उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में रविवार सुबह भूकंप का तेज झटका लगा। इससे लोग घरों से बाहर निकलकर दौड़ पड़े। हालांकि कहीं से भी किसी तरह के नुकसान की कोई सूचना नहीं आई है। जिलाधिकारी ने इसकी पुष्टि की है।
भूकंप के यह झटके उत्तराखंड की राजधानी देहरादून, मसूरी से लेकर उत्तरकाशी, टिहरी, चमोली, रुद्र प्रयाग, पौड़ी गढ़वाल तक महसूस किए गए। जिला मुख्यालय उत्तरकाशी सहित डुंडा भटवाड़ी बड़कोट नौगांव क्षेत्र में भूकंप के झटके लगे।
रविवार की सुबह करीब आठ बजकर 33 मिनट तीन सेकेंड पर भूकंप का झटका महसूस किया गया। रिक्टर स्केल में इसकी तीव्रता 4.5 थी। नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी के मुताबिक, भूकंप का अक्षांश 30.67 और देशांतर 78.60 था। साथ ही इसका केंद्र जमीन के भीतर करीब पांच किलोमीटर था जो उत्तरकाशी के चिन्यालीसौंड से करीब 35 किमी दूर टिहरी जिले बताया जा रहा है।
जिलाधिकारी अभिषेक रुहेला ने आपदा प्रबंधन एवं जिले सभी तहसीलों से सूचना मांगी थी, जिसमें पूरे जिले में किसी नुक़सान की खबर नही है। इधर जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी देवेंद्र पटवाल ने भी बताया कि जिले में भूकंप से किसी तरह के जानमाल के नुक़सान की खबर नहीं है।
भूकंप के लिहाज से संवेदनशील उत्तराखंड-
भूकंप की दृष्टि से उत्तराखंड बेहद संवेदनशील है। राज्य के अति संवेदनशील है यहां जोन, चार- पांच में रुद्रप्रयाग (अधिकांश भाग), बागेश्वर, पिथौरागढ़, चमोली, उत्तरकाशी जिले आते हैं। ऊधमसिंहनगर, नैनीताल, चंपावत, हरिद्वार, पौड़ी व अल्मोड़ा जोन चार में हैं और देहरादून व टिहरी दोनों जोन में आते हैं।
उत्तराखंड में आ चुके हैं दो बड़े भूकंप-
उत्तराखंड के उत्तरकाशी और चमोली जिले में दो बड़े भूकंप आ चुके हैं। इससे भूकंप के हलके झटके से ही लोग दहशत में आ जाते हैं। उत्तरकाशी में 20 अक्टूबर 1991 को 6.6 तीव्रता का भूकंप आया था। उस समय हजारों लोग मारे गए थे। साथ ही संपत्ति को भी अत्यधिक क्षति हुई थी। इसके बाद 29 मार्च 1999 में चमोली जिले में उत्तराखंड का दूसरा बड़ा भूकंप आया था। भारत के उत्तर प्रदेश (अब उत्तराखंड) राज्य में आया यह भूकंप हिमालय की तलहटियों में 90 वर्षों का सबसे शक्तिशाली भूकंप था। इस भूकंप में 103 लोग मारे गए थे।
ये हैं भूकंप के कारण-
भू-वैज्ञानिकों के मुताबिक पिछले चार सालों में मेन सेंट्रल थ्रस्ट पर 71 से ज्यादा बार भूकंप के झटके आ चुके हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह क्षेत्र कितना सक्रिय है। उनका कहना है कि छोटे-छोटे भूकंप के बड़े झटकों की संभावनाओं को रोक देते हैं। मेन सेंट्रल थ्रस्ट के रूप में जाने जानी वाली दरार 2500 किमी लंबी और कई भागों विभाजित है। इंडियन और एशियन प्लेट के बीच दबाव टकराने और घर्षण से भूकंप की घटना होती है।