MBA vs PGDM : बिजनेस और मैनेजमेंट के क्षेत्र में पोस्ट ग्रेजुएशन करना चाह रहे स्टूडेंट्स को अकसर एक सवाल परेशान करता है- एमबीए करें या फिर पीजीडीएम। एक जैसे कोर्स होने के चलते स्टूडेंट्स अकसर इन दोनों कोर्सेज के चयन को लेकर कंफ्यूज लगते हैं। असल में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन मैनेजमेंट (पीजीडीएम) और मास्टर इन बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन (एमबीए ) दोनों ही मास्टर लेवल के मैनेजमेंट कोर्स हैं। दोनों में काफी समानताएं हैं। MBA और PGDM दोनों ही बिजनेस ओरिएंटेड कोर्स है। दोनों ही कोर्स करने के बाद पीएचडी की ओर कदम बढ़ाया जा सकता है। रोजगार की संभावनाओं के नजरिए से इन दोनों कोर्सेज एकसमान वेल्यू है। पीजीडीएम में एडमिशन कैट, मैट, जैट, एटमा ( CAT/ MAT/XAT/ATMA ) और टीएसआईसीईटी, एमएएच- सीईटी जैसे राज्य स्तरीय एंट्रेंस एग्जाम से होता है, वहीं एमबीए में एडमिशन भी कैट, मैट, सीमैट, टीएसआईसीईटी, एमएएच- सीईटी आदि से होता है। लेकिन फिर भी अगर बारीकी से देखें, तो दोनों में कुछ अंतर देखे जा सकते हैं-
एमबीए डिग्री है जबकि पीजीडीएम डिप्लोमा कोर्स
रोजगार की दुनिया में एक समान महत्व होने के बावजूद एमबीए की डिमांड ज्यादा रहती है क्योंकि एमबीए एक डिग्री कोर्स है जबकि पीजीडीएम डिप्लोमा कोर्स। बहुत सारे स्टूडेंट्स को लगता है कि डिप्लोमा कोर्स की वेल्यू डिग्री कोर्स जितनी नहीं है। लेकिन यह सच नहीं है। देश के बहुत सारे आईआईएम संस्थान और अन्य XLRI जमशेदपुर व एसपी जैन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड रिसर्च मुंबई जैसे टॉप बी-स्कूल्स पीजीडीएम और पीजीपी ( पोस्ट ग्रेजुएट प्रोग्राम इन मैनेजमेंट) करवाते हैं। इनमें से अधिकांश इंस्टीट्यूट ऑटोनोमस बॉडी हैं। ये किसी यूनिवर्सिटी से एफिलिएटेड नहीं हैं। एमबीए व पीजीडीएम में सिर्फ नाम में अंतर है न कि प्रोफेश्नल वेल्यू में। दोनों कोर्स की जॉब मार्केट में बराबर वेल्यू है।
फोकस में अंतर
एक एक्सपर्ट्स का कहना है कि एमबीए में पीजीडीएम की तुलना में ज्यादा बुकिश नॉलेज रहती है। एमबीए में पैक्टिकल एपरोच की बजाय मैनेजमेंट के थ्योरिटिकल कॉन्सेप्ट व टेक्निकल पहुलओं पर ज्यादा फोकस रहता है। जबकि पीजीडीएम में मैनजमेंट की स्किल्स का विकास करने व पैक्टिकल एपरोच पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। पीजीडीएम मार्केट व इंडस्ट्री की जरूरतों को मुताबिक तैयार किया गया कोर्स है।
एमबीए बनाम पीजीडीएम -सिलेबस में अंतर
ज्यादातर मामलों में एमबीए कोर्स का सिलेबस विश्वविद्यालय द्वारा डिजाइन किया गया है। एक ही विश्वविद्यालय के तहत दो एमबीए कॉलेजों में सिलेबस काफी समान होंगे। हालांकि, पीजीपीएम या पीजीडीएम कोर्स उसी इंस्टीट्यूट द्वारा निर्धारित किए जाते हैं। इंस्टीट्यूट द्वारा अपने कोर्स का सिलेबस तय किए जाने से इसमें बदलाव आसानी से किया जा सकता है। यानी इसमें लचीलापन होता है। हर साल औद्योगिक आवश्यकताओं के अनुसार सिलेबस में बदलाव होता है। विश्वविद्यालय बदलाव की इस रेस में पिछड़ जाते हैं और कुछ वर्षों के बाद अपना सिलेबस बदलते हैं। एक्सपर्ट्स का मानना है कि जो लोग कॉरपोरेट जगत में रुचि रखते हैं या उद्यमी बनना चाहते हैं, उनके लिए पीजीडीएम अधिक उपयुक्त विकल्प हो सकता है। AICTE की ओर से इसका सिलेबस अप्रूव किया जाता है।
एमबीए बनाम पीजीडीएम: फीस का मामला
यह देखा गया है कि अधिकांश एमबीए कोर्सेज में पीजीपी या पीजीडीएम कोर्सेज की तुलना में ट्यूशन फीस कम होती है। ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि ज्यादातर सरकारी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय एमबीए की डिग्री प्रदान करते हैं। इन विश्वविद्यालयों को सरकार से वित्तीय सहायता और अनुदान मिलता है, जिससे छात्र के लिए डिग्री सस्ती हो जाती है। पीजीपी या पीजीडीएम डिग्री के मामले में छात्रों को पूरे कोर्स का खर्च खुद वहन करना पड़ता है। हालांकि, यह एक कोई पक्का नियम नहीं है। बहुत से संस्थानों की एमबीए की फीस पीजीडीएम से ज्यादा है।
कौन सा कोर्स है बेहतर – पीजीडीएम या एमबीए
इस प्रश्न का उत्तर रुचि और करियर गोल्स पर निर्भर करता है। यहां पर आपके इंस्टीट्यूट का नाम काफी मायने रखता है। एमबीए और पीजीडीएम में किस कोर्स की ज्यादा वेल्यू है? इसका पता कोर्स के नाम से नहीं, बल्कि कोर्स करिकुलम की क्वालिटी, शिक्षाशास्त्र और संस्थान की रैंकिंग और प्रतिष्ठा जैसे कुछ कारकों से लगाया जा सकता है।
वर्ष 2017 तक सारे आईआईएम संस्थान एमबीए की डिग्री नहीं देते थे। कुछ पीजीडीएम व पीजीपी की भी देते थे। 2017 में संसद में आईआईएम बिल पास होने के बाद आईआईएम संस्थानों को एमबीए डिग्री देने की अनुमति मिली।