सत्र न्यायालय ने आदेश में कहा, यह पुस्तक अगले आदेश तक बेच या बांट नहीं सकते। ऑनलाइन बिक्री पर भी अंतरिम रोक लगाई गई है। हालांकि, प्रकाशन, पहले से छप चुकी पुस्तकों को रखने व भंडारण पर रोक नहीं है। यह कन्नड़ पुस्तक लिखने वाले करिअप्पा राज्य के नाट्य संस्थान रंगायना के निदेशक हैं। मुस्लिम समुदाय ने पुस्तक के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किए थे।
यह थीं आपत्तियां
इसके खिलाफ दायर मुकदमे में रफीउल्ला ने कहा था, बिना ऐतिहासिक साक्ष्यों और तर्कसंगत तथ्यों के पुस्तक में झूठी जानकारियां दी गई हैं। इसमें ‘तुरुकारू’ (तुर्की का) शब्द का उपयोग हुआ है, यह मुसलमान समुदाय के लिए अपमानजनक है। इससे समाज में असंतोष फैलने और सामाजिक सौहार्द व शांति व्यवस्था बिगड़ने की आशंका है।
अदालत ने माने वादी के तर्क
वादी के तर्क पर सहमति जताकर अदालत ने कहा, ‘अगर पुस्तक में दी गई जानकारियां गलत हैं, तो इसके वितरण से अपूरणीय नुकसान होगा। सांप्रदायिक सौहार्द व शांति व्यवस्था बिगड़ने की भी आशंका है।