समाजवादी पार्टी में जिलाध्यक्षों के नाम पर मंथन शुरू हो गया है। पार्टी की कोशिश है कि 15 नवंबर तक जिलाध्यक्षों और महानगर अध्यक्षों की ताजपोशी कर दी जाए। इस दौरान पार्टी ऐसे चेहरों पर भी दांव लगाएगी, जो नगर निकाय चुनाव के लिहाज से फायदेमंद होंगे। कुछ नए चेहरों को मौका मिलेगा तो कुछ को समायोजित किया जाएगा।
सपा में राष्ट्रीय अध्यक्ष व प्रदेश अध्यक्ष चुनाव के बाद संगठनात्मक ढांचा दुरुस्त करने की कवायद शुरू हो गई है। राष्ट्रीय व प्रदेश कमेटी के साथ जिलाध्यक्षों पर विशेष फोकस किया जा रहा है। इसके लिए संभावित नामों का सूची बनाकर रैंकिंग की जा रही है। पार्टी ऐसे व्यक्ति को जिम्मेदारी देगी, जो जातीय समीकरण में फिट बैठने के साथ ही निर्विवाद हो और सभी को साथ लेकर चलने की कूबत रखता हो।
इससे निकाय चुनाव में भी उसके नाम और काम का फायदा मिलेगा। मुस्लिम-यादव (एमवाई) फैक्टर के साथ अति पिछड़ों को जोड़ा जा रहा है। जिन जिलों में ज्यादातर विधायक यादव हैं, वहां अति पिछड़ी जाति का जिलाध्यक्ष बनाया जा सकता है। इसी तरह अल्पसंख्यक विधायक वाले जिलों में नगरीय आबादी के हिसाब से जिलाध्यक्ष व महानगर अध्यक्ष अलग-अलग जाति के बनाए जा सकते हैं।
प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल का कहना है कि निकाय चुनाव में पार्टी को बहुमत मिलना तय है। जल्द ही जिला और महानगर अध्यक्ष घोषित किए जाएंगे। पार्टी को जनमत दिलाने वालों की अनदेखी नहीं होगी।
संघर्षशील नेताओं को मिलेगी तवज्जो
सूत्रों का कहना है कि पार्टी के लिए कई साल से संघर्ष करने वाले नेताओं को विशेष रूप से तवज्जो मिलेगी। विधानसभा चुनाव में टिकट न मिलने के बाद भी जिन नेताओं ने संघर्ष किया है, उनके नाम पर विचार किया जा रहा है। बिना चुनाव लड़े कार्यकर्ताओं और जनता की समस्याओं को लेकर संघर्ष करने वालों को जोड़कर पार्टी नजीर पेश करना चाहती है। कुछ जिलों में पूर्ववर्ती जिलाध्यक्षों को मौका मिल सकता है।
चार जुलाई से भंग हैं सभी कमेटियां
सपा ने विधानसभा चुनाव के बाद चार जुलाई को राष्ट्रीय एवं प्रदेश अध्यक्ष पद को छोड़कर अन्य इकाइयां भंग कर दी थीं। सदस्यता अभियान के लिए कमेटी बनाई गई। इसी तरह नगर निकाय चुनाव के मद्देनजर पार्टी ने विधायकों व अन्य वरिष्ठ नेताओं को नगर निकायवार पर्यवेक्षक नियुक्त किया है। विधायकों को उनके जिले के बजाय दूसरे जिलों की जिम्मेदारी दी गई।