दो दशक पहले तक डायबिटीज को बढ़ती उम्र के साथ होने वाली स्वास्थ्य समस्या के तौर पर जाना जाता था, हालांकि मौजूदा समय में इसका खतरा कम उम्र के लोगों में भी काफी तेजी से बढ़ता हुआ देखा जा रहा है। एक आंकड़े के मुताबिक यूके में 40 से कम उम्र के डायबिटीज रोगियों की संख्या 2016-17 में 1.20 लाख के करीब थी, जोकि 2020-21 में 23 फीसदी बढ़कर 1.48 से अधिक हो गई है। इसी तरह के आंकड़े भारत में भी देखे जा रहे हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं, मौजूदा समय में डायबिटीज के हर चार नए रोगियों में एक की आयु 40 साल से कम की है। कई प्रकार के जोखिम कारक युवाओं को इस गंभीर बीमारी का शिकार बनाते जा रहे हैं।
वैश्विक स्तर पर बढ़ते डायबिटीज के खतरे को लेकर लोगों को अलर्ट करने और इससे बचाव को लेकर आवश्यक सावधानियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से हर साल 14 नवंबर को वर्ल्ड डायबिटीज डे मनाया जाता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, अस्वास्थ्यकर खाने-पीने की आदतों, मोटापा और गतिहीन जीवनशैली आदि के कारण युवाओं में यह खतरा बढ़ता जा रहा है। डायबिटीज कई प्रकार की जटिलताओं का कारण भी बन सकती है, ऐसे में इससे बचाव के उपाय करते रहना सभी के लिए आवश्यक है।
कम उम्र में ही डायबिटीज की स्थिति, जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है, ऐसे में इसके जोखिम कारकों को लेकर अलर्ट रहना जरूरी है।
युवावस्था और डायबिटीज का खतरा
मधुमेह रोग विशेषज्ञ बताते हैं, पिछले कुछ वर्षों में देखा गया है कि बच्चे, किशोर और 30 की उम्र के लोग तेजी से मधुमेह के शिकार हो रहे हैं, जबकि कुछ दशकों पहले तक इस आयुवर्ग के लोगों को सुरक्षित माना जा रहा था। सेंडेंटरी लाइफस्टाइल इसका एक प्रमुख कारण हो सकती है। कई बच्चों में भी यह समस्या देखी गई है। यहां गंभीर बात यह है कि आप जितनी कम उम्र में इस समस्या के शिकार होते हैं, समय के साथ आपमें गंभीर जटिलताओं के बढ़ने का खतरा उतना ही अधिक हो सकता है। इसी लिए आवश्यक हो गया है कि सभी लोग डायबिटीज से बचाव के उपाय करते रहें।
आइए जानते हैं कि युवाओं को इस गंभीर रोग से सुरक्षित रहने के लिए किन बातों का ध्यान रखना सबसे आवश्यक है?
डॉक्टर्स कहते हैं, कम उम्र में डायबिटीज होने का मुख्य कारण मोटापा भी माना जा सकता है। अस्वास्थ्यकर खाने की आदतों, विशेषरूप से जंक फूड, अधिक कैलोरी, चीनी और फैट वाली चीजों का अधिक सेवन मोटापा और डायबिटीज दोनों के जोखिम को बढ़ा देता है। अधिक वजन वाले लोगों में मेटाबॉलिज्म की समस्याओं का खतरा भी अधिक देखा गया है, जिससे इंसुलिन का उत्पादन और इसकी कार्यक्षमता प्रभावित हो सकती है। डायबिटीज से बचाव के लिए वजन को नियंत्रित रखना सबसे आवश्यक माना जाता है।
तनावपूर्ण स्थिति है नुकसानदायक
युवाओं में तनाव की समस्या काफी तेजी से बढ़ती हुई देखी गई है, विशेषकर महामारी के बाद इसके मामलों में भारी उछाल आया है। अध्ययनों में पाया गया है कि अधिक तनाव लेने वाले लोगों में समय के साथ डायबिटीज की समस्या होने का खतरा अधिक हो सकता है। तनाव सीधे तौर पर मधुमेह का कारण नहीं बनती है, लेकिन कुछ प्रमाण हैं कि तनाव और टाइप-2 डायबिटीज के जोखिमों के बीच संबंध हो सकता है।
शोधकर्ता बताते हैं कि उच्च स्तर के तनाव की स्थिति में कई ऐसे हार्मोन्स का स्राव होता है जो अग्न्याशय में इंसुलिन-उत्पादक कोशिकाओं के कामकाज को प्रभावित कर देती हैं।
एक ही जगह पर बैठे रहने की आदत
डॉक्टर बताते हैं जो लोग लंबे समय तक एक ही जगह पर बैठे रहते हैं, उनमें शारीरिक निष्क्रियता का जोखिम अधिक हो सकता है, यह स्थिति डायबिटीज का कारण बन सकती है। शरीर को सक्रिय रखकर इस खतरे को कम किया जा सकता है। दिनचर्या में योग-व्यायाम, रनिंग-वॉकिंग जैसी आदतों को शामिल करके शरीर को सक्रिय रखा जा सकता है जिससे डायबिटीज का जोखिम कम होता है।
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नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्ट्स और स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सुझाव के आधार पर तैयार किया गया है।
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