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अमेरिका और चीन जैसे देश स्वार्थ से प्रेरित होकर करते हैं मददः मोहन भागवत

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अमेरिका और चीन जैसे देश स्वार्थ से प्रेरित होकर करते हैं मददः मोहन भागवत -  Get Latest National & International News Updates

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने गुरुवार को कहा कि मुसीबत के समय भी अमेरिका और चीन जैसे देश अपने स्वार्थ को आगे रखते हुए दूसरों की मदद करते हैं, जबकि निःस्वार्थ भाव से मदद करना भारत का स्वभाव है। उन्होंने कहा कि भारतीय समाज के मन, बुद्धि और आत्मा में परोपकार के संस्कार हैं, यही हमारी सभ्यता है।

डॉ. भागवत भारत विकास परिषद पश्चिम क्षेत्र की ओर से नागपुर के सुरश भट सभागार में आयोजित प्रबुद्ध परिषद और चिंतन बैठक के समापन कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि केवल पश्चिम के देश ही सुख के पीछे भागते हैं, ऐसा नहीं है। सुख के पीछे भागना मनुष्य का स्वभाव होता है, लेकिन सुख और संपन्नता में दूसरों का भी विचार करने की प्रवृत्ति केवल भारतीय जीवन दर्शन में दिखाई देती है। उन्होंने कहा कि प्राचीन समय से पूरी दुनिया सुख और चकाचौंध के पीछे भागती रही और उसी में लीन हो गई। वहीं भारतीय मनीषियों ने अपने अंदर झांका और स्थायी सत्य की खोज की। बतौर डॉ. भागवत, अध्यात्मिकता के आधार पर जीवन कैसे जिया जाता है, यह भारत ने अपने आचरण से दुनिया को बाताया है।

सरसंघचालक डॉ. भागव ने मन, बुद्धि, आत्मा और सत्य का विश्लेषण करते हुए कहा कि भारत के व्यक्ति, समाज और देश सभी के स्वभाव में अपना पेट भरने के बाद निःस्वार्थ सहायता का बोध होता है। कुछ प्रसंगों में व्यक्ति और समाज पहले दूसरे को खिलाने के बाद में अपना विचार करते हुए दिखाई देते हैं। एक ओर जहां दुनिया के अन्य देश दूसरों की मुसीबत में खुद के लिए अवसर खोजते दिखाई देते हैं वहीं भारत निःस्वार्थ भाव से सहायता करता है। उन्होंने कहा कि श्रीलंका के बिगड़े हुए आर्थिक हालात में भारत ने निःस्वार्थ भाव से सहायता की। यूक्रेन युद्ध के दौरान अपने नागरिकों का रेस्क्यू करते हुए हमने दूसरे लोगों को भी मदद पहुंचाई। बतौर डॉ. भागवत, लेबनान को पानी पहुंचाने से लेकर प्राकृतिक आपदा के समय दूसरे देशों को मदद पहुंचाते समय भारत का रवैया निःस्वार्थ रहा है।

संतुलित विकास की अवधारणा का उल्लेख करते हुए संघ प्रमुख डॉ. भागवत ने कहा कि कुछ वर्षों पहले विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) ने समूचे जगत पर विकास का एक ही मॉडल थोपने का प्रयास किया था, लेकिन कई वर्षों के प्रयास के बावजूद वह असफल रहे। उसके बाद डब्ल्यूटीओ ने यह स्वीकार किया कि हर देश की सभ्यता, सोच अलग होती है, विकास का मॉडल भी उसी के अनुरूप होना चाहिए। भारतीय विकास की अवधारणा में समाज के हर तबके का विचार है। इस अवसर पर डॉ. भागवत ने आह्वान किया कि भारत विकास परिषद देश को स्वावलंबी और सामर्थ्यवान बनाने में योगदान देते हुए देश को उत्थान की ओर ले जाए।

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