वैवाहिक जीवन की शुरुआत से पहले की महत्वाकांक्षा और शादी के बाद इसी के अनुरूप अपेक्षाओं का दबाव रिश्तों में खटास पैदा कर रहा है। इससे विवाह के चंद दिनों बाद ही रिश्तों की डोर टूटने लगती है और नवयुगल आपसी तालमेल की दहलीज लांघ पारिवारिक न्यायालय, पारिवारिक परामर्श केंद्रों और यहां तक कि मनोवैज्ञानिकों के पास तक पहुंच रहा है। रोजाना ऐसे मामले काउंसलर्स के पास पहुंच रहे हैं। हालांकि, इसमें 60 फीसदी मामलों में लोगों की पहली कोशिश रिश्तों को बचाए रखने की ही होती है।
चलिए, इस बदलाव को कुछ यूं समझते हैं
केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड नई दिल्ली की ओर से विकासनगर में संचालित परिवार परामर्श केंद्र ‘सुरक्षा’ की काउंसलर छवि जैन कहती हैं कि वर्ष 2011-12 में कपूरथला में केंद्र की शुरुआत हुई थी। उस वक्त हमारा पूरा दिन समय काटते निकल जाता था। अब यह स्थिति है कि खाना तो दूर हमें चाय पीने तक की फुरसत नहीं मिलती। पति-पत्नी के बीच विवाद के रोजाना एक-दो नए मामले आते हैं। इसके साथ ही पुराने मामलों की काउंसलिंग चलती रहती है। यह सेंटर तो बानगी है, इसके अलावा महिला थाने में अलग सेल बनी हुई है, साथ ही 181 वन स्टाप सेंटर, सीबीसीआईडी, नारी शिक्षा निकेतन समेत कई अन्य केंद्र घरेलू झगड़ों का निपटारा करते हैं।
जागरूकता से बढ़ी समझौते की कोशिश
काउंसलर स्वर्णिमा सिंह कहती हैं कि विगत छह महीने में हमने ऐसे 56 मामलों का मामलों का निपटारा किया है और 42 परिवारों को टूटने से बचाया है। सेंटर पर ऐसे मामले बढ़ने का कारण ये है कि लोग किसी भी हालत में टूटते रिश्ते को बचाना चाहते हैं। इसीलिए काउंसलर्स की मदद लेते हैं। हालांकि, ये पहल लड़कियों की ओर से ज्यादा होती है।
ये भी एक सच : साल भर में दरक रही रिश्तों की नींव
181 वन स्टाप सेंटर में विगत छह महीने में 16 मामले ऐसे दर्ज हुए जो किसी भी कीमत पर तलाक चाहते हैं। इनमें एक साल के भीतर वाले मामले भी हैं। सेंटर प्रभारी अर्चना सिंह कहती हैं कि अधिकतम 4-5 साल शादी को हुए और विवाद इस कदर बढ़ा कि तलाक की अप्लीकेशन लगा दी। इनमें से 50 फीसदी मामलों में शादियां मैरिज ब्यूरो के जरिये तय हुई थीं।
मध्यम वर्ग तलाक नहीं सेपरेशन चाहता है
संस्थापक सुरक्षा और पारिवारिक परामर्श की विशेषज्ञ शालिनी माथुर कहती हैं कि शादियों के तय होने से लेकर गठबंधन तक में कई बदलाव दिख रहे हैं। तय होते ही रिश्तों में कड़वाहट और फिर तलाक की रफ्तार तेज हुई है। उच्च वर्ग, मध्यम वर्ग और निम्न मध्यम वर्ग में रिश्तों को सुलझाने का आधार अलग है।
– उच्च वर्ग के अभिभावक नहीं चाहते कि बेटी का तलाक हो, ऐसे में यदि तलाक हो जाता है तो बेटी को घर न ले जाकर कई और दूसरा मकान खरीद कर रहने के लिए दे देते हैं।
– मध्यम वर्ग समझौते पर राजी नहीं होता, उसे सेपरेशन चाहिए होता है।
– निम्न मध्यम वर्ग के अभिभावक लड़की को तुरंत ले जाते हैं, क्योंकि ये वो वर्ग होता है जो खुद कमाता-खाता है।
– समझौते से पहले लड़कियां अपनी शर्तें रखती हैं, उसे पूरा करने पर ही मानती हैं।