बसंत पंचमी नजदीक आते ही सरस्वती पूजन की तैयारी शुरू हो गई है। बसंत पंचमी आगामी 26 जनवरी को, इसको लेकर सबसे पहली प्रक्रिया प्रतिमा बनाने का कार्य तेज हो गया है। इस वर्ष जब कोरोना का कहर समाप्त हो चुका है तो आयोजक ही नहीं, कलाकारों में भी नई आशा का संचार हुआ है।
जिला भर में एक सौ से अधिक जगहों पर मूर्तिकार सपरिवार प्रतिमा बनाने में जुटे हुए हैं। कोई मिट्टी ला रहा है तो कोई उसे गीला कर प्रतिमा को आकार दे रहा है। बेगूसराय जिला मुख्यालय से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक, हर जगह कुंभकार परिवार प्रतिमा बनाने के लिए जुटे हुए हैं और प्रतिमा के लिए आर्डर भी तेजी से आ रहे हैं। मूर्तिकला के लिए कई राज्यों में चर्चित मंसूरचक में बड़ी संख्या में सभी आकार की प्रतिमाओं का निर्माण चल रहा है।
मंसूरचक की बनी प्रतिमा ना केवल बेगूसराय और आसपास के क्षेत्र, बल्कि दूर-दराज तक भी भेजे जाएंगे, इसके लिए आर्डर आ चुका है। यहां के बच्चे, बूढ़े, स्त्री, पुरुष सभी कलाकार हैं तथा इनकी कलात्मकता रंगों की समझ और मिट्टी की परख तथा टेरीकोटा कला का बेजोड़ नमूना मंसूरचकिया शैली को विशिष्ट बना देती है। यहां के कलाकार अपनी कुचियों से निर्जीव सूरत में भी जीवन के रंग भर देते हैं तो लगता है कि मूर्तियां अब बोल उठेगी। जिसके कारण इन्हें बड़ी संख्या में प्रतिमा बनाने के ऑर्डर मिलते हैं।
प्रतिमा निर्माण में जुटे विपिन पंडित एवं सूरज ने बताया कि लगभग हर घर, स्कूल, कार्यालय या संस्थान में बसंत पंचमी के अवसर पर छोटी-बड़ी सरस्वती प्रतिमाओं का पूजन होता है। इस बार भी कमल, शंख, वृक्ष, बतख, नाव आदि पर बैठी सरस्वती की प्रतिमा का निर्माण किया जा रहा है। मंहगाई के बाद भी इस बार कीमत में मामूली बढ़ोत्तरी हुई है। इस वर्ष मध्यम आकार के प्रतिमाओं का अधिक डिमांड आ रहा है लेकिन, बड़ी संख्या में छोटी प्रतिमाओं का भी निर्माण किया जा रहा है।
बेगूसराय में स्थानीय मूर्तिकार के अलावा राजस्थान से आए मूर्तिकार परिवार भी सरस्वती प्रतिमा का निर्माण शुरू कर चुके हैं तथा यह लोग मिट्टी के बदले प्लास्टर ऑफ पेरिस की प्रतिमा बना रहे हैं। एनएच-31 के किनारे आकर डेरा डाले मोहन ने परिवार के साथ मिलकर विभिन्न आकार के 150 प्रतिमा बनाने का लक्ष्य रखा है।