वाराणसी के बहुचर्चित ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले में अधिवक्ता आयुक्त के सर्वें में सामने आए शिवलिंग की कार्बन डेटिंग के मुद्दे पर गुरुवार को जिला जज की अदालत में सुनवाई पूरी हो गई। इसमें वादी पक्ष की चार महिलाओं की ओर से शिवलिंग की लंबाई, गहराई, उम्र और आसपास के क्षेत्र के वैज्ञानिक विधि से सर्वे की मांग पर दलील दी गई। वादी राखी सिंह की ओर से इस मांग का पुरजोर विरोध किया गया और ऐसा करने से शिवलिंग के खंडित होने का खतरा बताया गया। इस दौरान वादी पक्ष के बीच उभरा मतभेद न्यायालय में साफ दिखाई दिया।
उधर, मुस्लिम पक्ष ने पत्थर व लकड़ी के कार्बन डेटिंग नहीं होने की बात कहकर इस आवेदन को खारिज करने की मांग की। अदालत ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कार्बन डेटिंग के आवेदन पर आदेश और अन्य मुद्दों पर सुनवाई के लिए सात अक्तूबर की तिथि नियत कर दी। हिंदू पक्ष की ओर से ज्ञानवापी परिसर में मिले शिवलिंग की विशेषज्ञों से कार्बन डेटिंग कराने का आवेदन 22 सितंबर को दिया गया था।
जिला जज डॉ अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में चार महिला वादियों की तरफ से सुप्रीमकोर्ट के अधिवक्ता हरिशंकर जैन और विष्णु जैन ने वैज्ञानिक विधि, जीआई सर्वे के जरिये भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण की मांग की गई। उन्होंने कहा, ज्ञानवापी में 16 मई को बरामद शिवलिंग की लंबाई, चौड़ाई, गहराई, उम्र और आसपास की एरिया की जांच कार्बन डेटिंग या अन्य आधुनिक तरीके से कराई जाए। उन्होंने दलील दी कि सीपीसी 26 रूल 10 ए के तहत वैज्ञानिक जांच व सर्वे का आदेश कोर्ट दे सकती है।
हरिशंकर जैन और विष्णु जैन ने कहा कि हमने शिवलिंग के नीचे अरघे और आसपास की जांच मांग की है। उन्होंने कहा, यह काम शिवलिंग को छेड़छाड़ किए बिना होना चाहिए, यह चाहे कार्बन डेटिंग से हो या किसी अन्य तरीके से। बस इस इसमें सही तरीके से यह पता चल जाए कि शिवलिंग कितना पुराना लंबा ऊंचा व गहरा है।
वहीं वादिनी राखी सिंह के अधिवक्ता मानबहादुर सिंह व अनुपम द्विवेदी ने कार्बन डेटिंग के मुद्दे पर विरोध किया और कहा, कार्बन डेटिंग की जांच से अपने ही अस्तित्व पर सवाल खड़ा किया जा रहा है। इस जांच से शिवलिंग खंडित होने का अंदेशा है। फिर उसे हटाना पड़ेगा और मुस्लिम पक्ष दुबारा लगने नहीं देगा। हिंदू धर्म में खंडित मूर्ति की पूजा वर्जित है।
अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी के अधिवक्ता मुमताज अहमद, एखलाक अहमद, मिराजुद्दीन सिद्दकी ने कहा कि शिवलिंग पत्थर का होता है। जबकि पत्थर और लकड़ी की कार्बन डेटिंग हो ही नहीं सकती। कार्बन डेटिंग जीवित चीज की होती है। यह भी कहा कि पत्थर कार्बन डाई ऑक्साइड आब्जर्ब नहीं कर सकता।
अधिवक्ताओं ने दलील दी कि सर्वे के मुद्दे पर दी गई आपत्ति का अभी तक निपटारा नहीं हुआ है। ऐसे में कार्बन डेटिंग का आवेदन अभी परिपक्व यानि प्री मेच्योर नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने बरामद कथित शिवलिंग/फव्वारे को सुरक्षित व संरक्षित रखने का आदेश दिया है। ऐसे में उस पर जांच के लिए केमिकल डालने पर उसका क्षरण होगा। ऐसे में कार्बन डेटिंग का आवेदन खारिज होने योग्य है।
अदालत ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कार्बन डेटिंग के आवेदन पर आदेश और अन्य मुद्दों पर सुनवाई के लिए सात अक्तूबर की तिथि नियत कर दी। सुनवाई के दौरान वादिनी गण, पैरोकार सोहन लाल आर्य, अधिवक्ता सुभाष नंदन चतुर्वेदी, सुधीर त्रिपाठी, दीपक सिंह व अन्य पक्षकार भी कोर्ट में मौजूद रहे।