इविवि के कला संकाय में स्थित सीनेट हॉल, लाइब्रेरी (वर्तमान प्रशासनिक ब्लॉक) और लॉ कॉलेज (वर्तमान अंग्रेजी विभाग) का निर्माण 1910 में शुरू हुआ था। इस कार्य के लिए अंग्रेजी इंजीनियर सैमुएल विस्टन जैकब को चुना गया था, जिन्होंने राजस्थान की कई बड़ी इमारतें डिजाइन कीं थीं। 1915 में 11 लाख रुपये की लागत से इमारतें बनकर तैयार हो गईं।
1912 में सीनेट हॉल का घंटाघर बनकर तैयार हुआ। इसकी घड़ी मशहूर स्विस घड़ी कंपनी जेसी बेशलर एंड संस ने बनाई थी। सीनेट हॉल के घंटाघर की मीनार हिंदू-मुगल शैली में बनाई गई थी। समय के साथ सीनेट हॉल की घड़ी भी इविवि की पहचान बन गई। सीनेट हॉल की घड़ी भी यूरोपीय वजन चालित घड़ियों की तरह हर पंद्रह मिनट में बजती थी और इसकी आवाज शहर के सात किलोमीटर के दायरे में सुनाई देती थी।
1999 तक सीनेट हॉल की यह घड़ी चलती रही। फिर अचानक खराबी आने के कारण रुक गई। इसके बाद इविवि प्रशासन ने इसे चलाने की कई कोशिशें भी कीं। दो साल पहले आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस लगाकर इसे चलाने का प्रयास किया गया। घड़ी कुछ दिन चली और फिर रुक गई।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के साथ इसके छात्रसंघ का भी गौरवशाली इतिहास रहा है। कभी देश और कांग्रेस की राजनीति का धुरी रहे एनडी तिवारी तिवारी 1947 में यहां के छात्रसंघ अध्यक्ष थे। बाद में वह राज्यपाल और मुख्यमंत्री बने। राज्यपाल और मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाल चुके मदन लाल खुराना भी छात्रसंघ पदाधिकारी रहे। 1948-49 में यूनियन के अध्यक्ष रहे सुभाष कश्यप की संसद और विधानमंडल में एक निश्चित सीमा के अंदर मंत्रीमंडल के विस्तार जैसे कई अहम निर्णयों में महत्वपूर्ण भूमिका रही। 1940-41 में यूनियन के अध्यक्ष रहे डॉ. डीएस कोठारी ने उच्च शिक्षा को नए आयाम दिए। भारत के मुख्य न्यायमूर्ति रहे जेएस वर्मा और प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रोफेसर जेके मेहता भी यूनियन के अध्यक्ष रहे।