हाईकोर्ट की फटकार के बाद अचानक नींद से जागे उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) ने प्लास्टिक पैकेजिंग से जुड़े छोटे-बड़े 1,724 उद्योगों की एनओसी रद्द कर दी है। इसके चलते अब लाखों कामगारों के सिर पर बेरोजगारी की तलवार लटक गई है। हालांकि इस आदेश के बाद उद्योगों के पास हाईकोर्ट जाने का रास्ता खुला है।
प्रदेश में तीन बड़े जिलों देहरादून, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर में सिंगल यूज प्लास्टिक पैकेजिंग और निर्माण से जुड़े सर्वाधिक छोटे-बड़े उद्योग हैं। इन उद्योगों से लाखों लोगों के घरों का चूल्हा जलता है। यदि ये उद्योग निर्धारित समय में प्लास्टिक पैकेजिंग के लिए ईपीआर प्लान (विस्तारित उत्पादक जवाबदेही) जमा नहीं करते हैं तो इन्हें बंद कर दिया जाएगा, जबकि इस मामले में पीसीबी को 20 दिसंबर तक हाईकोर्ट में जवाब दाखिल करते हुए बताना है कि उसने अब तक क्या कार्रवाई की है। वहीं, पीसीबी की इस कार्रवाई के विरोध में आखिरकार उद्योगों ने भी हाईकोर्ट जाने का फैसला ले लिया है।
ये उद्योग हुए प्रभावित
पीसीबी के उद्योग चलाने की सहमति निरस्त करने के फैसले से प्रदेश में चल रहीं वो सभी औद्योगिक इकाइयां प्रभावित हुई हैं, जो बहुस्तरीय प्लास्टिक शैशे या पाउच या पैकेजिंग प्लास्टिक का इस्तेमाल करते हुए अपने उत्पादों को बाजार में बेचती हैं। इसकी जद में लघु और मध्यम उद्यमियों से अधिक कई बड़े उद्योग प्रभावित हुए हैं जो अपने सामान की पैकेजिंग के लिए प्लास्टिक का इस्तेमाल करते हैं। ये सभी वे उद्योग हैं जिन्होंने ईपीआर एक्शन प्लान नहीं जमा किया है।
पीसीबी ने एपीआर एक्शन प्लान जमा करने वाली पांच कंपनियों को एनओसी रद्द करने के फैसले से बाहर रखा है। इनमें ब्रिटानिया इंडस्ट्री लि., परफेटी वैन मेल्ले लि., हिन्दुस्तान यूनिलीवर लि., पतंजलि आयुर्वेद लि. और रेकिट बेनकीसर लि. शामिल हैं।
उठ रहे सवाल
1724 फैक्टरियों की ओर से अब तक ईपीआर प्लान जमा ही नहीं कराया गया। ऐसे में पीसीबी की भूमिका को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। माना जा रहा है कि हाईकोर्ट को जवाब देने के चक्कर में बोर्ड ने यह कदम आनन-फानन उठाया है।
पीसीबी के अलावा कंपनियों की भी जवाबदेही तय होनी चाहिए। कानून में स्पष्ट है कि प्लास्टिक निस्तारण से जुड़ा ईपीआर प्लान जमा कराना है। कंपनियां जिम्मेदारी से नहीं बच सकती हैं।
– अनूप नौटियाल, अध्यक्ष, एसडीसी फाउंडेशन
पीसीबी ने उद्योगों का पक्ष सुनें बिना ही कार्रवाई की है। वेस्ट मैनेजमेंट एक्ट की नई व्यवस्था को लेकर एमएसएमई के सामने आने वाली व्यावहारिक दिक्कतों को लेकर सरकार को कोर्ट में पैरवी करनी चाहिए।
-पंकज गुप्ता, अध्यक्ष, आईएयू
एमएसएमई उद्योग का पक्ष हाईकोर्ट के सामने रखने के लिए पांच सदस्यीय कोर कमेटी बनाई गई है। जो वरिष्ठ वकीलों से विचार विमर्श कर रही है। वेस्ट मैनेजमेंट एक्ट में जो प्रावधान हैं, वे छोटे उद्योगों के लिए व्यावहारिक नहीं है। एमएसएमई के पास इतने संसाधन नहीं है कि जटिल प्रावधानों का पालन कर सके। इसके लिए कोर्ट से एमएसएमई उद्योगों को छूट देने का आग्रह किया जाएगा।
– अनिल मरवाह, प्रदेश समन्वयक, फूड इंडस्ट्री एसोसिएशन आफ उत्तराखंड