दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्ल्यू) को हर दिन राजधानी में यौन उत्पीड़न के कई मामले मिलते हैं। यौन हिंसा की पीड़िताओं को अत्यधिक आघात और चोटों के अलावा, उन्हें एचआईवी जैसे यौन संक्रामक रोगों से संक्रमित होने का खतरा भी बढ़ जाता है। इसलिए डीसीडब्ल्यू ने दिल्ली के सरकारी अस्पतालों से यौन हिंसा की पीड़िताओं में एचआईवी की रोकथाम की स्थिति का पता लगाने का प्रयास किया।
डीसीडब्ल्यू की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने स्वास्थ्य विभाग को नोटिस जारी कर उन मामलों की संख्या के बारे में विशेष जानकारी मांगी है। जिनमें पीड़ितों और आरोपितों के लिए एचआईवी परीक्षण किया गया था और साथ ही पूछा था कि यौन उत्पीड़न के पीड़ितों में एचआईवी को रोकने के लिए क्या कदम उठाये जा रहे थे और क्या मानक प्रक्रिया का पालन किया जा रहा था।
स्वास्थ्य विभाग से मिली जानकारी ने कई गंभीर चिंताएं पैदा की हैं। यह देखा गया कि कई अस्पताल सभी यौन पीड़िताओं को एचआईवी परीक्षण की सिफारिश नहीं कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, दीपचंद बंधु अस्पताल ने बताया है कि यौन हिंसा की पीड़िताओं के 180 मेडिको-लीगल परीक्षणों में से केवल कुछ मामलों में एचआईवी परीक्षण किए गए थे।
वहीं, डॉ बाबा साहेब अम्बेडकर अस्पताल और राव तुला राम अस्पताल जैसे अस्पताल बलात्कार पीड़ितों के एचआईवी परीक्षण से संबंधित रिकॉर्ड भी नहीं रखते हैं। इसके अलावा, बाद में नियमित अंतराल पर होने वाले एचआईवी परीक्षण और परामर्श, जो कि तीन और छह महीने के बाद किया जाना चाहिए, अधिकांश पीड़ितों के लिए नहीं किया जा रहा है और न ही इसका कोई विवरण अस्पतालों द्वारा रखा जा रहा है।
उदाहरण के लिए एम्स, डॉ बाबा साहेब अम्बेडकर अस्पताल, संजय गांधी मेमोरियल अस्पताल, राव तुला राम अस्पताल, जग प्रवेश चंद्र अस्पताल, भगवान महावीर अस्पताल और डीडीयू अस्पताल ने कहा है कि उनके पास पीड़ितों के नियमित अंतराल पर होने वाले परीक्षणों पर कोई डेटा उपलब्ध नहीं है।
केवल दो अस्पतालों, आचार्य श्री भिक्षु सरकारी अस्पताल और पश्चिम जिले के गुरु गोबिंद सिंह सरकारी अस्पताल ने सूचित किया है कि दिल्ली पुलिस उन्हें आरोपित की एचआईवी स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करती है, ताकि एचआईवी पॉजिटिव अपराधियों द्वारा बलात्कार की शिकार पीड़िताओं की पहचान की जा सके जिनको एचआईवी से संक्रमित होने का जोखिम है और उनके बचाव के लिए तत्काल कदम उठाए जा सकें।
बाकी अस्पतालों ने कहा है कि दिल्ली पुलिस उन्हें आरोपियों की एचआईवी के संक्रमण की स्थिति के बारे में कोई जानकारी नहीं देती है। यह देखा गया कि आईसीटीसी का समय केवल सुबह 9 बजे से शाम 4 बजे तक था, जिसने यौन हिंसा की पीड़िताओं को एचआईवी परीक्षण के लिए घटना के अगले दिन लौटने के लिए मजबूर होना पड़ता है, और उनके एचआईवी परीक्षण और परामर्श लेने की संभावना काफी कम हो जाती है।
कई अस्पतालों में पीड़ितों की पहचान और एचआईवी परीक्षण के परिणामों की गोपनीयता बनाए रखने के लिए मानक प्रक्रिया का अभाव है, हालांकि एनसी जोशी मेमोरियल अस्पताल की पहचान की गयी। जिसमें नामों के बजाय एक यूनिक आईडी का उपयोग किया जा रहा है। यहां तक कि पोस्ट एक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस (पीईपी) जो एचआईवी से सुरक्षा का प्रथम साधन है, उसको पीड़िताओं को देने का विवरण संजय गांधी मेमोरियल अस्पताल, गुरु गोबिंद सिंह अस्पताल और सफदरजंग अस्पताल जैसे कई अस्पतालों द्वारा नहीं रखा गया था।
इसके अलावा, दिल्ली पुलिस को उनके द्वारा जारी किए गए 2019 के स्थायी आदेश संख्या 303 का पालन करने की सिफारिश की गई है, जो जांच और पर्यवेक्षी अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देता है कि आरोपी की चिकित्सा परीक्षा करवाते समय एसटीडी / एसटीआई का परीक्षण भी करवाया जाए, ताकि अगर कोई भी आरोपी किसी बीमारी से पीड़ित हो, तो पीड़िता को जल्द से जल्द जरूरी इलाज मुहैया कराया जा सके।
डीसीडब्ल्यू ने दिल्ली पुलिस को यह भी सिफारिश की कि सभी जिलों के अस्पतालों और पीड़ितों को आरोपी की एचआईवी पॉजिटिव की स्थिति के बारे में सूचित किया जाए, ताकि पीड़िताओं को जल्द से जल्द उपचार प्रदान किया जा सके। स्वास्थ्य विभाग को यह सिफारिश की गई है कि सभी आईसीटीसी पर्याप्त कर्मियों के साथ चौबीसों घंटे खुले रहने चाहिए और पीड़ितों को पीईपी देने के सभी रिकॉर्ड अस्पतालों द्वारा उचित प्रारूप में रखे जाना चाहिए। यह भी सिफारिश की गई है कि सभी अस्पतालों द्वारा एचआईवी परीक्षण, उपचार और यौन हिंसा की पीड़िताओं की देखभाल के संबंध में प्रक्रियाओं के लिए मानकीकृत एसओपी का पालन किया जाए।
दिल्ली महिला आयोग ने स्वास्थ्य विभाग, दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस को सिफारिशें भेजी हैं और 30 दिनों में इस मामले में की गई कार्रवाई की रिपोर्ट मांगी है।
मालीवाल ने कहा, राजधानी में आठ साल की बच्ची के साथ बेरहमी से बलात्कार किया गया। उसके पूरे शरीर पर गंभीर चोट के निशान थे। उसके साथ रेप करने वाला आरोपित एचआईवी पॉजिटिव था। दुर्भाग्य से लड़की भी वायरस से संक्रमित हो गयी। इसलिए एचआईवी के लिए यौन हिंसा की पीड़िताओं के लिए उचित बचाव और उपचार सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत तंत्र समय की आवश्यकता है। यह परेशान करने वाला है कि दिल्ली में इसे लागू नहीं किया जा रहा है। हमने इस संबंध में दिल्ली सरकार और पुलिस को विस्तृत सिफारिशें दी हैं। पीड़ितों और अभियुक्तों के एचआईवी परीक्षण, डॉक्टरों द्वारा पहचानी गयी उच्च जोखिम वाली पीड़िताओं के लिए पीईपी देना और अन्य लोगों के बीच पीड़िताओं की गोपनीयता बनाए रखने के लिए सिस्टम बनाया जाना चाहिए।