मां मंशा देवी मंदिर की भूमि किसी व्यक्ति या संस्था के नाम नहीं है। इस बात की पुष्टि वन्यजीव प्रतिपालक राजाजी टाइगर रिजर्व रविन्द्र पुण्डीर के पत्र के माध्यम से हुई है।
सामाजिक कार्यकर्ता वासु सिंह निवासी भभूतावाला बाग ने नगर मजिस्ट्रेट के माध्यम से मां मंशा देवी के स्वामित्तव के संबंध में जानकारी मांगी थी। इस संबंध में नगर मजिस्ट्रेट ने वन्यजीव प्रतिपालक को पत्र प्रेषित कर सूचना की जानकारी मांगी।
वन्यजीव प्रतिपालक राजाजी टाइगर रिजर्व रविन्द्र पुण्डीर पत्र के माध्यम से अवगत कराया कि विभागीय गजट संख्या 640/15-346-1939 दिनांक 16 मई 1940 में नोटिफिकेशन संख्या 309/15-39 सी 22 मई 1903 से मायापुर ब्लाक में पिलर संख्या 1 से 4 से घिरे हुए 0.4 एकड़ रिजर्व फोरेस्ट को मंशा देवी मंदिर के नाम से डिस्फारेस्टेड की गई है। उक्त सम्पत्ति किसी व्यक्ति या संस्था के नाम पर नहीं है।
वन्यजीव प्रतिपालक राजाजी टाइगर रिजर्व रविन्द्र पुण्डीर के पत्र से यह स्पष्ट हो गया है कि मंशा देवी मंदिर किसी की व्यक्तिगत मलकियत नहीं है और ना ही किसी संस्था के नाम पर भूमि आबंटित की गई है। ऐसे में जब भूमि किसी संस्था व व्यक्ति के नाम नहीं है, तो फिर उस सम्पत्ति की वसीयत किस आधार पर की गई और कैसे उस पर कब्जा किया गया।
मजेदार बात यह है कि सरकार अंकिता हत्याकांड के बाद जंगल की जमीन पर हुए अतिक्रमण को लेकर गंभीर है, किन्तु यहां एनजीटी द्वारा करीब दो माह पूर्व मंशा देवी मंदिर से अतिक्रमण हटाने के जिला प्रशासन को आदेश दिए जा चुके हैं। इसके बावजूद अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। 11 वर्ष पूर्व हाईकोर्ट द्वारा दिए गए आदेशों की भी आज तक अवहेलना की जा रही है। इतना ही नहीं वन विभाग पूर्व में भी मंशा देवी की भूमि को अपनी बता चुका है।
सिटी मजिस्ट्रेट के समक्ष भी आज तक मांगे जाने के बाद भी मंशा देवी के स्वामित्व व ट्रस्ट संबंधी कागजात प्रस्तुत नहीं किए जा सके हैं। इतना होने के बाद भी सरकार और प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ है। जबकि प्रदेश सरकार भ्रष्टाचार और भय मुक्त प्रदेश की बात कहती है। ऐसे में प्रदेश सरकार के भ्रष्टाचार व भय मुक्त प्रदेश के दावों की सच्चाई का अनुमान लगाया जा सकता है।