– तीन लोगों को मिली नई जिंदगी, नौ मिनट में लिवर और तीन मिनट में किडनी पहुंच गई एक से दूसरे अस्पताल
मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर अंगदान के क्षेत्र में नये कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। देश के इस सबसे स्वच्छ शहर ने अंगदान के मामले में एक बार फिर इतिहास रच दिया है। सोमवार सुबह शहर में दो ग्रीन कारिडोर बने। इंदौर में यह 44वां ग्रीन कारिडोर था।
बताया गया है कि खरगोन जिले के ग्राम दसोड़ा निवासी 52 वर्षीय मायाराम बिरला के ब्रेनडेड होने के बाद उनके स्वजन ने सोमवार सुबह उनका लिवर और दोनों किडनियां दूसरे मरीजों में प्रत्यारोपित करने के लिए दान कर दिए। अंगदान की प्रक्रिया पूरी होने के बाद स्वजन शव लेकर रवाना हुए और इधर अंगदान में प्राप्त अंगों को अन्य मरीजों में प्रत्यारोपित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई।
शहर में पहला ग्रीन कारिडोर शैल्बी अस्पताल से चोइथराम अस्पताल के लिए बना। शैल्बी अस्पताल से नौ मिनट में लिवर चोइथराम अस्पताल पहुंचाया गया, जबकि दूसरा ग्रीन कारिडोर शैल्बी अस्पताल से सीएचएल अस्पताल के लिए बना। शेल्बी से तीन मिनट में किडनी सीएचएल अस्पताल पहुंचाई गई। वहीं, एक किडनी शैल्बी अस्पताल में ही भर्ती मरीज को प्रत्यारोपित की गई।
जानकारी के अनुसार, ग्राम दसोड़ा निवासी मायाराम बिरला की तबीयत 30 मई को अचानक बिगड़ गई थी। वे गश खाकर गिर पड़े थे। उनके दिमाग में खून के थक्के जम गए थे। स्वजन उन्हें दसोड़ा से इंदौर लेकर आए और विजयनगर क्षेत्र के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया। बाद में उन्हें शैल्बी अस्पताल शिफ्ट कर दिया गया। रविवार सुबह 9.45 बजे डाक्टरों ने मायाराम को पहली बार और फिर दोपहर 3.47 बजे दूसरी बार ब्रेनडेड घोषित किया। मरीज की ब्रेनडेड के बाद मुस्कान ग्रुप के सेवादारों ने उनके स्वजन से चर्चा कर उन्हें मरीज के अंगदान के लिए प्रेरित किया।
सेवादार जीतू बागानी ने बताया कि बिरला के बड़े बेटे पशु चिकित्सक हैं, जबकि छोटे बेटे इंदौर के ही एक निजी अस्पताल में ओटी टैक्नीशियन हैं। इस वजह से उन्हें अंगदान के लिए तैयार करना बहुत मुश्किल नहीं था। रविवार रात करीब डेढ बजे मरीज को अंगदान के लिए ओटी में ले जाया गया। इसके बाद सोमवार सुबह 6.09 बजे पहला ग्रीन कारिडोर बना और 6.18 मिनट पर लिवर प्रत्यारोपण के लिए पहुंच गया। इसी तरह दूसरा ग्रीन कारिडोर 6.20 पर बना और 6.23 बजे किडनी पहुंचा दी गई। बिरला का दिल पूरी तरह से स्वस्थ्य था, लेकिन उसका दान नहीं हो सका, क्योंकि ऐसा कोई मरीज नहीं मिला, जिसमें दिल प्रत्यारोपित किया जा सके। इस ग्रीन कारिडोर के माध्यम से ब्रेनडेड मरीज के अंगों से तीन लोगों को नई जिंदगी मिली है।