बुंदेलखंड की ‘अयोध्या’ के रूप में विख्यात ओरछा में आज (सोमवार) राजसी ठाठ बाट के साथ शाम छह बजे भगवान राम की बारात निकलेगी। इससे पहले रविवार को श्री राम-जानकी विवाह महोत्सव के दौरान मंदिर के आंगन में हल्दी की रस्म हुई। हजारों श्रद्धालु इसके साक्षी बने।कलेक्टर तरुण भटनागर ने मंडप स्थापना की परंपरा का निर्वहन किया। जिला प्रशासन ने राजा राम की बारात की तैयारियां पूरी कर ली हैं।
जिलाधीश भगटनागर के मुताबिक ओरछा में राम बारात की परंपरा करीब 300 साल पुरानी है। इस बार के आयोजन में पहली बार संगीत के लिए पारंपरिक वाद्य यंत्रों का प्रयोग किया गया है। कुछ दशकों से जारी डीजे को बजाने से पहली बार परहेज किया गया है। उन्होंने बताया कि राम बारात धूमधाम के साथ पूरे शहर में निकलेगी। इसकी सारी तैयारियां हो चुकी हैं।
श्री रामराजा मंदिर धर्मशाला में आयोजित मंडप पंगत में करीब 72 हजार लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया। इस पावन महोत्सव की मंगल बेला पर धार्मिक नगरी ओरछा को दुल्हन की तरह सजाया गया और पूरे नगर में जगह-जगह तोरण द्वार बनाए गए। राजा राम की बारात के मद्देनजर प्रशासन ने भी विशेष इंतजाम किए हैं। यातायात व्यवस्था के लिए श्रीराम विवाह महोत्सव के समय नगर के झांसी बबीना-पृथ्वीपुर मार्ग पर करीब एक किलोमीटर पहले वाहनों के पार्किंग की व्यवस्था की गई है।
मंदिर में रविवार को बुंदेली वैवाहिक गीत और गारी गूंजते रहे। आज बारात के दौरान दूल्हा बने भगवान राम के सिर पर सोने का मुकुट नहीं, बल्कि आम बुंदेली दूल्हों की तरह खजूर की पत्तियों से बना मुकुट पहनाया जाएगा। पालकी के एक ओर छत्र और दूसरी ओर चंवर रहेगा। यह बुंदेली वैभव की याद ताजा कराएगा।
बेतवा नदी के किनारे बसा ओरछा ऐतिहासिक नगर है। इसकी स्थापना महाराज रुद्र प्रताप सिंह बुंदेला ने 1501 के आसपास की थी। यह टीकमगढ़ से 80 किलोमीटर और उत्तर प्रदेश के झांसी से 15 किलोमीटर दूर है। यहां महल में स्थापित राम राजा मंदिर दर्शनीय है। इसी महल के चारों ओर ओरछा बसा हुआ है। भगवान श्रीराम का ओरछा में करीब 400 वर्ष पूर्व राज्याभिषेक हुआ था। तब से आज तक यहां भगवान श्रीराम को राजा के रूप में पूजा जाता है।
यह संयोग है कि जिस संवत 1631 को रामराजा का ओरछा में आगमन हुआ, उसी दिन रामचरित मानस का लेखन भी पूर्ण हुआ। यह विश्व का अकेला मंदिर है जहां राम की पूजा राजा के रूप में होती है और उन्हें सूर्योदय के पूर्व और सूर्यास्त के पश्चात सलामी दी जाती है। यहां राम ओरछाधीश के रूप में मान्य हैं। राम राजा मंदिर के चारों तरफ हनुमान जी के मंदिर हैं। छडदारी हनुमान, बजरिया के हनुमान, लंका हनुमान के मंदिर एक सुरक्षा चक्र के रूप में चारों तरफ हैं।