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काशी के गंगा घाटों पर दिखा परंपराओं का संगम, उगते सूर्य को अर्घ्य, 36 घंटे का निराजल व्रत पूर्ण

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वाराणसी के अस्सी घाट पर श्रद्धालुओं की भीड़

36 से 40 घंटे का निर्जला व्रत भी श्रद्धा को डिगा नहीं सका। ‘उगा हो सूरज देव भइल अरघा की वेर’ गाती हुईं महिलाएं गुजरीं तो पूरा माहौल भक्तिमय हो  गया। उमंग, उत्साह, उल्लास ऐसा जैसे 40 नहीं चार घंटे की पूजा हो। वाराणसी में ठीक वैसा ही नजारा सोमवार भोर में चार बजे दिखा जैसा रविवार शाम को घाटों पर देखा गया था।

मान, मनुहार और गुहार के साथ ही लंबे इंतजार के बाद कार्तिक सप्तमी के सूर्य भगवान ने दर्शन दिए तो श्रद्धालु कृत्य-कृत्य हो उठे। घाट से कुंडों तक भोर से ही उगा हो सुरुज देव…की गुहार लगनी शुरू हो गई। सोमवार को लोक आराधना के चार दिवसीय महापर्व डाला छठ के अंतिम दिन व्रती महिलाओं ने उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत को पूर्ण किया।

 

आस्था, परंपरा और उत्सव की अद्भुत पंरपरा साकार

इस दौरान गंगा, गोमती और वरूणा के किनारे आस्था, परंपरा और उत्सव की अद्भुत परंपरा भी साकार हुई। आस्था के महापर्व छठ पर काशी के सात किलोमीटर लंबे घाटों की श्रृंखला पर सोमवार सुबह विहंगम नजारा नजर आया। ढोल-नगाड़ों की थाप, आतिशबाजी और जगह-जगह मंगलगान हुआ। वेदियों पर सर्व मंगल की कामना से जले अखंड दीपों की लौ ने जन-जन के तन-मन को प्रकाशमान किया।

वाराणसी के अस्सी घाट पर श्रद्धालुओं की भीड़
घाटों के आसपास मेले जैसा दृश्य नजर आया। आस्था के इस विहंगम नजारे को लोग कैमरे में कैद करते रहे। काशी में गंगा तट पर राजघाट से विश्वसुंदरी पुल तक व्रतियों की अटूट कतार ऐसे ही भक्तिभावों में रमी रही। गंगा-वरुणा तटों से कुंडों-सरोवरों तक ब्रह्म मुहूर्त में बाजे-गाजे के बीच लोकोत्सव की अनूठी छटा निखरी।

सूर्य देव के प्रति ऐसा समर्पण शायद ही किसी व्रत, त्योहार में देखा जाता हो। काशी के गंगा घाटों पर संस्कृति, समर्पण और श्रद्धा का संगम विहंगम नजारा बन गया। दीप, धूप, फल-फूल से लदे सूप को लेकर पूरब की ओर मुंह करके सूर्यदेव का इंतजार होता रहा। उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ चार दिन की पूजा का पारण हुआ।

महापर्व छठ पर वाराणसी के गंगा घाटों का नजारा
लगातार 36 घंटे तक निर्जला व्रत रख साफ-सुथरे सूप व डलिया में सेब, संतरा, केला, शरीफा, कंदा, मूली, गन्ना, नारियल के साथ ही माला-फूल, धूपबत्ती व दीपक सजाकर पूजन के लिए तैयार महिलाओं के चेहरे पर थकावट का भाव नजर नहीं आया। छठ मइया और भगवान भास्कर के प्रति उनका विश्वास और आस्था देख साथ आई महिलाएं भी श्रद्धाभाव से भर उठीं।

भगवान सूर्य से उदय होने के लिए मनुहार

महापर्व छठ पर वाराणसी के वरुणा किनारे घाटों का नजारा
व्रती महिलाएं छठ माई के पारम्परिक गीत गाकर भगवान सूर्य से उदय होने के लिए मनुहार करती रहीं। जैसे ही पूरब दिशा से भगवान सूर्य ऊषा की लालिमा के साथ नजर आए तो जन-जन के अंतर्मन में सूर्य का तेज भर गया। बच्चे जमकर आतिशबाजी कर रहे थे। वहीं, व्रती महिलाओं के साथ उनके परिजनों और रिश्तेदारों ने भगवान भाष्कर को अर्घ्य दिया।

महापर्व छठ
महापर्व छठ – फोटो : अमर उजाला
गंगा तट के अलावा शहर और ग्रामीण अंचल के अन्य सरोवरों, तालाबों, कुंडों , जलाशयों पर व्रती महिलाओं ने विधि विधान से छठी मईया के पूजन अर्चन के बाद सूर्य देव को अर्घ्य  दिया। व्रती महिलाओं ने अर्घ्य देने के दौरान भगवान भाष्कर और छठी मइया से वंश वृद्धि और परिवार के मंगल की कामना की। अर्घ्य देने के साथ ही लोगों में प्रसाद लेने की होड़ मच गई।

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