गई। 26 अगस्त 2003 को मायावती ने कैबिनेट की बैठक की और विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर दी। केशरी नाथ इसके एकदम विपरीत थे। वह नहीं चाहते थे कि डेढ़ साल के अंदर दोबारा चुनाव हो। लेकिन मायवती नहीं मानीं और अपना इस्तीफा राज्यपाल विष्णुकांत को सौंप दिया।
बीजेपी मायावती से आगे निकली और उसने राज्यपाल को समर्थन वापसी का पत्र पहले दे दिया। इससे विधानसभा भंग होने से बच गई।
मुलायम की सरकार में भी अध्यक्ष बने रहे केशरी नाथ 29 अगस्त 2003 को मुलायम सिंह ने लोकदल, कल्याण सिंह की राष्ट्रीय क्रांति पार्टी, निर्दलीय विधायकों और बसपा के 13 विधायकों के समर्थन से सरकार बना ली। केशरी नाथ त्रिपाठी ने सपा सरकार को बहुमत साबित करने के लिए दो हफ्ते का समय दिया। मुलायम ने 212 विधायकों के मिले समर्थन को सदन में साबित कर दिया।
बसपा के 37 विधायक अपनी मांग लेकर केशरी नाथ के पास पहुंचे
एक तरफ बसपा अपने उन 13 विधायकों की सदस्यता रद्द करने की मांग लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंच गई थी जो सपा में शामिल हुए। वहीं दूसरी तरफ 37 विधायकों के अलग पार्टी की मांग ने उसे बेचैन कर दिया। केशरी नाथ त्रिपाठी यही चाहते थे। एक दिन के अंदर उन्होंने विभाजन की मान्यता दे दी। एक-तिहाई विधायकों के टूटने से अब दल-बदल कानून नहीं लागू होगा।
बसपा ने कोर्ट में केशरी नाथ के फैसले को चुनौती दे दी
मायावती ने 13 विधायकों और विभाजन को मान्य करने वाले विधानसभा अध्यक्ष के फैसले को लखनई खंडपीठ में चुनौती दे दी। कोर्ट में यह फैसला चलता रहा। इधर केशरी नाथ त्रिपाठी मुलायम की सरकार में विधानसभा चलाते रहे। 2004 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की हार के बाद केंद्रीय नेतृत्व ने 19 मई 2004 को केशरी नाथ को पद छोड़ने का निर्देश दिया। उन्होंने उसी दिन इस्तीफा दे दिया।
दूसरी तरफ 14 फरवरी 2007 को बसपा में हुई टूट पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया। कोर्ट का फैसला मायावती के पक्ष में आया। मुलायम सिंह की सरकार गिर गई। हालांकि तब तक कार्यकाल पूरा हो चुका था। सियासी जानकार आज भी कहते हैं केशरी नाथ नहीं होते तो मुलायम की सरकार 1 महीने के अंदर गिर जाती।