मुखिया के बेटे ने नए प्रभारी के सामने क्यों सुनाया दुखड़ा?
सत्ताधारी पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र से लेकर हर चीज एक्सट्रीम लेवल पर देखने को मिल जाती है। सत्ताधारी के पार्टी के नए प्रभारी ने जब वॉर रूम में सब नेताओं का मन टटोला तो कई तरह के युद्ध सामने आ गए। हारे हुए सांसद उम्मीदवारों की प्रभारी के साथ हुई बैठक में जोरदार घटना हुई।
प्रदेश के मुखिया के बेटे और आरसीए चेयरमैन भी मन की बात कहने आए। प्रदेश के मुखिया के बेटे ने जो कहा वह मिथ बस्टर था। भरी बैठक में ऐसे शिकायतें कि जैसे कोई विपक्षी दल का नेता करता है।
यहां तक कहा कि हारे हुए सांसदों की न सरकार और न पार्टी में कोई पूछ है। बैठकों तक में नहीं बुलाया जाता। उन्हें तवज्जो नहीं दी जाती। सब जगह विधायक हावी हैं।
प्रदेश के शक्तिशाली शख्सियत में शुमार नेता से यह बात सुनकर बैठक में मौजूद हर कोई दंग रह गया। अब इस बात के मायने और इसके सियासी लॉजिक की पड़ताल की जा रही है। प्रदेश के मुखिया के बेटे ने प्रभारी की बैठक में यूं ही तो यह बात नहीं बोली होगी, कोई न कोई गहरा राज तो है।
यात्रा में राहुल गांधी ने महिला नेता को नहीं पहचाना
इंसान को गलतफहमी नहीं पालनी चाहिए, यह यूनिवर्सल कहावत है, लेकिन सियासत में कई लोग जीवन भर इसे ही पाले रहते हैं। पिछले दिनों भारत जोड़ो यात्रा में एक महिला नेता को राहुल गांधी के साथ चलने का मौका मिला तो उनके तेवर बदल गए।
महिला नेता को यह भ्रम हो गया कि यात्रा में साथ चलकर राहुल गांधी को जो सुझाव दिए हैं, इससे अब सीधा परिचय हो गया हे। दो दिन बाद ही महिला ग्रुप को राहुल ने चर्चा के लिए बुलाया, महिला नेता का भी नाम था।
जब ग्रुप डिस्कशन शुरू हुआ तो महिला नेता से ही राहुल गांधी ने परिचय पूछ लिया कि आप कौन? इस घटना को साथ की महिला नेताओं ने भी देखा और सुना और बात सब जगह फैल गई। बाद में एक सीनियर नेता ने समझाया कि अब तक राहुल गांधी के साथ आप जैसी सैकड़ों महिला नेता साथ चलकर चर्चा कर चुकी हैं, कोई याद थोड़े ही रहता है। इस घटना के बाद महिला नेता को सियासत की हकीकत समझ आ चुकी है।
मंत्री ने विधायक के साथ ऐसा क्या किया कि पूरी यात्रा में पास ही नहीं फटके
सत्ताधारी पार्टी में मंत्री-विधायकों के बीच खींचतान नई बात नहीं है। हर काम और हर अवसर पर यह एक अनिवार्य कम आवश्यक बुराई बन गई है। राहुल गांधी की यात्रा के दौरान भी एक मंत्री और एक विधायक की खींचतान का लाइव सीन किसी प्रत्यक्षदर्शी ने बयां किया।
यात्रा में चलते हुए विधायक का पैर मंत्री के जूते पर इस तरह पड़ा कि जूता ही खुल गया। अब तेज स्पीड में चलते हुए जूता खुल जाए तो दो ही ऑप्शन थे। खड़े रहकर जूता पहनने की कोशिश की तो भीड़ से कुचलकर घुटने छिलवाएं या सुरक्षा घेरे से बाहर हो जाएं।
एक बार घेरे से बाहर होने का मतलब है कई किलोमीटर भीड़ में धक्के खाते चलें और सुरक्षाकर्मी वापस घुसने दें या न दें यह भी गारंटी नहीं। विधायक का पैर पड़ने से मंत्री का जूता खुला तो उन्हें सुरक्षा घेरे से बाहर होना पड़ा, बड़ी मुश्किल से वापस एंट्री हो पाई। मंत्री गांधीवाद में कतई विवास नहीं करने वाले हैं, मंत्री का सीधा फंडा है- जैसे को तैसा।
मंत्री ने वापस आते ही विधायक के जूते पर इस तरह टंगड़ी मारी कि लैस और जूता दोनों खुल गए। विधायक को समझ आ गया कि यह जानबूझकर किया है लेकिन उस भीड़ में इतना मौका कहां था। मजबूर होकर बाहर होना पड़ा, कई किलोमीटर भीड़ के धक्के खाकर चलने के बाद ही वापस रस्से वाले घेरे में आ सके। पूरी यात्रा विधायक ने मंत्री से दूर रहना ही उचित समझा।
विपक्षी पार्टी नेता से मुलाकात का फोटो बना सत्ताधारी नेताओं में दरार का कारण
प्रदेश की सत्ता में दमखम रखने का परसेप्शन बनाने वाले एक नेताजी की सियासी मुलाकात का फोटो उनके लिए अब परेशानी पैदा कर रहा है। जिस विपक्षी पार्टी के दिग्गज से पावर के नजदीकी नेताजी ने मुलाकात की, उसका जिक्र उन्होंने सत्ता के बड़े घर के एक मेंबर से नहीं किया था।
सत्ता के बड़े घर के मेंबर के पास वह फोटो किसी ने पहुंचाई। अंदरखाने चर्चा है कि उस फोटो के बाद सत्ता के बड़े घर के मेंबर और सत्ता में बीसों उंगली डूबाकर रखने वाले नेताजी के रिश्तों में दरार आ चुकी है।
अब सियासत की रीत ही ऐसी है, कोई कितना ही नजदीकी हो, नजदीकियां परिस्थितियों की होती है दिलों की नहीं। हालात बदलते ही नजदीकियां कब दूरियां बन जाए, कह नहीं सकते। ऐसा ही कुछ दो नेताओं के बीच हो गया है। इसके साइड इफेक्ट भी अंदरखाने दिखने शुरू हो गए हैं।
जब प्रदेश के मुखिया को देना पड़ा बिना माइक भाषण
दीए तले अंधेरा वाली कहावत को पिछले दिनों सचिवालय में साकार होते देखा गया। बजट पर सुझाव लेने के लिए प्रदेश के मुखिया ने बैठक बुला रखी थी। अब प्री बजट बैठक से महत्वपूर्ण क्या होगा, लेकिन जरूरी नहीं कि हर अफसर-कर्मचारी इसे अहमियत दे। प्रदेश के मुखिया ने जैसे ही भाषण शुरू किया तो पता लगा माइक ही खराब है।
तमाम कोशिशों के बावजूद माइक चालू नहीं हुआ। अब इनडोर मीटिंग थी तो मुखिया ने सहजता में बिना माइक ही अपनी बात कह दी। इस घटना के बाद जब पड़ताल शुरू हुई तो कई रोचक फैक्ट सामने आए। सचिवालय में बैठकों में माइक सिस्टम का भी अच्छी खासी रकम का टेंडर होता है।
जिस फर्म के पास माइक मेंटीनेंस का काम है, उसकी गलती की वजह से माइक ठीक ही नहीं हुआ था। इस घटना के बाद इंटरनल जांच हुई है, सत्ता के बड़े ऑफिस ने भी इसे गंभीरता से लिया हे। अब अति आउट सोर्सिंग के साइड इफेक्ट भी तो झेलने ही पड़ते हैं।
विपक्षी पार्टी में नए साल में नए समीकरणों की आहट
विपक्षी पार्टी में नए साल पर नए समीकरणों की आहट शुरू हो गई है। कुछ चेहरों को बदले जाने की बिसात अभी से तैयार होनी शुरू हो गई है। प्रदेश की पूर्व मुखिया की देश—प्रदेश में सियासी मुलाकातों और उनकी सक्रियता से भी पार्टी के भीतर कयास लगने शुरू हो गए हैं। नए साल की शुरुआत में ही विपक्षी पार्टी की अगली दिशा तय हो जाएगी। दिल्ली से लेकर जयपुर तक अगले सियासी समीकरणों पर अलग अलग चर्चाएं हैं।
मंत्री बनने से वंचित नेताजी की होटल इंडस्ट्री में एंट्री, शहर में दो होटल प्रोजेक्ट
सियासत और एंटरप्रन्योरशिप का कई राज्यों में बहुत अच्छी और सफल जोड़ी है। सत्ता में जब धमक हो,चवन्नी जब रूपए के भाव चल रही हो तो भविष्य का प्रबंध करने में क्या हर्ज है? मंत्री बनने से वंचित रहे एक नेताजी को हॉस्पिटैलिटी सेक्टर में भविष्य दिख रहा है। नेताजी के सियासी शुभचिंतकों ने उनके नए बन रहे होटलों के बारे में ब्योरा बताना शुरू किया तो यह बात कई जगह पहुंच गई।
सियासी हलकों में नेताजी के नए होटल प्रोजेक्ट्स के बारे में नमक मिर्च लगाकर किस्से सुनाए जा रहे हैं। नेताजी के एक आहत समर्थक ने तर्क दिया कि बिजनेस करना ही गुनाह हो गया क्या? नेताजी का राजधानी के एक बंद हो चुके कॉलेज की जमीन पर हेरिटेज होटल बनने का प्रोजेक्ट भी खूब चर्चा में है।
सिटी में भी एक अच्छा होटल बन रहा हे। एक फार्म हाउस भी बनाने की चर्चा है। अब मार्केट की ग्रोथ रेट या जीडीपी ग्रोथ रेट से ज्यादा किसी की तरक्की हो तो कहने वालों का कौन मुंह पकड़ सकता है?