–पाश्चात्य देशों ने अपना शासन सुरक्षित रखने के लिए भाषा पर प्रहार किया
–मातायें हमारी मातृभाषा की पोषक रही हैं
–‘‘आत्मबोध में भाषायी शिक्षण की भूमिका’’ का आयोजन
आत्मबोध के लिए भाषा बोध का होना जरूरी है। भाषा हमारे व्यक्तित्व का निर्माण करती है। जब तक हम भाषा को जानेंगे नहीं, सही से उच्चारण नहीं करेंगे, सीखेंगे नहीं, तब तक हमारे व्यक्तित्व का विकास नहीं होगा। हम सभी उसी भाषा से जुड़े होते हैं जिसमें हम पहली बार बोलते हैं। स्वयं को अभिव्यक्त करना सीखते हैं।
यह बातें आर्य कन्या डिग्री कॉलेज शिक्षाशास्त्र विभाग की डॉ. श्रुति आनन्द ने सोमवार को हिन्दी विभाग एवं भाषा केन्द्र के संयुक्त तत्वावधान में ईश्वर शरण पीजी कॉलेज में ‘‘आत्मबोध में भाषायी शिक्षण की भूमिका’’ व्याख्यान में सम्बोधित करते हुए कही। उनका विशेष जोर इस बात पर था कि हिन्दी केवल 14 तारीख या सिर्फ एक पखवाड़े के लिए नहीं बनी है। यह हमारी प्राण शक्ति, प्राणवायु और रक्तसंचार है। भाषा हमारी परम्परा को आगे बढ़ाती है और मातायें हमारी मातृभाषा की पोषक रही हैं। बच्चे सबसे पहले अपनी माँ से ही भाषा सीखते हैं।
उन्होंने कहा कि यही वजह है कि पाश्चात्य देशों ने अपने शासन को सुरक्षित रखने के लिए भाषा पर प्रहार किया। उनका कहना था कि अगर भारत में विस्तार करना है तो सबसे पहले अंग्रेजी से जन-जन को जोड़ना होगा। इसका आसान रास्ता स्त्रियाँ और मातायें हो सकती हैं। इन्हीं के माध्यम से भारत में अंग्रेजी शिक्षा का प्रसार तेजी से किया जा सकेगा।
अन्त में उन्होंने कहा कि हम किसी भाषा के विरोधी नहीं हैं, बल्कि हम अपनी भाषा के सशक्त पक्षधर और हितैषी हैं। अंग्रेजी आदि भाषाओं में उच्चारण आदि अशुद्धियों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। यही वजह है कि इस भाषा में अभिव्यक्ति देने वाले लोग अधिक आत्मविश्वासी होते हैं। हिन्दी भाषी लोग हिन्दी व्याकरण और उसकी अशुद्धियों को नजरअंदाज कर देते हैं। हिन्दी को समृद्ध करने के लिए इसके विविध पक्षों पर ध्यान देना बहुत जरूरी है, सिर्फ व्याख्यान देने से हिन्दी का विस्तार नहीं किया जा सकता।
डॉ. मनोज कुमार दूबे ने बताया कि इसके पूर्व आत्म परिचय प्रस्तुति प्रतियोगिता रखी गई, जिसमें कई महाविद्यालय और विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने प्रतिभाग किया। प्रतियोगिता का निर्णय हिन्दी पखवाड़े के समापन सत्र में किया जायेगा। संचालन डॉ अविनाश पाण्डेय एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ अंजना श्रीवास्तव ने किया। इस अवसर पर डॉ.रचना सिंह, डॉ.आनन्द सिंह, डॉ.मान सिंह, डॉ.कृपाकिंजलकम, डॉ.उदय सिंह भदौरिया, डॉ.शाइस्ता इरशाद, डॉ.रश्मि जैन, डॉ.गरिमा मौर्या, डॉ. आलोक मिश्र, डॉ.अमरजीत राम, डॉ.एकात्मदेव, डॉ.नरेन्द्र सिंह, डॉ.अश्विनी देवी, डॉ.गायत्री सिंह आदि कई शिक्षक सहित शोधार्थी, प्रतिभागी एवं विद्यार्थीगण मौजूद रहे।