तारीख: 20 दिसंबर 2022, समय: सुबह के 9:00 बजे, जगह: कानपुर का चंद्रेश्वर हाता।
बेकनगंज इलाके में पड़ने वाले चंद्रेश्वर हाते के सामने रुई की दुकानें खुलने लगी हैं। इलाके में चहल-पहल है। शहर की दीवारें नगर-निकाय चुनाव के पोस्टरों से पटी पड़ी हैं। हाते के ठीक सामने बंशीलाल किराने वाले की दुकान के पास चाय की गुमटी है। यहां पुराने फिल्मी गाने बज रहे हैं। लोग चाय पीते हुए चुनाव पर चर्चा कर रहे हैं।
ये वही इलाका है, जहां 3 जून को 2 समूह के बीच हिंसक झड़पें हुईं थीं। जुमे की नमाज के बाद गुस्साई भीड़ हाते के बाहर खुली दुकानों को बंद कराने पहुंची। हिंदू दुकानदारों ने विरोध किया तो प्रदर्शनकारी गुस्सा गए। 15 मिनट तक चली कहा-सुनी अचानक बवाल में बदल गई। दो वर्गों के लोगों के बीच पत्थर चलने लगे। जब पुलिस पहुंची, तब इलाके में दर्जनों घायल लोग और पत्थर ही पत्थर बिखरे हुए थे।
200 दिन बाद आज भी उस मंजर को याद कर यहां के लोग सिहर जाते हैं। महिलाएं उस दिन के बारे में कुछ बोलना नहीं चाहती। लोगों का कहना है कि हिंसा को काफी वक्त बीत गया, लेकिन वो दिन आज भी भुलाए नहीं भूलता। 7 महीने बाद भास्कर टीम उसी जगह पहुंची जहां बवाल हुआ था। टीम ने हिंसा के गवाह रहे लोगों और जेल में बंद आरोपियों के घरवालों से बात की।
- आइए पहले जानते हैं कि 3 जून को बवाल की शुरुआत कहां से हुई, फिर बारी-बारी लोगों की बातों पर चलते हैं…
अब 50 हिंदू परिवार वाले चंद्रेश्वर हाता में चलते हैं
कानपुर शहर के बीचों-बीच एक घना इलाका है बेकनगंज। आज से 40 साल पहले तक यह हिंदू बाहुल्य हुआ करता था। लेकिन 1991 से लेकर अब तक इस जगह पर 4 बड़े दंगे हुए। यही वजह रही कि आज यहां गिनती भर हिंदू परिवार रह गए हैं। बेकनगंज का चंद्रेश्वर हाता हिंदुओं की बस्ती है। यहां 50 परिवार रहते हैं। इसका नाम भले ही सद्भावना चौक है, लेकिन कानपुर में अब तक हुईं हिंसक झड़पें इसी के इर्द-गिर्द हुई हैं।
चंद्रेश्वर हाता में रहने वाले राजेंद्र गौतम रुई की दुकान करते हैं। राजेंद्र 3 जून को बवाल वाले दिन भी दुकान पर थे। राजेंद्र कहते हैं, “जो हुआ वो हुआ…हम उस दिन को याद नहीं करना चाहते हैं। अच्छी बात ये है कि इस घटना में जो भी लोग थे, वो अब जेल में हैं। हां… उस घटना के बाद कुछ फर्क तो पड़ा है। अब दिन भर बाजार में 5 से 6 पुलिस वाले घूमते रहते हैं। प्रशासन की सख्ती नजर आती है।”
राजेंद्र कहते हैं, “इस घटना के बाद हमारी दुकानदारी पर भी फर्क पड़ा है। कस्टमर इधर अब पहले से कम आते हैं। इससे बिक्री पर थोड़ा असर पड़ा है लेकिन ये सब धीरे-धीरे नॉर्मल हो जाएगा।”
जिन इमारतों से पत्थर चलें, उन्हें देख सिहरन होती है
चंद्रेश्वर हाते में रहने वाले 40% लोग ई-रिक्शा चालक हैं। इनमें ज्यादातर लोग झुग्गी नुमा पक्के घरों में रहते हैं। हाते में रहने वाले एक ई-रिक्शा चालक ने बताया, “हिंसा के दिन हाता के आस-पास बनी बिल्डिंगों से लोग हमारे घरों पर पत्थर फेंक रहे थे। हंगामे में पत्थर लगने से हमारे साथी मुकेश का सिर फट गया था। आज भी इन बिल्डिंगों को देखते हैं, तो अजीब सा डर लगता है।”
दोनों वर्गों के बीच बढ़ी आपसी हमदर्दी
सद्भावना चौक पर अतुल बंशीलाल की किराने की दुकान है। अतुल कहते हैं, “हिंसा के बाद कुछ उपद्रवियों ने एक समुदाय की दुकानों का नाम लेकर उनके यहां से सामान न लेने के मैसेज फैलाए। इसमें हमारी भी दुकान थी। लेकिन अच्छी बात ये थी कि लोग उनके बहकावे में नहीं आए। इस घटना के बाद लोग ये जान गए हैं कि चाहे कुछ भी हो जाए, हमें किसी के बहकावे में नहीं आना है। अब दोनों वर्गों के बीच आपसी हमदर्दी बढ़ रही है।”
सद्भावना चौक पर 24×7 पुलिस की तैनाती
चंद्रेश्वर हाते के मेन गेट पर युवा नेता अमित बाथम का बोर्ड लगा हुआ है। अमित हाते के निवासी हैं और भारतीय जनता युवा मोर्चा (कानपुर, बुंदेलखंड क्षेत्र) के क्षेत्रीय महामंत्री हैं। अमित कहते हैं, “घटना के बाद अब यहां शांति है। टाइम से दुकानें खुलती हैं, सद्भावना चौकी पर भी दिन-रात पुलिस तैनात रहती है।”
घटना के बारे में अमित आगे कहते हैं, “यहां की ज्यादातर दुकानों में CCTV कैमरा लगा हुआ है। पुलिस ने इसी के क्लिप को देखकर आरोपियों को गिरफ्तार किया। जो कैमरे पर आया उसे जेल में डाला गया। पुलिस ने जो कार्रवाई की मैं उससे पूरी तरह सहमत हूं।”
अब…
यहां तक आपने चंद्रेश्वर हाते में रहने वाले लोगों की बातें सुनी। इसके बाद हम 2 परिवारों से भी मिले, जिन्होंने कहा कि उनके घर के आदमियों को पुलिस ने गलत तरह से गिरफ्तार किया है। जब दंगा हो रहा था, तब वो घरों पर थे…
‘नासिर ने आज तक झगड़ा नहीं किया, पुलिस ने गलत उठा लिया’
कानपुर के बकरमंडी इलाके में रहने वाला मोहम्मद नासिर 7 महीने से जेल में है। हिंसा वाले दिन CCTV पर उसकी फोटो आई। इसके बाद पुलिस उसे घर से उठा ले गई। नासिर की पत्नी सना खातून का कहना है कि उसके पति को बेकसूर होते हुए भी पुलिस ने गिरफ्तार किया।
सना कहती हैं, “नासिर मजदूरी कर के जैसे-तैसे घर चलाते थे। 3 जून को बकरमंडी की ही नूरी मस्जिद में जुमे की नमाज अदा करने के गए थे, जिसके बाद वापस घर लौट आए। रात में पुलिस घर पर आई, उन्हें जीप में बिठाकर ले गई। तब से आज तक वो घर नहीं लौटे।”
हमने सना से पूछा कि नासिर की फोटो CCTV में दिखी थी। उसकी बेगुनाही कैसे प्रूफ करेंगी? सना ने जवाब दिया, “नासिर पर आज तक कोई केस नहीं हुआ। उन्होंने कभी किसी से झगड़ा तक नहीं किया। आप उनका फोन चेक कर लीजिए। 3 जून को वह कहां थे… सब पता चल जाएगा।”
‘घर पर सो रहे आसिफ को पीटते हुए ले गए, अब तक छूटा नहीं’
बकरमंडी के ही आसिफ अली को पुलिस ने 3 जून को गिरफ्तार किया था। वो फ्रेम बनाने का काम करता था। उसकी मां सायरा बानो घर का टूटा हुआ दरवाजा दिखाते हुए कहती हैं, “मेरा बेटा उस दिन बेकनगंज गया ही नहीं था। वो पास के चौराहे पर था, तभी उसकी फोटो खींच ली गई। रात में जब पुलिस उसे पकड़ने आई, तो वह सो रहा था।”
सायरा आगे कहती हैं, “2-3 पुलिस वाले घर आए और दरवाजा तोड़ दिया। मारते हुए उसे ले गए, उसने कहा कपड़ा तो पहन लेने दीजिए। लेकिन पुलिस उसे घसीटते हुए ले गई।”
इतना कहते हुए सायरा बानो, आसिफ की 4 साल की बेटी आइजा और 3 साल के बेटे आतिफ को देखकर रोने लगती हैं। रोते हुए कहती हैं, ‘मेरा बेटा बेकसूर है, उसे छुड़वा दीजिए। नहीं तो ये बच्चे भूखे मर जाएंगे।’
कमिश्नर बोले- जेल में बंद हर आरोपी के सबूत हमारे पास
हमने मोहम्मद नासिर और आसिफ अली की गिरफ्तारी के बारे में कानपुर के पुलिस कमिश्नर बीपी जोगदंड से बात की। उन्होंने बताया, “3 जून को हुई हिंसा में पकड़े गए सभी आरोपियों में जो भी निर्दोष थे,उनमें कई लोगों को रिहा किया जा चुका है। इस मामले में शामिल जो भी आरोपी अब तक जेल में बंद है। उनके खिलाफ हमारे पास ठोस सबूत हैं।”
कानपुर हिंसा मामले में पुलिस ने 62 लोगों को गिरफ्तार किया था। इनमें से 6 आरोपियों के खिलाफ कोई सुबूत न होने के कारण कोर्ट के आदेश पर 4 अगस्त 2022 को रिहा कर दिया गया। 15 दिसंबर कानपुर हिंसा के मुख्य फाइनेंसर मुख्तार अहमद उर्फ मुख्तार बाबा को कानपुर जेल से रिहा कर दिया गया। हाईकोर्ट ने 8 दिसंबर को उसे जमानत दी थी।
आखिर में कानपुर हिंसा की कहानी, इस ग्राफिक्स के जरिए जानते हैं…