वैश्विक तापमान में नहीं होने देगा बढ़ोत्तरी
इस साल भारत में सामान्य से ज्यादा बारिश हुई है और आगे भी मौसम ज्यादा सर्द की तरफ रहने की संभावना है। इसके पीछे ट्रिपल डिप ला नीना अहम कारण है जो भारतीय मानसून पर प्रभाव डाल रहा है। इसी के चलते यह भी संभव हो सका कि जिन प्रदेशों में पहले कम बारिश होती थी इस साल वहां पर अधिक बारिश हुई है। इससे वैश्विक तापमान में भी जब तक सक्रिय रहेगा बढ़ोत्तरी नहीं होगी। यह बातें शुक्रवार को चन्द्रशेखर आजाद कृषि प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय (सीएसए) कानपुर के मौसम वैज्ञानिक डॉ एस एन सुनील पाण्डेय ने कही।
उन्होंने बताया कि आस्ट्रेलियाई मौसम विज्ञान ब्यूरो ने प्रशांत महासागर में लगातार तीसरे वर्ष ला नीना घटना की पुष्टि की। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्लूएमओ) ने 31 अगस्त को कहा था कि यह समुद्री और वायुमंडलीय घटना कम से कम साल के अंत तक चलेगी और इस सदी में पहली बार उत्तरी गोलार्ध में लगातार तीन सर्दियों में ’ट्रिपल डिप’ ला नीना बन जाएगा। डब्लूएमओ ने भविष्यवाणी की है कि वर्तमान ला नीना, सितंबर 2020 में शुरु हुआ था, और छह महीने तक जारी रहेगी, जिसके सितंबर-नवंबर 2022 तक रहने की 70 प्रतिशत संभावना और दिसंबर-फरवरी 2022/2023 तक चलने की 55 प्रतिशत संभावना है।
सीएसए के मौसम वैज्ञानिक के मुताबिक ला नीना इवेंट का लगातार तीन साल होना असाधारण है। इसके कारण ठंड बढ़ती है और जिस कारण, वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी नहीं हो रही है, हालांकि यह दीर्घकालिक के लिए ग्लोबल वॉर्मिंग को नहीं रोक सकता है। ईएनएसओ की स्थिति ग्लोबल लेवल पर एटमॉस्फेरिक सर्कुलेशन को प्रभावित करती है। ऐसे में यह विश्व स्तर पर तापमान और बारिश दोनों को बदल सकती है। यह एक आवर्ती घटना है और तापमान में परिवर्तन के साथ ऊपरी और निचले स्तर की हवाओं समुद्र के स्तर के दबाव और प्रशांत बेसिन में उष्णकटिबंधीय वर्षा (ट्रॉपिकल रेनफॉल) के पैटर्न में बदलाव होता है।
क्या है अल नीनो और ला नीना
बताया कि अल नीनो और ला नीना दोनों स्पेनिश शब्द हैं, जिनका मतलब है ’लड़का’ और ’लड़की’। वहीं मौसम के लिहाज से देखा जाए तो ये परस्पर विपरीत घटनाएं हैं, जिसके दौरान भूमध्य रेखा के साथ प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का तापमान असामान्य रुप से गर्म होना या ठंडा हो जाता है। साथ में इन्हें अल नीनो-साउथर्न ओसिलेशन सिस्टम या संक्षेप में ईएनएसओ के रुप में जाना जाता है।
भारत के मानसून को प्रभावित करता है ला नीना
बताया कि आम तौर पर अल नीनो और ला नीना हर चार से पांच साल में होते हैं। अल नीनो, ला नीना की तुलना में अधिक बार होता है। भारत में अल नीनो सालों में मानसून के दौरान अत्यधिक गर्मी और सामान्य वर्षा के स्तर से नीचे बारिश देखी गई है, हालांकि अल नीनो सिर्फ एक कारण नहीं है या इसका कोई सीधा लिंक नहीं है, लेकिन साल 2014 में अल नीनो साल था और भारत में जून से सितंबर तक 12 प्रतिशत कम वर्षा हुई। दूसरी ओर ला नीना साल में भारत में गर्मियों में अच्छी बारिश होती है। इस साल भारत में 740.3 मिमी बारिश हुई है, जो 30 अगस्त तक मौसमी औसत से सात प्रतिशत अधिक है। ऐसे में ला नीना का जारी रहना भारतीय मानसून के लिए एक अच्छा संकेत है। उत्तर प्रदेश, बिहार और पड़ोसी क्षेत्रों को छोड़कर अब तक मानसून की बारिश अच्छी रही है।