बच्चे की बेहतर परवरिश और उसे अच्छी एजुकेशन देना हर मां-बाप का सपना और एक जिम्मेदारी होती है. अगर आप चाहते हैं कि आगे चलकर आपका बच्चे को बेहतर एजुकेशन मिले तो इसकी प्लानिंग आपको उसके जन्म के बाद से ही करनी होगी. एडुफंड रिसर्च के अनुसार, जन्म के बाद से 21 साल की उम्र तक एक बच्चे की परवरिश में माता-पिता को करीब 36-38 लाख रुपये खर्च करने होते हैं. इनमें खर्चों में भोजन, कपड़े, गैजेट्स या शिक्षा सभी शामिल है. वहीं, बढ़ती महंगाई के चलते सभी कैटेगरी में लगभग 7 से 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
देश-विदेश के बड़े कॉलेज और एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन में पढ़ाई का खर्च दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है.
इन संस्थानों की फीस में ही एक बड़ी रकम खर्च हो जाती है. इसलिए इन खर्चों को ध्यान में रखते हुए अपने अल्पकालिक और दीर्घकालिक लक्ष्यों की योजना बनाएं और जितनी जल्दी हो सके बचत और निवेश करना शुरू करें.
हर आयु वर्ग में होने वाले खर्च
बच्चे के जन्म से ही उसकी परवरिश और पढ़ाई के लिए माता-पिता की जिम्मेदारियां शुरू हो जाती है. एडुफंड रिसर्च के मुताबिक, जन्म से 4 वर्ष की आयु तक बच्ची की शिक्षा, स्वास्थ्य, खाना, कपड़े और अन्य चीजों पर करीब 5-7 लाख का खर्च आता है. वहीं 5 से 8 साल की अवधि में यह खर्च 6-8 लाख हो जाता है और 9-12 साल की आयु में 8 से 10 लाख रुपये बैठता है.
जब बच्चे किशोरावस्था (13-16 वर्ष की आयु) में पहुंचता है तो एजुकेशन, हेल्थकेयर, फूड और क्लोथिंग पर होने वाला खर्च बढ़कर 10 से 12 लाख रुपये हो जाता है. जबकि हाईस्कूल से ग्रेजुएशन तक (17-21 की आयु) यह खर्च बढ़कर 34-36 लाख हो जाता है. अगर इस पूरी रकम को जोड़ा जाए तो यह करीब 66 से 68 लाख रुपये होती है.
अलग-अलग एसेट क्लास में निवेश की जरूरत
बच्चे की परवरिश और पढ़ाई से जुड़े खर्चों से निपटने का एकमात्र तरीका एक ऐसे एसेट क्लास में निवेश करना है जो महंगाई की तुलना में ज्यादा रिटर्न मिले. बच्चों की पढ़ाई से जुड़े छोटे-मोटे खर्च जैसे- स्कूल और ट्यूशन फीस आसानी से बचत करके निकाली जा सकती है लेकिन 10वीं और 12वीं के बाद किसी बड़े कॉलेज या संस्थान और कॉम्पिटिशन एग्जाम की तैयारी के लिए बड़ी रकम की जरूरत होती है और इसकी व्यवस्था लंबी अवधि के निवेश लक्ष्यों को बनाकर पूरी की जा सकती है.
एक्यूमलेशन फेज: इस स्तर में जोखिम उठाने की क्षमता अधिक होती है. यह वह चरण है जहां पूंजी बहुत अधिक दर से बढ़ती है. यहां निवेश में उच्च अस्थिरता का सामना करना पड़ता है और लाभ भी अच्छा होता है.
कैपिटल प्रोटेक्शन फेज: इस चरण में पूंजी / धन जोखिम भरे निवेश से सुरक्षित और संतुलित फंड में ट्रांसफर किया जाता है. पोर्टफोलियो की अस्थिरता को कम करने के लिए डेट फंड को भी इसमें शामिल किया जाता है.