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गढ़ हारे, अब ‘घर’ बचाने के लिए उपचुनाव में एकजुट हुआ सबसे बड़ा सियासी कुनबा

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सियासत का सबसे बड़ा कुनबा इस बार गढ़ नहीं अपना घर बचने के लिए लड़ रहा है। ये कुनबा और कोई नहीं सैफई परिवार है, वहीं घर सियासत के धुरंधर खिलाड़ी रहे मुलायम सिंह यादव की कर्मभूमि मैनपुरी है। सैफई परिवार का हर सदस्य अब इस घर को बचाने के लिए पहली बार एक साथ मैदान में है।

वर्ष 1992 में समाजवादी पार्टी के गठन के बाद मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी को अपनी कर्मभूमि बनाया। लेकिन उन्होंने कन्नौज, बदायूं, फिरोजाबाद, रामपुर और आजमगढ़ पर भी अपना भरपूर प्यार लुटाया। 1996 के लोकसभा में पहली बार सपा का झंडा लेकर संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने सियासी अखाड़े में ताल ठोंकी थी। खुद के लिए उन्होंने मैनपुरी को चुनाव तो वहीं पार्टी के अन्य नेताओं को कन्नौज, बदायूं, फिरोजाबाद, रामपुर और आजमगढ़ से भी लड़ाया। मैनपुरी से चुनाव जीतकर नेताजी केंद्र सरकार में रक्षा मंत्री बने तो वहीं कन्नौज, बदायूं और आजमगढ़ ने सपा प्रत्याशियों को ही जीत का ताज पहनाया। इसके बाद से मैनपुरी सीट आज तक सपा का अजेय दुर्ग रही। वहीं बदायूं और कन्नौज में सपाई दीवार से टकराकर 2019 तक हर सुनामी वापस लौटती रही।

फिरोजाबाद और रामपुर में 1996 के लोकसभा चुनाव में सपा को हार से ही संतोष करना पड़ा। लेकिन 1999 के लोकसभा चुनाव में मुलायम का चरखा दांव काम आया और सपा ने फिरोजाबाद से भी जीत का परचम लहरा दिया। इसके बाद 2009 के उपचुनाव में यहां से कांग्रेस से  मैदान में उतरे अभिनेता राजबब्बर ने मुलायम की पुत्रवधू डिंपल यादव को हराकर सपा से फिरोजाबाद सीट छीन ली।
में 2014 में यहां से मुलायम के भतीजे अक्षय यादव जीते तो वहीं 2019 की मोदी सुनामी में ये सीट भाजपा के खाते में चली गई। इसके साथ ही बदायूं, कन्नौज जहां 2019 के चुनाव में सपा से छिन गईं तो वहीं आजमगढ़ और रामपुर सीटें 2022 के उप चुनाव में भाजपा के खाते में चली गई। एक-एक कर ये सभी अभेद्य किले ध्वस्त होते गए। अब केवल नेताजी की कर्मभूमि मैनपुरी के पास बची है। ऐसे में नेताजी के निधन के बाद हो रहे उपचुनाव में सैफई परिवार गढ़ नहीं बल्कि अपना घर बचाने उतरा है।
सपा अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, उनकी पत्नी और उप चुनाव में प्रत्याशी डिंपल यादव, पूर्व मंत्री शिवपाल सिंह यादव, प्रो. रामगोपाल यादव, पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव, पूर्व सांसद तेजप्रताप यादव समेत सैफई परिवार के अन्य सदस्य इस सीट के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं। वे घर-घर जाकर और सभाएं कर सीट को जिताने के लिए समर्थन जुटा रहे हैं। अगर ये सीट चली जाती है तो सपा इस बार गढ़ों के साथ ही अपना घर भी हार जाएगी।
रामपुर में जहां 1996 के लोकबडभा चुनाव में सपा को हर मिली थी तो वहीं 2004 और 2009 में सपा यहां से जीतकर आई। 2014 में यहां से भाजपा जीत तो 2019 में सपा से आजम खां सांसद चुने गए। लेकिन आजम खां के सीट छोड़ने के बाद 2022 के उप चुनाव में भाजपा ने रामपुर सीट जीत ली।

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