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ब्रेस्ट इम्प्लांट कराकर ट्रांसजेंडर बनीं, मुंबई के बार में डांस किया, श्रीदेवी-रणबीर कपूर जैसे स्टार्स के साथ फिल्में कीं

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कई फिल्मों में नजर आ चुकीं नैरी सिंह, जो कभी नरेंद्र सिंह नाम का लड़का थीं। नैरी सिंह ट्रांसजेंडर हैं। नरेंद्र से नैरी बनने की कहानी काफी घुमावदार है, जो मध्य प्रदेश के पन्ना जिले से शुरू होकर मुंबई, दुबई और फिर मुंबई आती है। MP के पन्ना में जन्मे नरेंद्र सिंह का शरीर तो लड़कों वाला था, लेकिन आदतें और शौक लड़कियों के थे। ये ही शौक इन्हें डांस की तरफ ले गया। जब घरवालों और रिश्तेदारों ने एक राजपूत लड़के को लड़की की तरह डांस करते देखा तो पाबंदियां लगने लगीं।

17 साल के नरेंद्र पन्ना से भाग कर मुंबई आ गए। कुछ दिनों तक पेट पालने का संघर्ष चलता रहा। झाड़ू-पोछा जैसे काम भी किए। फिर, मुंबई के डांस बार में नाचने का काम मिल गया। मनचाहा काम था, 100 रुपए रोज से देखते ही देखते 30 हजार रुपए रोज तक कमाई जा पहुंची। ब्रेस्ट इम्प्लांट करवाकर खुद को पूरी तरह लड़की जैसा दिखने वाला बना लिया, लेकिन कहानी यहीं नहीं खत्म होती। मुंबई के बार से दुबई के बार तक में डांस किया। फिर मुंबई आकर फिल्मों में काम किया। फिल्मों में काम करने के दौरान ही अपना नाम रखा नैरी सिंह। आज नैरी कई बड़ी फिल्मों का हिस्सा हैं। इसमें श्रीदेवी की मॉम और रणबीर कपूर की तमाशा जैसी फिल्में भी शामिल हैं। कई नए प्रोजेक्ट्स हाथ में हैं।

आज की स्ट्रगल स्टोरीज में पढ़िए इन्हीं नैरी सिंह की कहानी…खुद उनकी जुबानी-

घर की सबसे लाडली रही

मेरा जन्म पन्ना, मध्य प्रदेश के राजपूत फैमिली में हुआ। पन्ना को डायमंड सिटी के नाम से भी लोग जानते हैं, क्योंकि यहां से डायमंड निकलता है। मेरे पिता एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट में डिप्टी डायरेक्टर थे। फैमिली में हम चार भाई और तीन बहन थे और सभी में मैं सबसे छोटी हूं। यही वजह है कि मेरी परवरिश बहुत अच्छे और लाड-प्यार में हुई। मम्मी हाउस वाइफ थीं। मेरे पापा ज्यादातर बाहर रहते थे इसलिए मैं मम्मी से ज्यादा अटैच्ड थी। मुझसे पांच साल बड़ी बहन थी, वो भी मुझे बच्चों की तरह ट्रीट करती थी।

लड़का थी, लेकिन शौक सभी लड़कियों वाले रहे

मैं बचपन से डांसर हूं जबकि हमारे खानदान में दूर-दूर तक कोई डांसर नहीं था। मैंने बचपन से लड़कियों वाले सारे काम किए हैं। मैं अपने भाइयों से नहीं बल्कि मां और बहनों से ज्यादा क्लोज थी इसलिए बहनों के खाना बनाने से लेकर साफ-सफाई करने और कपड़े पहनने को ऑब्जर्व करती थी। बचपन में जब डांस करती थी, तो उस समय सभी लोगों ने एप्रिशिएट किया, लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती गई, स्कूल छोड़कर कॉलेज में पहुंची तब लोगों को इससे प्रॉब्लम होनी शुरू हो गई।

पैसे चुराकर श्रीदेवी की पिक्चर की रिकॉर्डिंग खरीदती थी

बचपन से श्रीदेवी की बहुत बड़ी फैन रही हूं। हमेशा उनका डांस, कॉस्टयूम, मेकअप आदि को फॉलो किया है। पिताजी के पास से पैसे चुराकर श्रीदेवी की पिक्चर देखती थी और उसकी रिकॉर्डिंग खरीदती थी। हिम्मतवाला, मवाली, तोहफा, सदमा ऐसी कोई पिक्चर नहीं, जिसकी रिकॉर्डिंग न खरीदी हो। उस समय मेरे पिताजी ने मेरे बर्थडे में टेप रिकॉर्डर गिफ्ट किया था, उस समय कैसेट चला-चलाकर पहाड़ों पर नाचती थी क्योंकि धीरे-धीरे घर में नाचने पर ऑब्जेक्शन शुरू हो गया था।

लड़का होने की वजह से 17 साल की उम्र में डांस करने पर लोग बुरा-भला कहते थे

बचपन में घर के सभी लोगों ने मेरे डांस को एप्रिशिएट किया था, लेकिन यही चीज जब मैंने 16-17 साल की उम्र में जारी रखा, पैशन और बढ़ गया तो सबको प्रॉब्लम होने लगी। लड़की बनकर नाच रहा है, सब जगह नाम खराब करके रखा है। यह सारी चीजें शुरू भी हुईं, क्योंकि जहां मैं पैदा हुई, वहां के लोगों की सोच पिछड़ी थी।

जिस गुरु से डांस सीखा, उनको भी डांस करने पर घरवालों से पड़ती थी मार

मेरे गुरु देवेंद्र सिंह बुंदेला थे। उनका नाटेश्वर भवन है, जहां से पद्मा खन्ना, हेमा मालिनी, आशा पारीख जैसी बड़ी हीरोइनों ने डांस सीखा है। नटराज, नवरंग, उमराव जान, पाकीजा, प्यार किया तो डरना क्या, मुगल-ए-आजम जैसी सुपर-डुपर हिट फिल्मों के गाने गोपी किशन ने कोरियोग्राफ किए हैं। वो घर में बड़े थे इसलिए घरवालों ने उनकी जबरदस्ती शादी करवा दी। उनके बच्चे हो गए।

मैंने देखा है कि जब वो डांस करके आते थे, तब उनके फादर उन्हें छड़ी से मारते थे। बरगद के पेड़ में उन्हें रस्सी से बांध देते थे। वो जिधर से गुजरते थे, उधर लोग उन्हें छक्का, हिजड़ा कहकर कमेंट्स करते थे। लाइफ में घुट-घुटकर जीने की उनकी जर्नी मैंने देखी थी, वो मेरे सामने रोते थे। उनका डांस ही सबसे बड़ा दुश्मन था।

डांस के लिए मां से 1 हजार रुपए लेकर आ गई मुंबई

मेरी तीनों बहनें पढ़ी-लिखी थीं इसलिए उनका इतना बैकवर्ड माइंडसेट नहीं था। हालांकि उनका कहना था कि डांस को प्रोफेशन मत बनाओ और पढ़-लिखकर अच्छी जॉब करो, लेकिन मेरा पढ़ने में मन नहीं लगता था।

मैं प्राणनाथ स्वामी मंदिर में डांस कर रही थी। वहां पर मुझे पद्मा खन्ना ने देखा, तब उन्होंने कहा कि तुम इतना अच्छा डांस करते हो। फिर यहां क्या कर रहे हो, तुम मुंबई आ जाओ। उन्होंने जब से यह बात बोली, तब से मेरे दिमाग में मुंबई घुस गया।

इसके बाद मैंने 17 साल की उम्र में घर छोड़ने का फैसला ले लिया। मैंने घर में सबको बताया कि भोपाल में शो करने जा रही हूं और भागकर मुंबई आ गई। मम्मी से हजार रुपए लेकर मुंबई आई थी। मेरे घरवालों को एक-डेढ़ महीने बाद पता चला कि मैं मुंबई आ गई हूं।

मुंबई में काम के बदले 50 रुपए मिले, लेकिन कभी वो भी नहीं

मुंबई 1999 में आई, तब पद्मा खन्ना से मिली। उस समय वे भोजपुरी फिल्म ‘हे तुलसी मैया’ बना रही थीं। वे डायरेक्टर थीं और मैंने उनको असिस्ट किया। एक साल उनके साथ रही। उसके बाद वे फैमिली को लेकर अमेरिका शिफ्ट हो रही थीं, तब उन्होंने मुझे कोरियोग्राफर कानव मुखर्जी के साथ काम करने की सलाह दी। मैंने कानव मुखर्जी को बतौर डांस डायरेक्टर जॉइन किया। जब असिस्ट करती थी, तब 50 रुपए दे देते थे, कभी तो फ्री में भी चली जाती थी। मेरे पास पैसे नहीं थे, क्योंकि घर से पैसे लेकर नहीं आई थी। मां से जो हजार रुपए मांगकर आई थी, वो भी खर्च हो चुके थे। कमाई का कोई जरिया नहीं था।

घर की लाडली रही, लेकिन मुंबई में झाडू-पोछा, बर्तन सब किया

मेरी फाइनेंशियल कंडीशन खराब थी, पर मैंने कसम खाई थी कि घरवालों से पैसे नहीं मांगूंगी, क्योंकि यह मेरी जिंदगी थी और इसे मैंने चुना था। फिर तो मुझे चाहे जो काम करना पड़े, वह करूंगी। मेरे पास रहने के लिए जगह नहीं थी, तब मेरे ही शहर का एक लड़का मुंबई हीरो बनने आया था। मैं उसके घर में रहती थी। वह लड़का दिन भर दारू पीता और पलंग पर सोया रहता था। मैं जमीन पर चटाई पर सोती थी। मैं ऐसी फैमिली से थी कि घर में पानी का ग्लास नहीं उठाया था, लेकिन उसके घर में रहने के लिए झाडू-पोछा, बर्तन सब करती थी। वह लड़का मुझे डिमोटिवेट भी करता था, लेकिन सुबह उठकर सोचती थी कि आज मुझे कहां जाना है।

कई मिन्नतों के बाद बीयर बार में मिली नौकरी

शुरुआती दिनों में बहुत स्ट्रगल किया। मैं चारकोप, कांदिवली में रहती थी। वहां ऊपरी मंजिल पर एक सरदार फैमिली रहती थी। उन्हें मेरे डांस के बारे में पता था। मेरी परेशानी देखकर उन्होंने सुझाया कि तुम इतने अच्छे डांसर हो, तब बीयर बार में डांस करने के लिए ट्राई करो। मैंने बोला- बीयर बार में… वहां तो लड़कियां डांस करती हैं। उन्होंने कहा कि तुम अच्छे डांसर हो चाहो तो वहां जाकर ट्राई करो। उनके कहने पर, बोरीवली में विद्या बीयर बार में गई। वहां गेट पर सिक्योरिटी गार्ड खड़ा था। अंदर जाकर मैनेजर से बात की, तब उन्होंने सीधा मना कर दिया कि हमारे बार में लड़कियां नाचती हैं, लड़के अलाऊ नहीं हैं। मैंने उनके सामने हाथ जोड़े। मैंने कहा कि देखिए, मुझे खाने और रहने की प्रॉब्लम है। मैं बाहर से आई हूं। मैं एक आर्टिस्ट हूं, पर मेरे पास काम नहीं है। मैं घर का किराया नहीं दे पा रही हूं, इसलिए घर नहीं है। मेरे पास कुछ भी नहीं है। आप सिर्फ एक बार मेरा डांस देख लो, उसके बाद मुझे बाहर निकाल देना।

मेरी हकीकत सुनकर शायद उनको मुझ पर दया आ गई। उन्होंने कहा कि चलो, एक गाना कर लो। मेरी लाइफ का सबसे पहला गाना पूजा भट्‌ट की फिल्म प्रेम दीवाने का था- ‘पि..पि..पिया, पिया तूने मेरा जिया ले लिया…’ था। मेरा डांस देखकर पूरा होटल सन्न रह गया। पूरे होटल का स्टाफ, मैनेजर, अंदर मेकअप रूम से सारी लड़कियां मेरा डांस देखने लग गईं। गाना खत्म होने के बाद काउंटर पर जाकर पैसे मांगने लगी कि तब उन्होंने कहा कि बीयर बार में पैसे ऐसे नहीं मिलते हैं। पब्लिक से तुम्हें पैसा लेकर और मुझको देना पड़ेगा। उसमें से हम काटकर तुमको देंगे। यह बीयर बार है, यहां पर लड़कियों को कस्टमर पैसे देते हैं। उसमें से हम थर्टी-सेवेंटी पर्सेंट करते हैं। 70 पर्सेंट लड़कियों को मिलता है और 30 पर्सेंट हम रखते हैं। मैंने कहा कि अच्छा, यह बात है।

मैंने लाइफ में बार कभी नहीं देखा था। मुझे नहीं मालूम था कि एक जिंदगी ऐसी भी होती है। खैर, मुझे पैसे की जरूरत थी इसलिए मैंने कहा कि सर! एक गाने पर और नाचने दीजिए। मैं पैसे लेकर आऊंगी। फिर मैंने ‘देखी नहीं ऐसी दीवानगी…’ गाने पर परफॉर्म किया। कस्टमर की टेबल पर जा-जाकर 10 रुपए, 20 रुपए करके कुल 170 रुपए इकट्ठा किया। मेरी पहली बार मुंबई में सबसे ज्यादा कमाई 170 रुपए थी। इसमें से 70 रुपए काटकर 100 रुपए मेरे हाथ में आया। मैं 100 रुपए पाकर खुश थी। मैंने मैनेजर से बोला कि अगर आप बोलिए, तो हफ्ते में एक दिन आकर आपके बार में डांस कर लिया करूं। उन्होंने मेरा डांस देख ही लिया था, तब बोले कि हफ्ते में एक दिन संडे को आ जाना।

पैसे मिले तो पहली बार रिक्शे में बैठी

100 रुपए लेकर मैं पहली बार रिक्शे में चढ़ी। उससे पहले कभी-कभी बस का किराया नहीं होता था, तब 10-10 किलोमीटर पैदल चलती थी। ज्यादातर पैदल चलती थी, क्योंकि मेरे पास इतने पैसे नहीं होते थे कि बस भी पकड़ लूं, ऐसा स्ट्रगल किया था मैंने। खैर, कई दिनों बाद वहां पर भरपेट 20-25 रुपए में चिकन खाया और पहली बार 10-12 रुपए में रिक्शा पकड़कर घर आई क्योंकि रात के 10-11 भी बज गए थे। मैंने रास्ते में मिठाई का डिब्बा लिया, जिसके घर रहती थी, उसे मिठाई खिलाया और बताया कि यह मेरी पहली बड़ी कमाई है। जिन पंजाबी ने मुझे बार में डांस करने के लिए सुझाया, उन्हें और उनकी फैमिली को भी मिठाई खिलाई।

हफ्ते के 5 दिन बीयर बार में डांस करके गुजारती थीं

खैर, यहां से मानों शेर के मुंह में खून लग गया। सोचा कि यहां तो एक गाने के ऊपर एक झटके में पैसे मिलते हैं। मैंने दूसरे होटलों में ट्राई करना शुरू कर दिया। फिर मेरी बीयर बार की जर्नी शुरू हुई। बोरीवली से शुरू किया तो मलाड, गोरेगांव, अंधेरी, जुहू और वहां से होते हुए सीधे टाउन तक परफॉर्म करने गई।

मैं हफ्ते में 5 दिन अलग-अलग बीयर बार में डांस करती थी। इस काम को लेकर मेरा कॉन्फिडेंस लेवल बढ़ गया और सोचने लगी इस काम को करने से मुझे तंगी का सामना नहीं करना पड़ेगा। ये बीयर बार ही था जिससे मिली आमदनी से मेरी सभी जरूरतें पूरी हो जाती थीं।

जैसे फिल्मों में ग्रेड होता है, ठीक वैसे ही बीयर बार में भी ग्रेड होता है। मैंने पहली बार जिस बार में डांस किया था, वो D ग्रेड का बार था। इसके बाद मैंने C ग्रेड के बार में, फिर B ग्रेड और फिर A ग्रेड बार में काम किया। इसके बाद मैंने पता किया मुंबई के सबसे बड़े बार के बारे में, जहां पर करोड़ों रुपए की बारिश होती थी। इसके बाद मैंने इन बार्स में काम करना शुरू किया। इन बार्स में काम करने पर मुझे हर दिन लगभग 25 से 30 हजार रुपए तक मिल जाते थे।

डांस के दम पर मुंबई में बनाई खुद की पहचान

डांस के दम पर इतना नाम कमा लिया था कि मेरे नाम पर पूरे मुंबई के लोग मेरा डांस देखने के लिए आते थे। यहां पर काम करने के लिए मैंने अपना नाम बदलकर ईलू रख लिया था। ये फैसला मैंने पद्मा खन्ना के सुझाव पर लिया था।

1999 से लेकर 2011 तक का सफर मैंने बतौर डांसर बिताया। उस समय लड़के जैसे दिखती, सिर्फ डांस लड़कियों जैसे कपड़े पहन कर करती थी। मैं लड़की बनने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी क्योंकि मुझे हर समय फैमिली का ख्याल रहता था।

दुबई में डांस करने पर मिलते थे सोने के गिफ्ट

दुबई का सफर मैंने आफरीन नाम से शुरू किया। मैं मुंबई में अंधेरी ईस्ट के बार में डांस कर रही थी, तभी वहां बैठे दुबई से आए एक शख्स की नजर मुझ पर पड़ी। मेरे डांस से वो इतना प्रभावित हुआ कि उसने दुबई आने का बुलावा दिया। मैंने ये बात घरवालों को बताई, उन्होंने मेरा पासपोर्ट बनवा कर मुझे भेज दिया। जब मैं दुबई पहुंची तो देखा कि वहां सिर्फ और सिर्फ गैंगस्टर थे।

वहां के बार में मैं जब डांस करती थी तो लोगों को काफी ज्यादा पसंद आता था। वो लोग मेरा डांस देखकर हैरान हो जाते थे। मैं वहां आफरीन-आफरीन गाने पर डांस करती थी। वो गाना और मेरा डांस वहां पर इतना हिट हो गया था कि सब लोग वहां मुझे आफरीन बुलाने लगे। उस जमाने में मेरी महीने की कमाई करीब 1.5 लाख थी जो आज के समय के हिसाब से 5 से 6 लाख है। ये बात आज से 12 साल पहले की है। मुझे गिफ्ट में सोने की अंगूठी, चेन, बिस्किट जैसी चीजें मिलती थीं।

दुबई में मेरे लिए लोग इतने पागल थे कि कहते थे, आप मेरे रेस्टोरेंट में बस बैठ जाओ, उसके बदले में 80 हजार या 1 लाख तक की फीस आपको दी जाएगी। ऐसा करके मैंने होटल वालों को एक दिन में 50-50 लाख का कलेक्शन करके दिया है। इस काम में मिले गिफ्ट को मैं अपने जानने वालों में बांट देती थी और ऐसा करके मैं बर्बाद हो गई।

पैसे की जरूरत में डांस करने से पैर में पड़ गए थे फफोले

मुंबई में आए मुझे कुछ ही समय हुआ था। बहन की शादी थी, पैसे भी उतने नहीं थे। उस समय मैंने बार में काम करना शुरू कर दिया था। मेरा बार में एक डांस परफॉर्मेंस था, जहां मैं सुबह से डांस कर रही थी जिस वजह से पैरों में झलके पड़ गए थे, क्योंकि मैं सुबह 7 बजे से लेकर शाम के 7 बजे तक नाच रही थी। वहां पर मुझे सिर्फ 50 रुपए ही मिल रहे थे, इसी वजह से मैंने वहां पर काम करना छोड़ दिया और अंधेरी ईस्ट के एक फेमस बार में काम मांगने चली गई। वहां के मालिक से कहा कि काम की जरूरत है तो उन्होंने काम दे दिया क्योंकि उस समय मुझे मेरे काम की वजह से लोग जानने लगे थे।

पैर तब भी घायल, लेकिन मैंने पैर पर पट्टियां बाधीं और उसके ऊपर से 5 किलो का घुंघरू पहना और डांस करना शुरू किया। डांस करने के बाद जब मैंने पट्टियां खोलीं तो चमड़ी का एक हिस्सा पूरी तरह से छिल गया था, लेकिन उसके बाद भी मैं रुकी नहीं बल्कि उसी हालत में डांस करके मैंने 50 हजार इकट्ठा किए। इसी पैसे से मैंने दीदी के लिए सोने की चेन और अंगूठी खरीदी और घर गई।

दोस्त की सलाह पर बन गईं ट्रांसजेंडर

2012 से मेरे ट्रांसजेंडर बनने की शुरुआत हुई। 2005 में मेरे पेरेंट्स का निधन हो गया था। इसके बाद पूरी फैमिली से मैं कट गई। वजह ये थी घरवालों की तरफ से शादी का दबाव डालना शुरू हो गया था और मैं शादी करना ही नहीं चाहती थी। इस चक्कर में मैंने कई रिश्ते रिजेक्ट किए क्योंकि मुझे ज्यादा लड़के पसंद थे। हालांकि लड़कियां भी मेरी दोस्त थीं, लेकिन लड़कों से तालमेल ज्यादा था। उस समय मेरी एक दो ट्रांसजेंडर दोस्त थीं जिन्होंने कहा कि मैं सिलिकॉन ब्रेस्ट लगवा लूं। इसके बाद मैंने सिलिकॉन ब्रेस्ट लगवा लिया और शी-मेल बन गई।

ट्रांसजेंडर बनने के बाद मिलने लगे फिल्मों के ऑफर

शी-मेल बनने के बाद मेरी लाइफ में बहुत बड़ा टर्निंग पॉइंट आया। इसके बाद से ही मेरी एक्टिंग की जर्नी की शुरुआत हो गई। एक दिन जब मैं अनुराग कश्यप के ऑफिस ऑडिशन देने गई थी। उनके ऑफिस से गुजर ही रही थी कि पीछे से आवाज आई, क्या आप अपना बाइट देंगीं। वो एक लड़की थी जो मुकेश छाबड़ा के ऑफिस में काम करती थी। मैंने बाइट दिया जिसके बाद मुझे फिल्म काला कांडी का ऑफर आया। मैं इस फिल्म के लिए सिलेक्ट हो गई, लेकिन इस फिल्म को बनने और रिलीज होने में काफी वक्त लग गया। इसके बाद मैंने फिल्म माॅम, तमाशा जैसी फिल्मों में काम किया। आज भी मेरा ये सफर जारी है। आने वाले दिनों में मेरी कुछ और फिल्में रिलीज होने वाली हैं।

फिल्म मैरी कॉम…लीजेंड्री बॉक्सर की इस बायोपिक के लिए प्रियंका चोपड़ा को कई अवॉर्ड्स मिले, लेकिन इसी फिल्म में एक एक्ट्रेस ऐसी भी हैं, जिसकी जिंदगी में इस फिल्म के बाद तूफान आ गया। ये हैं मणिपुर की लिन लैशराम। बॉलीवुड में काम किया तो नॉर्थ-ईस्ट के आतंकवादी संगठनों ने इनको पूरे मणिपुर में बैन कर दिया। फतवे जारी हुए कि हिंदी फिल्मों में काम ना करें। नॉर्थ-ईस्ट से होने की भारी कीमत लिन ने चुकाई। ना फिल्मों में काम करने दिया गया, ना मणिपुर में एंट्री मिली।

 बाहुबली, दंगल, टाइगर जिंदा है जैसी फिल्मों से लेकर दिल्ली क्राइम, पाताल लोक जैसी वेब सीरीज तक, इन सभी में फोली आर्ट का काम इन्हीं ने किया है। ये इंडिया के टॉप फोली आर्टिस्ट हैं, लेकिन यहां पहुंचने का सफर इतना आसान नहीं था। 12 साल की उम्र से ये इस काम को सीख रहे हैं, तब इन्हें रोज 20 घंटे काम करना पड़ता था। इतना काम था कि स्कूल भी हफ्ते में एक-दो दिन ही जा पाते थे।

फोली आर्ट ने इन्हें नाम दिलाया, लेकिन जिंदगी कि शुरुआत एक गुरुद्वारे से हुई, जहां इनका पूरा परिवार एक कमरे में रहता था और वहीं काम करता था। किस्मत बदली और इनके परिवार को जबरन नामी फिल्म प्रोड्यूसर बी.आर. चोपड़ा के फार्म हाउस लाया गया, लेकिन ये जबरदस्ती ही जिंदगी बदलने वाली साबित हुई।

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