सपाई दुर्ग को ध्वस्त कर भगवा लहराने के लिए भाजपा ने क्या कुछ नहीं किया। हर बार चुनाव में नया पैंतरा अजमाया पर कोई भी काम न आया। इन्हीं पैतरों में से एक पैंतरा भाजपा इस बार के लोकसभा उप चुनाव में भी आजमा रही है। यै पैंतरा और कुछ नहीं बल्कि सपा के बागियों पर दांव लगाने का है। जब-जब भाजपा ने मैनपुरी में कमल खिलाने के लिए जोर आजमाइश की तो प्रत्याशी सपा के बागी नेता ही रहे। इस बार भी सपा के बागी रघुराज सिंह पर भाजपा ने दांव खेला है।
चार अक्तूबर 1992 को मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी की स्थापना की थी। इसके बाद उन्होंने मैनपुरी को अपनी कर्मभूमि बनाया। इसके बाद 1996 में पहली बार लोकसभा चुनाव में सपा मैदान में उतरी। खुद मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी सीट से चुनाव लड़ा। उन्हें हराने के लिए भाजपा ने सपा के ही बागी नेता उपदेश सिंह चौहान को मैदान में उतारा, लेकिन मुलायम सिंह के वर्चस्व के आगे वे कोई कारनामा नहीं कर पाए। दरअसल उपदेश सिंह चौहान 1993 में सपा के टिकट पर भोगांव से विधायक चुने गए थे। बाद में टिकट कटने पर वे बागी हो गए थे
इसके बाद 1998 में हुए लोकसभा चुनाव में भी भाजपा ने फिर यही दांव चला। मुलायम द्वारा खड़े किए गए प्रत्याशी बलराम सिंह यादव के सामने भाजपा ने सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल रहे अशोक यादव को प्रत्याशी बनाया। अशोक यादव भी निजी कारणों से सपा से बाकी हो गए थे। जीत का सेहरा इस बार भी सपा प्रत्याशी के सिर पर ही बंधा।
इसके बाद भाजपा ने फिर ये पैंतरा 2004 के लोकसभा चुनाव में आजमाया। 2004 में मुलायम सिंह यादव के सामने सपा के बागी पूर्व सांसद रहे बलराम सिंह यादव को भाजपा ने चुनाव लड़ाया। लेकिन वही बलराम सिंह यादव जो सपा के टिकट पर मैनपुरी से सांसद चुने जाते रहे थे, उन्हें जनता ने नकार दिया और मुलायम सिंह की जीत हुई।
मुलायम सिंह के निधन के बाद हो रहे उप चुनाव में भी भाजपा ने इसी पुराने पैंतरे को आजमाने का निर्णय लिया है। इस बार मुलायम की पुत्रवधू डिंपल यादव के आगे सपा के बागी राघुराज सिंह शाक्य को उतारा है। रघुराज दो बार सपा के टिकट पर सांसद और एक बार विधायक भी रह चुके हैं। भाजपा के जिला संगठन से लेकर राष्ट्रीय संगठन में शामिल नेताओं का दावा है कि इस बार मैनपुरी में कमल खिलेगा। अब देखना ये है कि भाजपा का जो पैंतरा हर बार फेल साबित हुआ, इस बार कितना काम आता है।
मैनपुरी लोकसभा सीट हमेशा से ही यादव बहुल रही है। इसी के चलते समाजवादी पार्टी और मुलायम सिंह यादवों के नेता के रूप में उभरे तो ये वोट उनके साथ जुड़ गया। ऐसे में भाजपा का मानना था कि अगर सपा से बागी होने के बाद भाजपा में आया नेता सपा के वोट बैंक में दस प्रतिशत की भी सेंधमारी कर पाया तो जीत उनकी होगी। हालांकि ये गणित कभी जनता ने नहीं स्वीकार किया।