इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि मेडिकल परीक्षण में अनफिट अभ्यर्थी सिपाही सेवा के लिए अयोग्य है। कोर्ट ने निर्णय में कहा की जब मेडिकल बोर्ड ने अभ्यर्थी को अनफिट करार कर दिया तो हाई कोर्ट बोर्ड के निर्णय पर न्यायिक पुनर्वलोकन नहीं कर सकता।
कोर्ट ने कांस्टेबल भर्ती में मेडिकल बोर्ड द्वारा अनफिट घोषित किए जाने पर हस्तक्षेप से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि जब अभ्यर्थी को एक बार सिपाही सेवा में भर्ती के लिए बनाए गए मेडिकल बोर्ड ने अनफिट (अनुपयुक्त) करार कर दिया और उसके बाद उसकी अपील पर सक्षम प्राधिकारी ने भी बोर्ड के निर्णय को सही मानते हुए याची को अयोग्य घोषित कर दिया तो उस पर कोर्ट द्वारा विचार नहीं किया जा सकता।
यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की खंडपीठ ने याची रविंद्र सिंह की विशेष अपील को खारिज करते हुए दिया है। याची अपीलार्थी ने विशेष अपील दो जजों के समक्ष एकल जज के फैसले के खिलाफ दाखिल की थी। एकल जज ने भी मेडिकल बोर्ड के निर्णय को सही मानते हुए याचिका खारिज कर दी थी।
याची के अधिवक्ता सीमांत सिंह ने तर्क दिया कि चिकित्सा परीक्षण में अनफिट किए जाने के आधार पर सिपाही सेवा में भर्ती से अयोग्य करार नहीं दिया जा सकता है। तर्क दिया गया था कि याची शारीरिक रूप से फिट है। मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर राज्य सरकार की ओर से कोई राय नहीं बनाई गई है।
दूसरी ओर प्रतिवादियों की ओर से अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता ने कहा कि उत्तर प्रदेश पुलिस के नियम 15(जी) के प्रावधानों के तहत कांस्टेबल और हेड कांस्टेबल सेवा नियम, 2015 और परिशिष्ट-3 में याची के मेडिकल परीक्षण से असंतुष्ट होने के बाद परीक्षा में उसे अयोग्य घोषित कर दिया। मामले में उसने एक अपील भी दायर की थी और अपीलीय प्राधिकारी ने भी अपीलकर्ता के मामले पर विचार किया और पाया वह चिकित्सकीय रूप से अनुपयुक्त है। इसलिए इसमें हस्तक्षेप के लिए कोई मामला नहीं बनता है।
कोर्ट ने दोनों पक्षों के वकीलों को सुनने के बाद कहा कि किसी उम्मीदवार की मेडिकल रिपोर्ट के संदर्भ में उसकी फिटनेस का मुद्दा विशेषज्ञों द्वारा उसकी चिकित्सा परीक्षा पर तैयार किया जाता है। इसलिए न्यायालय उस पर विचार नहीं कर सकता।