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काशी के लक्खा मेले में शुमार तुलसीघाट की नाग नथैया लीला कल, तैयारियां अंतिम दौर में

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फाइल फोटो

काशी के लक्खा मेले में शुमार तुलसीघाट की नाग नथैया लीला कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्थी शनिवार 29 अक्टूबर को है। श्री संकट मोचन मंदिर के महंत और तुलसीघाट की श्रीकृष्ण लीला के संयोजक प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र की देखरेख में तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। लीला में सिर्फ 24 घंटे शेष देख सुरक्षा व्यवस्था को लेकर पुलिस अफसर भी सजग है।

पुलिस कमिश्नर ए सतीश गणेश ने लीला स्थल और आसपास के इलाके का निरीक्षण कर सुरक्षा व्यवस्था का खाका खींच दिया है। लीला सकुशल सम्पन्न कराना इस बार प्रशासन और लीला के संयोजकों के लिए भी बड़ी चुनौती है। वजह गंगा में बाढ़ का पानी होना है। जिस स्थान से भगवान कृष्ण के पात्र गंगा प्रतीक रूप से यमुना में कूदते हैं वह स्थान गंगा की गोद में समाया हुआ है। जहां बैठ कर लोग लीला देखते है वहां भी पानी और कीचड़ जमा है। तुलसीघाट और जानकी घाट की ऊपरी सीढ़िया ही श्रद्धालुओं के बैठने के लिए सही स्थान है। लेकिन मेले में लाखों की भीड़ जुटती है। ऐसे में वहां धक्का-मुक्की होने की संभावना भी बनी हुई है। घाटों का सम्पर्क मार्ग भी गंगा की लहरों में डूबा हुआ है।

अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास के अध्यक्ष और श्रीकृष्ण लीला के संयोजक प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र ने बताया कि आयोजन से जुड़े लोग पूरी तैयारी कर रहे हैं। गंगा के जलस्तर पर भी लगातार नजर रखी जा रही है। इस बार लीला का आयोजन चुनौतीपूर्ण है लेकिन भगवत कृपा से सब हो जाएगा।

तुलसीघाट पर मेले की शुरूआत अपरान्ह तीन बजे से होगी

तुलसीघाट पर नाग नथैया लीला की शुरूआत अपरान्ह तीन बजे से होगी। लीला प्रसंग में कान्हा (भगवान श्रीकृष्ण) अपने बाल सखा के साथ गंगा प्रतीक रूप से यमुना के किनारे कंचुक गेंद खेलते हैं। खेलते-खेलते गेंद यमुना में चली जाती है। यमुना में कालियानाग के रहने के कारण कोई नदी के किनारे भी नहीं जाना चाहता। बाल सखाओं के दबाव पर कान्हा शाम चार बजकर चालीस मिनट पर कदम्ब की डाल के ऊपर चढ़कर यमुना में कूद जाते है। काफी देर तक कान्हा जब नदी से नहीं निकलते तो बाल सखा मायूस और अकुलाने लगते हैं। इसके कुछ समय बाद कान्हा कालियानाग का मान मर्दन कर उसके फन पर नृत्य मुद्रा में वेणुवादन कर प्रकट होते हैं। यह नयनाभिराम झांकी देख वहां उपस्थित लाखों श्रद्धालु आह्लादित होकर नटवर नागर भगवान श्रीकृष्ण की जय, हर-हर महादेव के गगनभेदी उद्घोष से फिजाओं को गुंजायमान कर देते हैं। इसी दौरान झांकी की महाआरती देख श्रद्धालु निहाल हो जाते हैं। यहीं लीला का समापन होता है।

क्यों जुटती है मेला देखने के लिए लाखों की भीड़

काशी के ऐतिहासिक व लक्खा मेले में शुमार तुलसीघाट के नाग नथैया मेले की शुरूआत गोस्वामी तुलसीदास ने की थी। मेले में परम्परानुसार काशीनरेश के उत्तराधिकारी महाराज कुंवर अनन्त नारायण सिंह अपने पुत्रों के साथ रामनगर दुर्ग से गंगा में बड़े स्टीमर के काफिले में सवार होकर तुलसीघाट पहुंचते हैं। यहां स्टीमर में सवार होकर ही महाराज कुंवर लीला की प्रदक्षिणा कर लीला देखते हैं। इसके तुरन्त बाद अस्थाई कदम्ब की डाल से भगवान श्रीकृष्ण के स्वरूप यमुना में कूदते हैं। पहले से ही प्रशिक्षित गोताखोर भगवान के स्वरूप को गोद में लेकर गंगा में बने कालियानाग के फन पर विराजमान कराते हैं। कालियानाग के फन पर वेणुवादन करते भगवान श्रीकृष्ण के स्वरूप में स्वयं भगवान आ जाते हैं ऐसा जनमानस में विश्वास है। पूरी लीला के दौरान भगवान भोले की नगरी मानो गोकुल बन जाती है। काशी में मान्यता है कि स्वयं महादेव भी इस लीला को देखने आते हैं। उनके प्रतिनिधि के तौर पर काशीराज परिवार स्वयं उपस्थित होता है।

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