इस साल खरीफ मौसम मे औसत से कम बारिश होने के कारण धान की फसल कमजोर होने का अनुमान है।ऐसे में किसान भाई धान में पोटाश का छिड़़काव कर दाने को मजबूत और गुणवत्तापूर्ण बना सकते है।उक्त बातें जिले के परसौनी स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के मृदा विशेषज्ञ आशीष राय ने प्रक्षेत्र भ्रमण के दौरान हिन्दुस्थान समाचार को बताते हुए कहा कि किसान यूरिया के अपेक्षा पोटाश जैसे पोषक तत्व का प्रयोग खेतों में बहुत कम करते हैं।हालांकि विभिन्न अनुसंधानों से यह पता चला है कि अधिकतर फसलें मिट्टी से जितनी मात्रा में नाइट्रोजन का अवशोषण करती है उतनी ही या उससे भी अधिक मात्रा में पोटैशियम नामक पोषक तत्व लेती हैं। ऐसे में किसान भाईयों को सलाह है कि जब उच्च उत्पादन के लिए आवश्यक पोटैशियम की मात्रा प्रदान करने में मिट्टी सक्षम ना हो तो वह संभावित उच्च उपज की प्राप्ति के लिए मिट्टी में पोटैशियम की आपूर्ति अन्य उर्वरकों के साथ करें। इससे मिट्टी में पोटैशियम की आपूर्ति होगी जिससे मिट्टी में पोटेशियम-आपूर्ति की क्षमता बढ़ेगी।
उन्होने बताया कि अनुसंधान से पता चला है कि अवशोषित पोटैशियम का लगभग 70- 75% भाग पौधों की पत्तियों तथा पुवाल में एवं शेष भाग दानों,फलों, गुठलियों आदि में रहता है।उन्होने कहा कि शोध से यह जानकारी मिली है कि पोटैशियम के कोई भी पौधा न तो बढ़ सकता है और न ही कोई फसल अपने जीवनचक्र को पूरा कर सकती है।पोटाश सामान्यतः 60 से भी अधिक लाभकारी एन्जाइम्स को सक्रिय बनाता है एवं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से यह पौधों के वृद्धि में सम्मिलित रहता है।पौधों में अवशोषित पोटैशियम का अधिकतर अंश स्वतंत्र धनायन(K ) के रूप में रहता है।
-पोटैशियम के प्रमुख कार्य
•पोटैशियम पौधों में प्रकाश-संश्लेषण को बढाता है। जिससे पौधों में पर्याप्त भोजन का निर्माण होता है।
•यह प्रकाश-संश्लेषण उत्पादों को बीज, जड़ें,फल,कंद तक पहुंचाने की क्रिया को प्रोत्साहित करता है।
•पोटेशियम पौधों में शर्कराओं के निर्माण एवं स्थानांतरण में मुख्य भूमिका निभाता है इसीलिए ईंख एवं कंद वाली फसलों के उत्पादन में बड़ा महत्व है।
•पोटैशियम पौधों में प्रोटीन उत्पादन को बढ़ाता है और नाइट्रोजन की दक्षता को सुधारता है।
•पोटैशियम फसलों को हानिकारक कीड़े-मकोड़े, रोगों का आक्रमण,सूखा व कोहरा आदि का सामना करने में महत्वपूर्ण योगदान करता है।
•पौधों में इसकी प्रचुरता पौधा को गिरने नहीं देती है।
•पोटैशियम पौधों की जड़ों द्वारा जल अवशोषण को बढ़ाता है।
•पोटैशियम फसलों की गुणवत्ता में सुधार लाकर उन फसलों के लिए जिनमें गुणवत्ता ही महत्वपूर्ण होती है जैसे तंबाकू, फल एवं रेशेदार फसलें उनको संरक्षित करती है।
•लाभदायक जीवाणुओं के माध्यम से जैविक नाइट्रोजन यौगिकीकरण की क्षमता को बढ़ाने के लिए पोटैशियम अति आवश्यक होता है।
-कैसे करे पोटाश-उर्वरक का प्रयोग
•पोटैशियम उर्वरक ऐसी जगह डालें जहां से पौधों की जड़ उसे अवशोषित कर सकें। यदि सिंचाई की उचित व्यवस्था ना हो तो शुष्क मृदा- सतह पर जहां जड़ों के विकसित होने की संभावना नहीं है, इसे न डालें। इसके विपरीत वर्षा या सिंचाई हो जाने पर सतह पर डाला गया उर्वरक पानी के साथ नीचे पहुंच सकता है और वह पौधों के विकास में योगदान कर सकता है।
• पोटाश उर्वरक को पत्तियों, बीजों, या जड़ों पर सीधे ना डालें अन्यथा पत्तियां झुलस जाती है। इस उर्वरक को मिट्टी के साथ मिलाकर प्रयोग करना चाहिए, ताकि सान्द्रण कम हो जाए।
•मृदा-सतह पर पोटाश उर्वरक को भूमि की तैयारी करते समय छिड़काव करना प्रभावकारी होता है, क्योंकि इससे पोटाश इतनी गहराई पर पहुंच जाता है जहां जड़े फैली होती है और इसे वे आसानी से अवशोषित कर सकती हैं।
•उर्वरक को पटियों में कतारों के ऊपर, बीज के साथ कतारों में, बीज के नीचे और बगल में, अथवा फसल उगने के कई सप्ताह या महीने बाद बगल की पटियों में दिया जा सकता है।
•फसल विशेष के अनुरूप पोटैशियम को सिंचाई-जल के साथ ड्रिप सिंचाई के माध्यम से उर्वरक प्रयोग करके पोटैशियम को दिया जा सकता है।