अपने इकलौते व अविवाहित बेटे की कैंसर से मौत के बाद एक दंपत्ति ने अस्पताल में सुरक्षित रखे उसके शुक्राणु दिलाने की गुहार दिल्ली हाईकोर्ट में लगाई है। हाईकोर्ट ने याचिका पर सुनवाई के बाद केंद्र सरकार को भी पक्षकार बनाते हुए उसकी राय पूछी है। दरअसल, किसी दिवंगत व्यक्ति के अस्पताल में सुरक्षित शुक्राणु उसके वारिस को देने का भारत में कोई कानून नहीं है।
इस मामले में साल 2020 में 30 साल के एक युवक ने कैंसर होने पर अपने शुक्राणु गंगाराम अस्पताल की आईवीएफ प्रयोगशाला में सुरक्षित रखवा दिए थे। उसकी कीमोथेरेपी हुई, लेकिन सितंबर 2020 में उसकी मौत हो गई। जस्टिस यशवंत वर्मा ने याचिका को सुनने के बाद केंद्र सरकार को पक्षकार बनाकर नोटिस जारी किया। अगली सुनवाई 19 जनवरी को होगी।
माता-पिता ने बताया कि शुक्राणु मिलने पर वे सरोगेसी कानून का पूरा पालन करते हुए आगे कदम उठाएंगे। चूंकि उनका बेटा इकलौता वारिस था, इसलिए उसके शुक्राणुओं के जरिए वे अपने वंश को आगे जारी रखना चाहते हैं।
अस्पताल का रुख : साल के शुरू में अस्पताल ने हाईकोर्ट में कहा था कि दिवंगत अविवाहित व्यक्ति के शुक्राणु उसके माता-पिता या किसी अन्य कानूनी हकदार को सौंपने का देश में कोई कानून नहीं है। ऐसे शुक्राणुओं का क्या किया जाए? क्या उन्हें नष्ट कर दें? या फिर उपयोग होने दें? इन सभी प्रश्नों पर केंद्र के बनाए कानून कुछ नहीं कहते।