शरद पूर्णिमा पर रविवार की रात सोलह कलाओं से परिपूर्ण चंद्रमा की किरणों ने धरा को अमृतमयी बूंदों से सींचा। संगम पर स्नान-दान के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रही। मंदिरों से लेकर घरों तक हर तरफ उत्सव का माहौल दिखा। आधी रात को खुले आसमान के नीचे खीर बनाकर रखी गई। मान्यता है कि अमृतमयी ओस की बूंदें पड़ने के बाद इस खीर का भोग लगाने से निरोगी काया की प्राप्ति होती है।
आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा पर संगम पर स्नान-दान का मेला सुबह ही लग गया। पूर्वांचल के अलावा पड़ोसी राज्यों मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ से भी हजारों श्रद्धालु चारपहिया वाहनों से संगम पहुंचे। उत्सव जैसे माहौल में घरों को रंगोलियों, फूलों और दीपों से सजाकर लक्ष्मी पूजा की गई। रात को खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखी गई, ताकि उसमें ओस कणों के रूप में अमृत की बूंदें पड़ सकें।
इस अमृतमयी खीर से हर तरह के रोगों से मुक्ति मिलने की धारणा रही है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा को चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है। शरद पूर्णिमा पर सोलह कलाओं से युक्त चांदनी के जरिये लोग रोग, दुख और संताप के हरण की कामना करते हैं। ज्योतिषाचार्य ब्रजेंद्र मिश्र के मुताबिक शरद पूर्णिमा की रात 16 कलाओं से परिपूर्ण चंद्रमा की किरणों से अमृत वर्षा की पौराणिक मान्यता रही है। ऐसे में इस रात को रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस रात भगवान श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। साथ ही वैद्यों ने जड़ी-बूटियों को भी ओस कणों से अमृतमयी बनाने के लिए जतन किए।
बंगीय परिवारों में मना कोजागरी उत्सव
शरद पूर्णिमा की रात बंगीय समाज में कोजागरी उत्सव की छटा देखते बनी। इस दौरान कोजागरी उत्सव के रूप में घरों को रंगोलियों और फूलों से सजाया गया। रात भर लोगों ने घरों के दरवाजे खुले रखे और दीप जलाकर मां लक्ष्मी की आराधना की। मान्यता है कि इस रात मां लक्ष्मी भक्तों के घर आती हैं।